हिंदू कैलेंडर के महत्वपूर्ण दिनों में से एक, आमलकी एकादशी को भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के भक्तों द्वारा बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। आमलकी एकादशी का पालन करने वाले लोग इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि आंवला के पेड़ में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का वास होता है। मगर, क्या आप जानते हैं कि इस पेड़ की पूजा की परंपरा कब और कैसे शुरू हुआ। चलिए आपको बताते हैं इसकी दिलचस्प कहानी...
वैवाहित महिलाएं क्यों करती हैं पूजा?
महिलाएं आंवले के पेड़ के नीचे पूजा करती हैं, ताकि उन्हें संतान प्राप्ति हो या उनकी संतान के जीवन में सुख-शांति बनी रहे। विवाहित महिलाएं आंवले के पेड़ की जड़ में दूध चढ़ाती हैं और पेड़ के चारों ओर एक कच्चा धागा बांधती हैं, ताकि उनका वैवाहिक जीवन खुशियों से भरा रहे।
क्यों होती है आंवला के पेड़ की पूजा?
आंवला एक पवित्र पेड़ है। किंवदंतियों के अनुसार, आंवला पेड़ सिर्फ भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी ही नहीं बल्कि भगवान दामोदर या कृष्ण और देवी राधा भी निवास करते हैं। आंवला पेड़ के फल अपने महान औषधीय मूल्य के लिए जाने जाते हैं और आयुर्वेदिक में उपयोग किए जाते हैं। आंवला आज सुपरफूड्स की सूची में सबसे ऊपर है क्योंकि यह विटामिन सी से भरपूर होता है, जो प्रतिरक्षा को बढ़ाता है। जो लोग आंवला के पेड़ की पूजा करते हैं वे इस दिन आंवले से खाद्य सामग्री भी तैयार करते हैं।
कैसे हुई आंवला पेड़ की उत्पत्ति?
हिंदू किंवदंतियों के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु द्वारा राक्षस कुष्मांडा का वध किया गया था और यही कारण है कि उनके भक्त इसे कुष्मांडा नवमी के रूप में मनाते हैं। यह दिन भगवान विष्णु और उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी के लिए एक विशेष महत्व रखता है यही कारण है कि लोग इस दिन एक आंवले के पेड़ की पूजा करते हैं। कुछ लोग इस दिन को सत्य युगादि भी कहते हैं क्योंकि उनका मानना है कि सत्य युग, सत्य युग या सतयुग की शुरुआत इसी दिन हुई थी।
माता लक्ष्मी ने शुरू किया आंवला पूजा की परंपरा
ऐसा भी कहा जाता है कि देवी लक्ष्मी ने आंवला नवमी पर आंवले के पेड़ के नीचे पूजा और भोजन करने की प्रथा शुरू की थी। हिंदू पौराणिक कहानी के अनुसार, देवी लक्ष्मी एक बार पृथ्वी पर भ्रमण करने आई थीं। रास्ते में उन्हें भगवान विष्णु और शिव की एक साथ पूजा करने की इच्छा हुई। लक्ष्मी माता ने सोचा कि कैसे विष्णु और शिव की एक साथ पूजा की जा सकती है। तब उन्हें एहसास हुआ कि आंवले में तुलसी और बेल के गुण पाए जाते हैं। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल शिव को इसलिए उन्होंने आंवले की पूजा की और भगवान शिव और विष्णु दोनों को प्रसन्न किया।