देश में कोरोना वैक्सीनेशन को लेकर बड़े पैमाने पर अभियान शुरु हो चुका है। हजारों हेल्थ वर्कर्स देशभर में कोरोना टीका पहुंचाने में लगे हुए है लेकिन यह पहला ऐसा अभियान नहीं है। इससे पहले भी देश में बड़े पैमाने पर कई कैंपेन किए जा चुके हैं। आगरा में रहने वाली हेल्थ वर्कर माधुरी मिश्रा भी एक ऐसे ही टीकाकरण अभियान का हिस्सा रह चुकी हैं।
पिछले 4 सालों से चलती हैं पैदल ताकि...
अब दिनों को याद करते हुए माधुरी ने बताया कि वह दूरस्थ इलाकों तक टीका पहुंचाने के लिए 8 कि.मी. तक पैदल चलकर जाती थीं। यहीं नहीं, तब से लेकर आज तक वो इस तरह के अभियानों का हिस्सा बनीं हुई हैं। वह पिछले 30 साल से हर दिन 8 कि.मी. पैदल चलकर चेचक (स्मॉल पॉक्स) और बाकी बीमारी से जूझ रहे बच्चों को स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाती हैं।
..तब गांव में नहीं होती थी एंट्री
माधुरी बताती हैं कि तमाम बंदिशों को तोड़कर मैं एक नर्स बनीं। उस समय स्मॉलपॉक्स की महामारी फैली हुई थी और उसे खत्म करने के लिए चल रहे टीकाकरण अभियान को 5 साल हो चुके थे। लोगों में उस समय जागरूकता का काफी अभाव था। कुछ लोग तो डर के कारण टीका लगवाने से भी इंकार कर देते थे। यहां तक कि कुछ गांव में तो उन्हें प्रवेश तक नहीं करने दिया जाता था।
वैक्सीनेशन को लेकर लोगों के मन में रहता था शक
लोगों को डर था कि वैक्सीन लगवाने से वो नपुंसक हो जाएंगे या उन्हें कोई बीमारी हो जाएगी। माधुरी को लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन वो अपने रास्ते से नहीं हटी और दूरस्थ इलाकों में जाकर लोगों को समझाती रहीं। इसी तरह टीकाकरण का काम होता रहा।
पढ़ाई के लिए की दर्जी की दुकान में नौकरी
1978 में उनके जब माधुरी के पिता का देहांत हो गया था तो उनके परिवार ने आगे पढ़ाने से मना कर दिया। पढ़ाई करने के लिए उन्होंने एक टेलर की दुकान पर नौकरी शुरू कर दी। इससे उन्होंने ANM के कोर्स और घर खर्च के लिए पैसे जमा किया। पैसे इकट्ठा करके उन्होंने जैसे-तैसे ANM (Auxiliary Nurse Midwife) की पढ़ाई पूरी करके नर्स की नौकरी करने लगी। 20 साल के करियर में उन्होंने करीब 90 फीसदी टीकाकरण अभियान में हिस्सा लिया है।
घर में घुसने नहीं देते थे लोग
माधुरी बताती हैं कि मुझे पता था मेरा काम कितनी जरूरी है इसलिए मैं गांव-गांव जाकर बच्चों को टीका लगाती थी। कई बार लोग उनसे बदतमीजी करते और कुछ तो घर में घुसने भी नहीं देते लेकिन फिर भी वो उन घरों में वापिस जाकर समझाती थी और उन्हें समझाने की पूरी कोशिश करती थी।
रिटायरमेंट के बाद भी सेवा के लिए तैयार
परीक्षा क्लीयर होने के बाद उन्होंने 10 साल आगरा के बाह ब्लॉक में काम किया, जहां उन्होंने 90% लोगों तक टीका पहुंचाया। उसके बाद उन्होंने 20 साल फतेहबाद ब्लॉक में काम किया, जहां वह 90% लोगों को टीका लगवाने में कामयाब रहीं वो अब भी रुकना नहीं चाहती। 28 सालों के बाद उन्होंने अब रिटायरमेंट लिया था लेकिन बावजूद इसके उन्होंने अधिकारियों से कहा कि विभाग को जब भी जरूरत होगी वह उसके लिए तैयार रहेंगी।
बीमारी के कारण हुई पति की मौत
आगरा के CMO, डॉ. आर.सी. पांडे उन्हें रॉकस्टार कहते हैं क्योंकि उन्होंने जब भी काम किया टीकाकरण अभियान में बढ़ोतरी ही हुई। पर्सनल लाइफ की बात करें तो माधुरी के पति बीमारियों के चलते 4 साल पहले गुजर गए। उनके दो बेटे हैं जोकि काम करते हैं।
वाकई, इतने सालों से माधुरी जो काम कर रही हैं वो काफी काबिले तारीफ है।