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क्या आप जानते हैं कौन थे पंज प्यारे? गुरु नानक जयंती पर जानिए नगर कीर्तन का महत्व भी

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 15 Nov, 2024 08:32 AM
क्या आप जानते हैं कौन थे पंज प्यारे? गुरु नानक जयंती पर जानिए नगर कीर्तन का महत्व भी

नारी डेस्क: गुरु नानक जयंती सिख समुदाय का एक महत्वपूर्ण पर्व है जो गुरु नानक देव जी के जन्मदिवस  के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन नगर कीर्तन का आयोजन विशेष रूप से किया जाता है, जिसका सिख संस्कृति और धर्म में बड़ा महत्व है। इसके बाद रात के वक्त लाखों दीये जलाए जाते हैं। चलिए आज इस खास पर्व पर जानते हैंं  नगर कीर्तन का महत्व और किसे कहा जाता है पंज प्यारे

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 नगर कीर्तन का महत्व


कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक देव जी की जयंती पर नगर कीर्तन  निकाला जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के पहले से ही हर दिन सुबह-सुबह प्रभात फेरियां निकाली जाती है, इसके दिन  जयंती के दिन विशाल नगर कीर्तन का आयोजन होता है। । इसमें पंज प्यारे (पांच आदरणीय पुरुष) अग्रिम पंक्ति में चलते हैं और उनके पीछे गुरुग्रंथ साहिब को सजाई हुई पालकी में सम्मानपूर्वक रखा जाता है। इस दौरान कई श्रद्धालु, कीर्तन (धार्मिक भजन) गाते हुए शामिल होते हैं और रास्ते में 'लंगर' (सामूहिक भोजन) की व्यवस्था भी होती है। 

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कीर्तन में श्रद्धालुओं का होता है स्वागत

नगर कीर्तन का मुख्य उद्देश्य गुरु नानक देव जी के उपदेशों और शिक्षाओं का प्रचार करना है। इस दौरान श्रद्धालु सेवा, करुणा, और भाईचारे का संदेश फैलाने के लिए निःस्वार्थ सेवा में शामिल होते हैं। इस कीर्तन में शामिल श्रद्धालुओं का जगह-जगह स्वागत किया जाता है नगर भ्रमण के बाद अंत में उन्हें गुरुद्वारे में वापस लाकर फिर से विधि-विधान के साथ स्थापित कर दिया जाता है। 

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खालसा पंथ के 'पंज प्यारे' कौन थे?

*पंज प्यारे* वे पाँच सिख पुरुष थे जिन्होंने खालसा पंथ की स्थापना के समय गुरु गोबिंद सिंह जी के आदेश पर अपनी जान देने का संकल्प लिया। इनके नाम हैं:

भाई दया सिंह (लाहौर, पंजाब)

भाई धर्म सिंह (हस्तिनापुर, उत्तर प्रदेश)

भाई हिम्मत सिंह  (जगन्नाथ, उड़ीसा)

भाई मोहकम सिंह(द्वारका, गुजरात)

भाई साहिब सिंह (बिदर, कर्नाटक)


गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की और इन पांच पुरुषों को अमृत छकाकर (पवित्र जल पिलाकर) खालसा का दर्जा दिया। पंज प्यारों का खालसा पंथ में विशेष स्थान है और वे साहस, त्याग, और समर्पण का प्रतीक माने जाते हैं। इन परंपराओं और धार्मिक समारोहों का उद्देश्य एकता, शांति, और धर्म के प्रति निष्ठा को बढ़ावा देना है।
 

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