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महादेव के पिता का मंदिर साल में खुलता है सिर्फ एक बार, यहां 40 फीट जमीन के अंदर छिपा है शिवलिंग

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 09 Jul, 2025 04:43 PM
महादेव के पिता का मंदिर साल में खुलता है सिर्फ एक बार, यहां 40 फीट जमीन के अंदर छिपा है शिवलिंग

नारी डेस्क: वाराणसी, जिसे शिव की नगरी भी कहा जाता है, हजारों वर्षों से श्रद्धा, आस्था और अध्यात्म का केंद्र रही है। इस पवित्र नगरी में स्थित पितामहेश्वर शिवलिंग एक ऐसा स्थान है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं लेकिन जिसकी मान्यता अत्यंत विशिष्ट है। यह शिवलिंग स्वयंभू माने जाते हैं और इन्हें भगवान शिव के पिता का प्रतीक माना गया है। ये मंदिर खास इसलिए है कि इसके कपाट सावन में भी बंद रहते हैं। साल में सिर्फ एक बार महाशिवरात्रि पर ही ये मंदिर आम दर्शनार्थियों के लिए खुलता है।
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 कहां स्थित है पितामहेश्वर मंदिर?

यह रहस्यमय शिवलिंग वाराणसी (काशी) में स्थित है, और यह एक सामान्य मंदिर की तरह नहीं, बल्कि जमीन के 30-40 फीट नीचे स्थित है। यहां जाने के लिए एक छोटे-से रास्ते या सुरंग जैसे संकरे छेद से भक्त नीचे झांकते हैं और दर्शन करते हैं। पितामहेश्वर शिवलिंग को काशी विश्वनाथ के पिता के रूप में पूजा जाता है। यह शिवलिंग स्वयंभू (स्वतः प्रकट हुआ) माना जाता है, अर्थात इसे किसी ने स्थापित नहीं किया, बल्कि यह धरती से स्वयं उद्भूत हुआ है। ऐसा विश्वास है कि भगवान शिव स्वयं भी इस स्थान को विशेष आदर देते हैं।


दर्शन की अनोखी विधि

इस शिवलिंग के दर्शन एक छोटे छेद के माध्यम से किए जाते हैं। यहां कोई सीढ़ी या खुला रास्ता नहीं होता, जिससे यह और भी रहस्यमय हो जाता है। यहां भक्त नीचे झुककर या बैठकर दर्शन करते हैं, जिससे उन्हें परम शांति और अध्यात्मिक ऊर्जा की अनुभूति होती है। पितृ तर्पण, श्राद्ध कर्म आदि के लिए भी इस स्थल की महत्ता मानी जाती है, क्योंकि यह पितृ ऊर्जा से जुड़ा हुआ स्थान है।

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 इस पवित्र स्थल का महत्त्व

जो श्रद्धालु गहराई से शिव भक्ति करते हैं, उनके लिए यह स्थल आध्यात्मिक अनुभव से भरपूर है। यहां आकर व्यक्ति को नम्रता, श्रद्धा और आत्मनिरीक्षण की अनुभूति होती है, क्योंकि भगवान के पिता को झुककर या झांककर ही देखा जा सकता है। पितामहेश्वर शिवलिंग केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि वह स्थान है जहां शिव के भी पितृ रूप की अनुभूति होती है। यह काशी की एक छुपी हुई आध्यात्मिक विरासत है, जहाँ जाकर श्रद्धालु एक अलग ही दिव्यता का अनुभव करते हैं।

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