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Thalassemia: पूरी जिंदगी दूसरे के खून के सहारे जीता है बच्चा, शादी से पहले 1 काम जरूर करें पेरेंट्स

  • Edited By Vandana,
  • Updated: 17 Oct, 2024 02:27 PM
Thalassemia: पूरी जिंदगी दूसरे के खून के सहारे जीता है बच्चा, शादी से पहले 1 काम जरूर करें पेरेंट्स

नारी डेस्कः आपने देखा होगा कि कुछ बच्चों के शरीर में खून की कमी हो जाती है और इस खून की कमी को पूरा करने के लिए उन्हें बार-बार बाहर से खून चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती हैं क्योंकि उनका शरीर खुद से खून नहीं बना पाता लेकिन ऐसा किस हैल्थ समस्या के चलते होता है और इस हैल्थ प्रॉब्लम को कहते क्या है? बता दें इसे थैलेसीमिया (Thalassemia) कहा जाता है। एक ऐसी जन्मजात आनुवांशिक बीमारी है जो बच्चे को अपने माता-पिता के जींस से मिलती है। ऐसी लंबी बीमारी जिसके लिए मरीज को आजीवन निगरानी और उपचार की जरूरत रहती है। इस बीमारी की जानकारी होना बहुत जरूरी है। थैलेसीमिया के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 8 मई को थैलेसीमिया दिवस (World Thalassemia Day ) मनाया जाता है। चलिए, थैलेसीमिया बीमारी के बारे में आपको विस्तार से बताते हैं। 

थैलेसीमिया होने के लक्षण क्या हैं? |Thalassemia Patient Symptoms| Child Thalassemia symptoms

नवजात के शरीर में ये लक्षण 3 माह के बाद दिखने शुरू हो सकते हैं। थैलेसीमिया रोग वाले बच्चे के शरीर में कई तरह के लक्षण नजर आते हैं जो कुछ इस तरह हैं।
बच्चों के नाखून और जीभ में पीलापन रहता है, जिससे पीलिया / जौंडिस का भ्रम पैदा हो जाता हैं।
बच्चे के जबड़ों और गालों में असामान्यता आ जाती हैं।
बच्चे का विकास रूक जाता है और वह उम्र से काफी छोटा नजर आता हैं।
सूखता चेहरा, वजन न बढ़ना, हमेशा बीमार नजर आना, कमजोरी, सांस लेने में तकलीफ, पीली त्वचा, बच्चे में बहुत अधिक चिड़चिड़ापन, सूजा हुआ पेट,आंख के 'सफेद भाग' का पीलापन, सिर और चेहरे की हड्डियां असामान्य रूप से चौड़ी होना आदि ये भी लक्षण दिखाई देते हैं। बीटा-थैलेसीमिया के प्रमुख परिणाम थैलेसीमिया एनीमिया और हड्डियों की असामान्यताएं हैं। कुछ लक्षण जो आमतौर पर तब देखे जा
सकते हैं जब बच्चा कुछ महीने का हो जाता है।

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थैलेसीमिया है क्या?| Causes Of Thalassemia 

यह बच्चे को माता-पिता से जन्मजात तौर पर मिलने वाला ब्लड डिसआर्डर (blood disorder) है। इस बीमारी के चलते शरीर में हीमोग्लोबिन (Hemoglobin) का निर्माण नहीं हो पाता जिससे मरीज के शरीर में एनीमिया (Anemia) के लक्षण दिखाई देते हैं। ज्यादातर इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है जब बच्चे के शरीर में खून की भारी कमी होने लगती है और इस वजह से उसे बाहर से बार-बार खून की आवश्यकता पड़ती है। थैलेसीमिया में, अस्थि मज्जा पर्याप्त आरबीसी (RBC) का उत्पादन नहीं कर पाता, जिसके परिणामस्वरूप एनीमिया होता है।

थैलेसीमिया के 2 प्रकारः मेजर और माइनर 

थैलेसीमिया दो तरह का होता है- माइनर और मेजर थैलेसीमिया।
जब पैदा होने वाले नवजात के माता-पिता, दोनों के जींस में माइनर थैलेसीमिया हो तो बच्चे को मेजर थैलेसीमिया हो सकता है। माता-पिता दोनों को माइनर रोग है तब बच्चे को यह रोग होने की 25 प्रतिशत संभावना होती है। यह काफी घातक हो सकता है लेकिन अगर पेरेंट्स में से किसी एक ही को माइनर थैलेसीमिया हो तो बच्चे को खतरा नहीं होता, कुछ समय बाद समस्या ठीक भी हो जाती है। थैलेसीमिया से बचने के लिए यह बहुत जरूरी है कि विवाह से पहले महिला-पुरुष दोनों इस संबंध में अपना टेस्ट कराएं।
मेजर थैलेसीमिया : यह रोग उन बच्चों में होने की संभावना बहुत अधिक रहती है, जिनके माता-पिता दोनों के जींस में थैलेसीमिया होता है। इसे मेजर थैलेसीमिया कहा जाता है।
माइनर थैलेसीमिया : थैलेसीमिया माइनर उन बच्चों को होता है, जिन्हें प्रभावित जीन माता-पिता दोनों में से किसी एक को होता है।
खून टेस्ट के समय लाल रक्त कणों की संख्या में कमी और उनके आकार में बदलाव की जांच से इस बीमारी को पकड़ा जा सकता है।

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अल्फा ग्लोबिन और बीटा ग्लोबिन|  Alpha and Beta Thalassemia

थैलेसीमिया को अल्फा-थैलेसीमिया और बीटा-थैलेसीमिया (Alpha and Beta Thalassemia) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। बीटा-थैलेसीमिया मेजर सबसे गंभीर है और आमतौर पर इसका पता तब चलता है जब बच्चा बहुत छोटा होता है। रोग की गंभीरता के आधार पर इसे निम्न में वर्गीकृत किया गया है।
थैलेसीमिया माइनर (लक्षण)
थैलेसीमिया इंटरमीडिएट
थैलेसीमिया मेजर
बीटा-थैलेसीमिया मेजर सबसे गंभीर प्रकार है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें दो बीटा-थैलेसीमिया जीन ख़राब होते हैं। इसके परिणामस्वरूप गंभीर एनीमिया होता है जो 4-6 महीने की उम्र में शुरू होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन रिपोर्ट्स के अनुसार,  भारत में हर साल 7 से 10 हजार के करीब थैलीसीमिया पीडि़त बच्चों का जन्म होता है। भारत की कुल जनसंख्या का 3.4 प्रतिशत भाग थैलेसीमिया ग्रस्त है। यह एक हीमोग्लोबीन विकार है और हीमोग्लोबीन दो तरह के प्रोटीन से बनता है अल्फा ग्लोबिन और बीटा ग्लोबिन। जब इन प्रोटीन में ग्लोबिन निर्माण की प्रक्रिया में खराबी होती है तो थैलीसीमिया की समस्या होने लगती है। असामान्य हीमोग्लोबिन की मात्रा जितनी अधिक होगी, थैलेसीमिया की गंभीरता उतनी ही अधिक होगी। इसके कारण लाल रक्त कोशिकाएं (Red blood cell) तेजी से नष्ट होती हैं। रक्त की भारी कमी होने के कारण रोगी के शरीर में बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है। रक्त की कमी से हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है और जब बार-बार रक्त चढ़ाने के चलते रोगी के शरीर में ज्यादा लौह तत्व जमा होने लगता है जो हृदय, लिवर और फेफड़ों में पहुंचकर जानलेवा होता है।

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सीबीसी टेस्ट (CBC Test) से एनीमिया की जांच| Thalassemia Vs Anemia

पूर्ण रक्तकण गणना (Complete blood count) यानि सीबीसी टेस्ट से एनीमिया का पता लगाया जाता है। एक अन्य परीक्षण जिसे 'हीमोग्लोबिन इलैक्ट्रोफोरेसिस' कहा जाता है, से असामान्य हीमोग्लोबिन का पता लगता है। इसके अलावा म्यूटेशन एनालिसिस टेस्ट (एमएटी) के द्वारा एल्फा थैलेसिमिया की जांच के बारे में जाना जा सकता है। अधिक जानकारी इस रोग के विशेषज्ञ से लें।

थैलेसीमिया से बचाव एवं सावधानी | Thalassemia Prevention And Control

थैलेसीमिया पीड़ित को इलाज के दौरान काफी बाहरी रक्त चढ़ाने और दवाइयों की आवश्यकता होती है। यह एक लंबी चलने वाली बीमारी है बहुत से लोग इसका इलाज नहीं करवा पाते, आगे चलकर यह बच्चे के जीवन के लिए खतरा साबित हो सकता है। सही इलाज करने पर 25 वर्ष व इससे अधिक जीने की आशा होती है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, रक्त की जरूरत भी बढ़ती जाती है। इस रोग का सबसे पहला बचाव सर्तकता ही है...

विवाह से पहले महिला-पुरुष, खून जांच कराएं। शादी से पहले ही इस जांच को करवाने हेतु एक स्वास्थ्य कुंडली का निर्माण किया गया है। शादी से पहले ही जोड़े क अपनी जन्म कुंडली के साथ-साथ इसे भी मिलवाना चाहिए ताकि वह जोड़े यह जान सकें कि उनका स्वास्थ्य एक-दूसरे के अनुकूल है या नहीं। स्वास्थ्य कुंडली के तहत सबसे पहली जांच थैलीसीमिया की होगी। साथ ही HIV, हेपाटाइटिस बी और सी का टेस्ट भी करवाएं। इसके अलावा उनके खून की तुलना भी की जाएगी और खून में RH फैक्टर की भी जांच की जाती है। 

गर्भावस्था के दौरान इसकी जांच कराएं। अगर आपको प्रैग्नेंसी में थैलेसीमिया के लक्षण दिख रहे हैं तो डाक्टरी परामर्श पर इलाज जरूर करवाएं ताकि बच्चे को इस बीमारी से बचाया जा सकें।
रोगी की हीमोग्लोबिन 11 या 12 बनाए रखने की कोशिश करें।
समय पर दवाइयां लें और इलाज पूरा लें।

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थैलेसीमिया मरीज का उपचार | Thalassemia Treatment

इस बीमारी से निपटने के लिए विशेषज्ञों की सलाह की जरूरत रहती है। थैलेसीमिया का इलाज, रोग की गंभीरता, स्वास्थ्य समस्याएं और अन्य लक्षणों के अनुसार किया जाता है। थैलेसीमिया के इलाज के लिए रक्त आधान, आयरन केलेशन थेरेपी (Blood Transfusions and Iron Chelation Therapy), अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण या स्टेम सेल प्रत्यारोपण, प्लीहा का सर्जिकल निष्कासन, पूरक बी विटामिन (फ़ॉलिक एसिड) जैसे उपाय किए जा सकते हैं।

1. इसमें मरीज को हर 2 से 3 हफ्तों में खून चढ़ाना पड़ता है, जिससे उसके शरीर में हीमोग्लोबिन के स्तर को कम होने से रोका जाता है। हालांकि, बार-बार खून चढ़ाने से शरीर में आयरन का स्तर बढ़ जाता है, जिसे आयरन ओवरलोड कहा जाता है। आयरन बढ़ने से शरीर के अंदरूनी अंग क्षतिग्रस्त होने लग जाते हैं जो दिल व लीवर को प्रभावित करते हैं। इस स्थिति का इलाज करने के लिए मरीज को विशेष दवाएं दी जाती हैं, जिनकी मदद से अतिरिक्त आयरन को पेशाब के माध्यम से शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।

2. मरीज को स्वस्थ आहार व सप्लीमेंट लेने के लिए कहा जाता है जैसे फोलिक एसिड ताकि शरीर को स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाएं बनाने में मदद मिले।

3. थैलेसीमिया के लिये बोन मैरो या हेमेटोपोएटिक सेल ट्रांसप्लांट की भी संभावनाएं हैं। बोन मैरो या हेमेटोपोएटिक सेल ट्रांसप्लांट में बोन मैरो में थैलेसीमिया पैदा करने वाली कोशिकाओं को मिटाने के लिए हाई कीमोथेरेपी दिया जाता है।ये डोनर आमतौर पर भाई-बहन होते हैं और रोगी जितना युवा होगा इसका परिणाम उतना हीं अच्छा होगा।

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थैलेसीमिया मरीज को क्या हैल्थ इश्यू आते हैं? | Thalassemia Patient Health Issues 

थैलेसीमिया मरीज के शरीर में बार-बार खून चढ़ाने के चलते आयरन ओवरडोज हो जाती है जिससे अंदरूनी अंग दिल-लीवर आदि प्रभावित होते हैं।
थैलेसीमिया के मरीजों में इंफेक्शन होने का खतरा अधिक होता है, खासकर जब उनकी प्लीहा हटा दी जाती है।
मरीज की हड्डियां पतली, भंगुर और टूट जाती हैं, खासकर चेहरे और खोपड़ी में।
एनीमिया के कारण बच्चे की वृद्धि और विकास रूक सकता है, उसे हर समय कमजोरी महसूस होती है। 
हृदय संबंधी समस्याएं जैसे अतालता, कंजेस्टिव हृदय विफलता के परिणामस्वरूप थैलेसीमिया के गंभीर मामले हो सकते हैं। लाल रक्त कोशिकाओं की कमी या असामान्यता से प्लीहा को सामान्य से अधिक मेहनत करनी पड़ती है, जिससे वह बड़ी हो जाती है। स्प्लेनोमेगाली (प्लीहा का विस्तार) एनीमिया और ट्रांसफ्यूज्ड लाल रक्त कोशिकाओं के जीवन को खराब कर देता है। इसलिए, डॉक्टर प्लीहा को हटाने (स्प्लेनेक्टोमी) का सुझाव दे सकते हैं।

थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों की देखभाल कैसे करें?| Thalassemia Patient Health Care 

डॉक्टर से नियमित चेकअप करवाएं। सभी निर्देशों का पालन अवश्य करें।
उपचार कर रहे डॉक्टर से परामर्श किए बिना आयरन या अन्य दवाओं का सेवन ना करें। 
बच्चे को थैलेसीमिया की समस्या ठीक हो गई हो तो भी थैलेसीमिया विशेषज्ञ  से बीमारी के होने की संभावना पर चर्चा जरूर करें।
 

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