आज यानी 29 दिसंबर को सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती है। वे सिख धर्म के अंतिम गुरु थे। सिख धर्म में गुरु गोबिंद सिंह सिंह का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज ने सिख धर्म के लिए कई नियम बनाए, जिसका पालन आज भी किया जाता है। उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु के रूप में स्थापित किया । उन्होंने सामाजिक समानता का पुरजोर समर्थन किया और भेदभाव के खिलाफ खड़े हुए, इसलिए लोगों के लिए एक महान प्रेरणा के रूप में उभरे। वे सिख धर्म के 9वें गुरु तेगबहादुर के पुत्र थे। शौर्य और साहस के प्रतीक गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को बिहार के पटना में हुआ। आइए इस अवसर पर जानते हैं उनके उन 10 अनमोल विचारों के बारे में, जिनसे आप उनके व्यक्तित्व से परिचित हो सकते हैं और एक आदर्श जीवन मूल्य अपने लिए बना सकते हैं....
गुरु गोबिंद सिंह जी के 10 उपदेश
1. गुरु गोबिंद सिंह जी ने हर व्यक्ति के जीवन में गुरु के महत्व को बताया है। उन्होंने कहा है कि गुरु के बिना किसी भी व्यक्ति को ईश्वर प्राप्त नहीं हो सकते हैं। ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु आवश्यक हैं।
2. धर्म का मार्ग ही सत्य का मार्ग है। सत्य की हमेशा जीत होती है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन में हमेशा इस बात का अनुसरण किया।
3. गुरु गोबिंद सिंह जी कहते थे कि 'भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन'। इसका मतलब है कि किसी भी इंसान को डरने की जरूरत नहीं है और न ही उसे किसी अन्य इंसान को भयभीत करना चाहिए। गुरु गोबिंद सिंह जी तो स्वयं महान बलिदान की प्रतिमूर्ति हैं। मुगलों के आगे वे कभी भयभीत नहीं हुए, हमेशा निडर रहकर शान से जीवन व्यतीत किया।
4. गुरु गोबिंद सिंह जी का मानना था कि हर मनुष्य का जन्म अच्छे कर्मों के लिए हुआ है। उसे बुरे कर्मों से दूर ही रहना चाहिए।
5. गरीबों और जरूरतमंद लोगों की सेवा और मदद करना ही मानव धर्म है। इंसान का इंसान से प्रेम करना ही सच्ची ईश्वर भक्ति है।
6. गुरु गोबिंद सिंह जी कहते थे कि किसी भी व्यक्ति को अपने धन, कुल, जाति और जवानी का घमंड नहीं करना चाहिए।
7. जो भी काम मिला हो, उसे पूरे मन से जिम्मेदारी के साथ करें। उसमें कोई कोताही न करें।
8. दूसरे की निंदा करना, उससे द्वेष रखना गलत है। अपनी मेहनत पर विश्वास करें।
9. आप कोई भी वचन दो, तो उसे पूरा करो।
10. हर प्रकार के नशे से दूर रहना चाहिए। दुश्मन से साम, दाम, दंड, भेद से निपटें, अंत में युद्ध का विकल्प रखें।