मां बनना हर महिला के लिए जिंदगी का सबसे खूबसूरत पल होता है। महिलाएं तो कंसीव करने के समय से ही मां बन जाती हैं। हालांकि ज्यादातर औरतें इस बात को लेकर कंफ्यूज रहती हैं कि नॉर्मल और सिजेरियन डिलीवरी (सी-सेक्शन) में से कौन-सी ऑप्शन बेहतर है। दरअसल, महिला दो तरीकों से बच्चे को जन्म देती है योनि प्रसव और सी सेक्शन। आजकल महिलाएं दर्द से बचने के लिए नॉर्मल डिलीवरी की बजाए ऑपरेशन को अहमियत देने लगी हैं जबकि योनि प्रसव ज्यादा फायदेमंद है। कुछ स्थितियों में सी-सेक्शन जरूरी हो सकता है लेकिन दर्द से बचने के लिए ऑपरेशन करवाना सही नहीं है।
सिजेरियन और नॉर्मल डिलीवरी में अंतर
नॉर्मल डिलीवरी में शिशु का जन्म योनि मार्ग के जरिए होता है जबकि सिजेरियन में योनि से ऊपर चीरा लगाकर गर्भाशय से शिशु को निकाला जाता है।
क्या 35 के बाद संभव नहीं नॉर्मल डिलीवरी?
ज्यादातर औरतों को लगता है कि 35 साल के बाद नार्मल डिलीवरी संभव नहीं जबकि ऐसा नहीं है। बता दें कि बॉलीवुड एक्ट्रेस ऐश्वर्या राय बच्चन को सिजेरियन डिलीवरी की सलाह दी गई थी लेकिन वो नॉर्मल बेबी बर्थ चाहती थी। उन्होंने 37 साल की उम्र में नॉर्मल डिलीवरी के जरिए बेटी को जन्म दिया। ऐसे में यह सोचना बिल्कुल गलत है कि सिर्फ कम उम्र में ही नेचुरल बेबी बर्थ हो सकता है।
चलिए आपको बताते हैं कि नेचुरल बर्थ डिलीवरी से महिलाओं को क्या-क्या फायदे होते हैं....
जल्दी होती है रिकवरी
नेचुरल बर्थ डिलीवरी का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इमें रिकवरी जल्दी होती है। बच्चे को जन्म देने के कुछ घंटों बाद ही महिलाएं चल फिर सकती हैं जबकि सिजेरियन में उन्हें बेड रेस्ट की सलाह दी जाती है।
कम होता है दर्द
एक्सपर्ट की मानें तो नॉर्मल डिलीवरी के समय महिला के शरीर से एंडोर्फिन नाम का हार्मोन रिलीज होता है। इससे उन्हें बॉडी पेन काफी हद तक कम होता है।
इंफेक्शन का खतरा कम
चूंकि नॉर्मल डिलीवरी के समय कोई अंदरूनी जोखिम नहीं होता इसलिए इससे महिलाएं लंबे समय तक होने वाले दर्द से बची रहती हैं। साथ ही इससे इंफेक्शन का खतरा भी कम होता है।
नहीं पड़ती एनेस्थीसिया की जरूरत
वैजाइना डिलीवरी के समय महिलाओं को एनेस्थीसिया नहीं दिया जाचा है। वैसे तो इससे कोई नुकसान नहीं होता लेकिन कई महिलाओं को इससे लो बीपी, सिरदर्द, चक्कर आना और नर्व को नुकसान हो सकता है।
बच्चे को मिलते हैं गुड बैक्टीरिया
योनि में जन्म के दौरान बच्चा बर्थ कैनाल से होकर गुजरता है। यहां, वो बैक्टीरिया के संपर्क में आता है जो इम्यूनिटी बढ़ाने, मस्तिष्क और पाचन स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माने जाते हैं। साथ ही इससे शिशु को इंफेक्शन का खतरा भी कम होता है।
टीटीएन के कम जोखिम
जन्म से ठीक पहले शिशु के फेफड़ों में तरल पदार्थ से भर जाते हैं, जो डिलीवरी के बाद भी बने रहते हैं। इससे शिशु में टीटीएन नामक स्थिति विकसित हो सकती है। मगर, योनि प्रसव में जन्म के साथ तरल पदार्थ बाहर निकल जाता है इसलिए लगभग कोई जोखिम नहीं रहता।