नारी डेस्क: हर मां- बाप चाहते हैं कि उनकी बच्चों को दुनियाभर की खुशियां मिले। पर जरा सोचिए उन मां- बाप पर क्या बीतती होगी जिनकी बेटियां हवस का शिकार हो जाती हैं। कुछ को तो मौत गले लगा लेती हैं वहीं जो जिंदा रह जाती हैं उन्हें लोगों के ताने पल- पाल मारते हैं। कोलकाता में डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या ने पूरे देश को फिर से हीला कर रख दिया है। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर छिड़ी बहस के बीच राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी राष्ट्र से जागने का आह्वान किया है।
राष्ट्रपति ने अपना आक्रोश किया जाहिर
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर आक्रोश जाहिर करने के साथ ही इस पर अंकुश लगाने का आह्वान करते हुए बुधवार को कहा कि बस! बहुत हो चुका। राष्ट्रपति ने कहा कि अब समय आ गया है कि भारत ऐसी ‘‘विकृतियों'' के प्रति जागरूक हो और उस मानसिकता का मुकाबला करे जो महिलाओं को ‘‘कम शक्तिशाली'', ‘‘कम सक्षम'' और ‘‘कम बुद्धिमान'' के रूप में देखती है। उनके चेहरे पर बेटियाें के लिए दुख और आरोपियों के प्रति गुस्सा साफ नजर आ रहा था।
लोगों की मानसिकता पर जताई हैरानी
मुर्मू ने एक विशेष लेख में कहा- ‘‘महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के लिए, कुछ लोगों द्वारा महिलाओं को वस्तु के रूप में देखने की यही मानसिकता जिम्मेदार है। अपनी बेटियों के प्रति यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उनके भय से मुक्ति पाने के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करें।'' नौ अगस्त को कोलकाता के एक अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और उसकी हत्या का जिक्र करते हुए ‘‘स्तब्ध और व्यथित'' राष्ट्रपति ने कहा कि इससे भी अधिक निराशाजनक बात यह है कि यह महिलाओं के खिलाफ अपराधों की श्रृंखला का हिस्सा है। राष्ट्रपति ने लिखा,-‘‘कोई भी सभ्य समाज बेटियों और बहनों पर इस तरह के अत्याचार की अनुमति नहीं दे सकता। राष्ट्र का आक्रोशित होना निश्चित है, और मैं भी आक्रोशित हूँ।'' ‘‘महिला सुरक्षा: बस! बहुत हो चुका''
राष्ट्रपति ने पूछे सवाल
बातचीत के दौरान, राष्ट्रपति ने रक्षाबंधन पर स्कूली बच्चों के एक समूह के साथ अपनी हालिया मुलाकात को याद किया। उन्होंने दिसंबर 2012 में दिल्ली में एक फिजियोथेरेपी इंटर्न के साथ बर्बर बलात्कार और उसकी हत्या का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘हाल ही में, मैं एक अजीब दुविधा में फंस गई थी, जब राष्ट्रपति भवन में राखी मनाने आए कुछ स्कूली बच्चों ने मुझसे मासूमियत से पूछा कि क्या उन्हें भरोसा दिया जा सकता है कि भविष्य में ‘‘निर्भया'' जैसी घटना की पुनरावृत्ति नहीं होगी?'' मुर्म ने कहा कि आक्रोशित राष्ट्र ने योजनाएं बनाईं और रणनीतियाँं तैयार कीं, और पहल से कुछ फर्क पड़ा। उन्होंने कहा- ‘‘राष्ट्रीय राजधानी में हुई उस त्रासदी के बाद के 12 वर्षों में, इसी तरह की अनगिनत त्रासदियां हुई हैं। हालांकि उनमें से कुछ ने ही पूरे देश का ध्यान खींचा। इन्हें भी जल्द ही भुला दिया गया। क्या हमने सबक सीखा?
राष्ट्रपति ने लोगों को किया जागरूक
राष्ट्रपति ने कहा कि ‘‘कानून बनाए गए और सामाजिक अभियान चलाए गए। लेकिन इसके बावजूद कुछ ऐसा है जो लगातार हमारे रास्ते की बाधा बना हुआ है और हमें परेशान करता है।'' उन्होंने कहा- ‘‘अब समय आ गया है कि न केवल इतिहास का सीधे सामना किया जाए, बल्कि अपनी आत्मा के भीतर झांका जाए और महिलाओं के खिलाफ अपराध की इस बीमारी की जड़ तक पहुंचा जाए।'' राष्ट्रपति ने कहा कि उनका यह दृढ़ मत है कि इस तरह के अपराधों की स्मृतियों पर भूल का परदा नहीं पड़ने देना चाहिए। राष्ट्रपति ने कहा कि सबसे पहले जरूरत है कि ईमानदारी और बिना किसी पूर्वाग्रह के आत्मावलोकन किया जाए। उन्होंने कहा- ‘‘समय आ गया है कि जब एक समाज के नाते हमें स्वयं से कुछ मुश्किल सवाल पूछने की जरूरत है। हमसे गलती कहां हुई? और इन गलतियों को दूर करने के लिए हम क्या कर सकते है? इन सवालों का जवाब खोजे जाने तक हमारी आधी आबादी, बाकी आधी आबादी की तरह स्वतंत्रतापूर्वक नहीं रह सकती।''