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बच्चा बार-बार करता था डायपर गीला, मां ने गूगल से जाना तो निकली टाइप 1 डायबिटीज की बीमारी

  • Edited By Anu Malhotra,
  • Updated: 19 Jul, 2021 11:57 AM
बच्चा बार-बार करता था डायपर गीला, मां ने गूगल से जाना तो निकली टाइप 1 डायबिटीज की बीमारी

नवजात शिशुओं की देखभाल के लिए अधिक से अधिक सतर्कता की आवश्यकता होती है। नवजात शिशु का शरीर बेहद संवेदनशील होता है जिस वजह से उन्हें एक्सट्रा केयर की जरूरत पड़ती है, यहां आपकी जरा सी भी लापरवाही शिशु के लिए बहुत हानिकारक साबित हो सकती है। नवजात बच्चे के लिए क्या सही है और क्या गलत है इसके लिए पेरेंट्स को जानकारी होना बहुत जरूरी है।  

नवजात बच्चे में दिखी टाइप 1 डायबिटीज की बीमारी
आमतौर पर वैसे तो हर पैरेंट्स बच्चों की सेहत को लेकर जागरूक रहते हैं लेकिन कई बार जरा से अनदेखी बच्चों के लिए जोखिम का कारण बन जाती हैं, ऐसा ही कुछ देखने को मिला कैलिफोर्निया में जहां, एक मां अगर अपने 16 महीने के बेटे मैडॉक्स की शारीरिक गतिविधियों को देखते हुए सावधानी न बरतती तो बच्चे की टाइप 1 डायबिटीज से जान चली जाती। 

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बच्चों में दिखे यह लक्षण तो हो जाएं सावधान
दरअसल, कैलिफोर्निया के कर्टनी मूर ने देखा कि उनका 16 महीनें का बच्चा मैडॉक्स बार-बार डायपर गीला करता है और उसे प्यास भी जरूरत से ज्यादा लग रही है। वह बहुत जल्द थक भी जाता है। इन सभी लक्षणों को कर्टनी ने नोटिस किया और  पति जैसन को बताया। उन्होंने सोचा कि शायद गर्मी की वजह से ऐसा हो रहा होगा, लेकिन मैडॉक्स का कुछ दूरी तक पहुंच कर ही थक जाना और लगातार वजन घटने से कर्टनी काफी चिंतित हो गई थी। 

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बच्चे का ब्लड शुगर लेवल 700 के करीब पहुंचा
उसने गूगल पर सर्च किया तो पता चला कि ये लक्षण टाइप 1 डायबिटीज के हैं। वह तुरंत मैडॉक्स को लेकर पास के अस्पताल पहुंची। जहां डॉक्टरों ने बताया कि मैडॉक्स का ब्लड शुगर लेवल 700 के करीब है, जबकि स्वस्थ बच्चे का शुगर लेवल 100 से 180 तक होना चाहिए। 

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टाइप 1 डायबिटीज का क्या होता है असर
डॉक्टरों ने बताया कि मैडॉक्स का पैनक्रियाज बहुत कम इंसुलिन बनाता है। डॉक्टरों ने मैडॉक्स को ‘कीटोएसिडोसिस’ नामक जानलेवा डायबिटिक वर्जन से पीड़ित बताया, जो टाइप 1 की कैटेगरी में आता है। इससे शरीर न के बराबर इंसुलिन बनाता है जो ब्लड शुगर को एनर्जी में तब्दील नहीं कर रहा है।

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जानिए कितनी खतरनाक है टाइप 1 डायबिटीज की बीमारी 
इस बीमारी पर डॉक्टरों ने बताया कि यह बीमारी ऑटो इम्यून है जिसमें शरीर में ही रिएक्शन होता है, जो पैनक्रियाज में इंसुलिन बनाने वाले सेल्स को ही मारता है। इससे बच्चे के शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है और उन्हें अलग से इंसुलिन के डोज देने पड़ते हैं। बचपन और किशोरावस्था में ही टाइप 1 डायबिटीज का पता चल जाता है। इस बीमारी के कारण कम उम्र में ही लोग किडनी और दिल की बीमारी का शिकार हो जाते हैं।

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बाकि पेरेंट्स को जागरूक करने के लिए कर्टनी और जेसन ने चलाया अभियान
वहीं अब कर्टनी और जेसन ने अपने बच्चे को इस बीमार से जुझते देख बाकि पेरेंट्स को भी जागरूक करने की कोशिश की।  बेटे को बचाने के बाद अब वे अमेरिका में टाइप 1 डायबिटीज से प्रभावित 16 लाख बच्चों को सेहतमंद बनाए रखने के लिए एक कैंपेन चला रहे हैं। वे इस बीमारी के लक्षण अन्य पैरेंट्स के साथ साझा कर रहे है तारि उन्हें अतिरिक्त जागरूक किया जा सके।

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