भारतीय समाज में जहां बेटियों को बोझ समझा जाता और जल्दी से उनकी शादी कर दी जाती है, वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अविवाहित बेटियों के हक में बड़ा फैसला लिया है। उन्होंने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अविवाहित बेटी को गुजारा भत्ता पाने का हकदार बनाया है। वो चाहे किसी भी धर्म, आयु और रोजगार से जुड़ी हो। ये फैसला न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की अदालत द्वारा पहली पत्नी से जन्मी 3 बेटियों को गुजारा भत्ता दिए जाने के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए सुनाया है।
याचिकाकर्ता ने साल 2015 में पहली पत्नी की मौत के बाद दूसरी शादी कर ली। पहली पत्नी से जन्मी उनकी 3 बेटियां ने देवरिया के न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 के तहत अपने पिता से अंतरिम भरण- पोषण देने की मांग करते हुए आरोप लगाया कि मां की मौत के बाद से पिता और सौतली मां दोनों मिलकर इनकी मार- पीट करते थे। उन्होंने बेटियों की पढ़ाई भी रोक दी। न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में बेटियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए पिता को निर्देशित किया कि वह 3 बेटियों का 3 हजार रुपये प्रतिमाह का गुजारा-भत्ता देना पड़ेगा।
पिता ने दी थी हाइकोर्ट में फैसले को चुनौती
याचिकाकर्ता पिता ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को जिला जज की अदालत में चुनौती दी। लेकिन, जिला जज ने पिता की अपील खारिज कर दी। इसके खिलाफ पिता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पिता का कहना था कि उनकी बेटियां बालिग हैं और स्वस्थ हैं। वो ट्यूशन पढ़ा कर भी कमाई कर सकती हैं। बेटियां उसके साथ रह रही हैं और वो उनका सारा खर्चा उठा रहे हैं। साथ ही पिता ने अपनी उम्र, आर्थिक तंगी और मुस्लिम विधि का हवाला देते हुए निचली अदालत द्वारा दिए गए फैसले को रद्द करने की मांग की।
कोर्ट ने लिया बेटियों के हक में फैसला
कोर्ट ने याचिका कर्ता पिता की इन दलीलों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि मौजूदा मामले में परिवारिक हिंसा से जुड़ा है। इसलिए अविवाहित बेटी किसी भई धर्म, आयु या समुदाय की हो, उसे घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत संरक्षण प्राप्त है। कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले पर अपनी मुहर लगाते हुए याचिकाकर्ता पिता की दलील को खारिज कर दी।