कान्हा की नगरी ब्रजभूमि में हनुमान जयंती पर हनुमत आराधना करने की होड़ लग जाती है क्योंकि हनुमत कृपा से ही ब्रजवासियों को गिरराज जी का आशीर्वाद मिल रहा है। मान्यताओं के अनुसार हनुमान जी कालजयी हैं तथा वे हर युग में विराजमान रहते हैं लेकिन त्रेता और द्वापर में उन्होंने ऐसी अदभुत लीलाएं कीे जिनकी आज कल्पना भी नही की जा सकती। यदि वे मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम को भरत के समान प्रिय हैं तो द्वापर में उन्होंने ब्रज में गोवर्धन को स्थापित कर अभूतपूर्व मानव कल्याण किया।
ब्रज में गोवर्धन के आने के बारे में ब्रज के महान परम तपस्वी संत नागरीदास बाबा ने बताया कि द्वापर में मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम जब रामेश्वरम में समुद्र पर पुल बना रहे थे और दक्षिण भारत के सभी पर्वत, वृक्ष आदि उसमें लग गये थे फिर भी शत योजन लम्बे और दस योजन चैड़े पुल का निर्माण चैथे दिन भी पूरा नही हो पाया था तो हनुमान जी उत्तर भारत की ओर चले और हिमालय के पास पहुंचे। उन्होंने बताया कि उन्हें वहां द्रोणाचल का सात कोस का विस्तृत शिखर गोवर्धन मिला जिसे उन्होंने सेतु बन्ध रामेश्वरम बनाने के लिए उत्तम समझा।
पवन पुत्र ने उन्हें उठाना चाहा किंतु उनकी सारी शक्ति लगने के बावजूद शिखर टस से मस न हुआ। रामावतार के समय जब देवगण उनकी मंगलमयी लीला का दर्शन करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुए थे तो उसी समय गोवर्धन भी गोलोक से पृथ्वी पर आए थे। संत ने बताया कि इसके बाद हनुमान जी ने अपने प्रभु का ध्यान किया ही था कि उन्हें शिखर गोवर्धन की महत्ता मालूम पड़ गयी।हनुमान जी ने कहा कि ये तो भगवान के विगृह साक्षात गोवर्धन हैं तथा इनकी प्रत्येक शिला शालग्राम के समान है। इसके बाद ही हनुमान जी ने गोवर्धन के चरणों में प्रणाम किया और बताया कि वे तो उन्हें प्रभु के श्री चरणों में ले जाना चाहते है। सेतु में उनके लग जाने से प्रभु श्रीराम उनके ऊपर अपने चरण कमल रखते हुए पुल को पार करेंगे।
इसके बाद तो पवनसुत ने उन्हें उठा लिया और अपने बांये हाथ पर गोवर्धन को लेकर रामेश्वरम के लिए रवाना हुए। संत ने बताया कि पांचवे दिन शेष पुल जब पूरा हो गया तो श्रीराम ने वानर सेना को आदेश दिया कि वह जाकर लोगों से कहें कि जो वृक्ष या पर्वत जहां पर है वहीं छोड़ दें। हनुमान जी उस समय गोवर्धन को वर्तमान गोवर्धन कस्बे तक ले आए थे और श्रीराम की आज्ञा से गोवर्धन को वही स्थापित कर दिया। इससे गोवर्धन बहुत दु:खी हुए और हनुमान जी से प्रार्थना की कि वे श्रीराम से कहें कि उनका उपयोग और पुल में कर लें। हनुमान जी ने जब गोवर्धन की व्यथा बताई तो श्रीराम ने कहा कि उनसे जाकर कह दो कि द्वापर में मयूरमुकुटी वंशी विभूषित वेष में जब आएंगे तो ब्रज बालकेां के साथ न केवल उनके ऊपर क्रीड़ा करेंगे बल्कि अनवरत सात दिन तक उन्हें अपनी उंगली पर धारण करेंगे और वे स्वयं उनकी पूजा करेंगे एवं ब्रजवासी भी उनकी पूजा करेंगे।
हनुमान जी के इसी कल्याणकारी कार्य के कारण समूचे ब्रज मंडल में हनुमान जी के हजारों मन्दिर हैं जिन पर भक्त श्रद्धा पूर्वक आराधना करते हैं तथा हनुमान जी उनके कष्टों का निवारण करते हैं मघेरावाले हनुमान जी की ओर तो भक्त चुम्बक की तरह खिंचे चले आते हैं। जिस पर हनुमत कृपा हो जाती है उसे या तो मन्दिर बनाने का आदेश मिलता हैं या जिस पर अधिक कृपा होती है उसे स्वप्न में बताते हैं कि मैं अमुक स्थान पर हूं तथा मुझे निकालकर विधिवत पूजन अर्चन मानव कल्याण के लिए करो।
गोवर्धन परिक्रमा में तो कदम कदम पर हनुमान जी के विगृह के साक्षात दर्शन कर भक्त धन्य हो जाता है। ऐसे ही एक भक्त पदम सिंह ने बताया कि बहुत समय पहले हनुमान जी ने उन्हें स्वप्न दिया था कि मथुरा शहर के डीग गेट पर रेलवे लाइन के सहारे करील की झाड़ियों के पीछे वे है तथा उन्हें उसी के पास स्थापित कर पूजन अर्चन करो। उसके बाद हनुमत आज्ञा से उन्होंने वहां मन्दिर अन्य लोगों की मदद से बनवाया। बहुत ही छोटी जगह पर बने इस मन्दिर का हनुमान जी का विगृह इतना प्रभावशाली है कि जो भी यहां पर भक्ति भाव से आता है कभी निराश नही होता है तथा मंगलवार, शनिवार एवं हनुमान जयंती पर यहां पर भक्तों की बहुत अधिक संख्या आती है। उन्होंनें बताया कि हनुमान जयंती पर इस बार भी मन्दिर में आनेवाले प्रत्येक भक्त को भंडारे के रूप में प्रसाद दिया जाएगा। कुल मिलाकर हनुमान जयन्ती पर ब्रज का कोना कोना हनुमतमय हो जाता है।