भारतीय महिला हॉकी टीम ने पहली बार ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंच इतिहास रच दिया है। टीम को सेमीफाइनल में पहुंचाने के लिए गोलकीपर सविता पुनिया का एक बड़ा ही योगदान रहा है। सविता ने क्वार्टर फाइनल मैच में ऑस्ट्रेलिया के 9 पेनल्टी कॉर्नर रोके थे, जिस वजह से भारत 1-0 से जीत दर्ज करने में सफल रही थी।
बतां दें कि महिला टीम सिर्फ तीसरी बार ओलंपिक में उतरी है। 2016 रियो ओलंपिक में टीम 12 वें नंबर पर रही थी। इसके अलावा 1980 में टीम चौथे नंबर पर रही थी। अब वहीं भारतीय महिला हाॅकी टीम को 4 अगस्त को सेमीफाइनल में अर्जेंटीना से भिड़ना है, जिसका मुकाबला बेहद रोमांचक होने वाला है, क्योंकि भारतीय टीम यदि यह मैच जीत लेती है, तो उसका पहला ओलंपिक मेडल पक्का हो जाएगा।
ऑस्ट्रेलिया के 9 पेनल्टी कॉर्नर रोक टीम को सेमीफाइनल में पहुंचाने वाली 31 साल की सविता पुनिया का यहां तक पहुंचना बहुत ही मुश्किल था। हरियाणा के सिरसा जिले के गांव जोधकां की रहने वाली सविता के गांव में हॉकी का इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं था।
गोलकीपिंग को सुधारने के लिए सविता लड़कों के साथ खेलती थी हॉकी
लेकिन उनके दादा के प्रोत्साहन की वजह से उन्हें सिरसा स्थित साई सेंटर भेजा गया और यहीं से उनके हॉकी करियर की शुरुआत हुई। 2008 में उन्हें पहली बार इंटरनेशनल मुकाबला खेलने को मिला, उन्होंने अपनी गोलकीपिंग को सुधारने के लिए लड़कों के साथ हॉकी खेली, लड़के ताकत के साथ ड्रैग फ्लिक मारते थे, आपकों बता दें कि तेज रफ्तार से आती बॉल को रोकने के लिए भी ताकत और तेजी की जरूरत होती थी, इसलिए सविता ने खुद को तैयार किया।
जब बस कंडक्टर गोलकीपिंग किट को पैरों से छूता तो निकल जाते थे आंसू
ओलिंपक तक पहुंचने के लिए सविता का दौर आसान नहीं रहा। 2003 में सविता जब सिरसा की हॉकी नर्सरी में ट्रेनिंग कर रही थीं, उस समय अपने गांव जोधकां से हरियाणा रोडवेज की बस में बैठकर सिरसा जाती थीं। उन्हें अक्सर अपने पिता से शिकायत थीं कि बस कंडक्टर उसकी गोलकीपिंग किट को अपने पैरों से छूता हैं जो उन्हें पसंद नहीं थी, इसे देखकर कई बार सविता के आंसू निकल आते थे।
31 साल की सविता का यह दूसरा ओलंपिक है
इससे पहले सविता ने 2016 में जापान के खिलाफ शानदार पेनल्टी कॉर्नर रोके अपना दम दिखा दिया था और टीम को 1-0 से जीत दिलाई। सविता के इस शानदार प्रदर्शन की वजह से ही टीम ने रियो ओलंपिक के लिए क्वालिफाई करने में सफल हुई। 2018 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार भी मिल चुका है। 31 साल की सविता का यह दूसरा ओलंपिक है। 2018 में उन्हें एशिया कप में बेस्ट गोलकीपर चुना गया, इसी की बदौलत टीम 2018 वर्ल्ड कप के लिए क्वालिफाई कर सकी।
बतौर गोलकीपर सविता खेल में कभी संयम नहीं खोती
बतौर गोलकीपर सविता खेल में कभी संयम नहीं खोती हैं और ना विरोधी टीम के आक्रमण से घबराती हैं। वह विपक्षी फॉरवर्ड लाइन या पेनल्टी कार्नर मूव्स के बारे में भी अपने डिफेंडर्स से लगातार नजर बनाए रखती है। टोक्यो ओलंपिक में उनकी यह खूबी कई बार देखने को भी मिली।
मां को उम्मीद है कि सविता इस बार ओलंपिक से मेडल लेकर ही लौटेंगी
वहीं एक इंटव्यू के दौरान सविता की मां लीलावती ने बताया था वो टोक्यो में मेडल जीतें या ना जीतें वो हमेशा यह सुनिश्चित करती है कि अपनी पुरानी गोलकीपिंग किट गांव की जरूरतमंद खिलाड़ियों को दे, मां को उम्मीद है कि सविता इस बार ओलंपिक से मेडल लेकर ही लौटेंगी।