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बिना शराब के सेवन के भी बढ़ रहा फैटी लिवर का खतरा, जानिए कैसे बचें?

  • Edited By Priya Yadav,
  • Updated: 28 Sep, 2024 11:01 AM
बिना शराब के सेवन के भी बढ़ रहा फैटी लिवर का खतरा, जानिए कैसे बचें?

नारी डेस्क: देश में फैटी लिवर की समस्या तेजी से बढ़ रही है, जिसमें नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) का प्रकोप खासतौर पर चिंता का विषय बन गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव अपूर्व चंद्रा ने कहा है कि हर 10 में से 1 से 3 भारतीय इस बीमारी से प्रभावित हैं, भले ही वे अल्कोहल का सेवन नहीं करते हों। यह बीमारी मेटाबोलिक disorders से जुड़ी है और मोटापा, डायबिटीज, और हृदय रोगों का खतरा बढ़ा सकती है। 

फैटी लिवर और मेटाबोलिक का संबंध

फैटी लिवर का सीधा संबंध शरीर में मौजूद मेटाबोलिक disorders से होता है। मोटापा, ब्लड शुगर का अनियंत्रित स्तर, और हृदय संबंधी समस्याएं, इन सभी बीमारियों के साथ फैटी लिवर की समस्या गंभीर रूप ले सकती है। बिना अल्कोहल के सेवन के भी, खराब जीवनशैली, अस्वस्थ आहार और शारीरिक गतिविधि की कमी से यह बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है। 

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66% मौतें गैर-संक्रामक रोगों से (Non-Communicable Diseases)

भारत में गैर-संक्रामक रोगों (Non-Communicable Diseases) से होने वाली मौतों की संख्या चिंताजनक है। लगभग 66% से अधिक मौतें इसी श्रेणी में आती हैं, जिसमें फैटी लिवर भी एक महत्वपूर्ण कारण है। स्वास्थ्य मंत्रालय का मानना है कि तंबाकू सेवन, शराब का उपयोग, खराब आहार, शारीरिक गतिविधि की कमी और वायु प्रदूषण इन रोगों के मुख्य कारक हैं।

नई गाइडलाइंस और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की भूमिका

फैटी लिवर के इलाज और रोकथाम के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने संशोधित ऑपरेशनल गाइडलाइंस और ट्रेनिंग मैनुअल जारी किए हैं। इन गाइडलाइंस का उद्देश्य मरीजों की देखभाल और उपचार के नतीजों को बेहतर बनाना है। इसके तहतसामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और चिकित्सा अधिकारियों को फैटी लिवर की पहचान, देखभाल और इलाज के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। 

स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की भूमिका काफी अहम है, क्योंकि वे जमीनी स्तर पर काम करते हुए लोगों को जागरूक कर सकते हैं। नए दिशा-निर्देशों के जरिए मरीजों की स्थिति के आधार पर उन्हें सही उपचार और परामर्श देना सुनिश्चित किया जाएगा।

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बीमारी की पहचान और टेस्टिंग

NAFLD की पहचान के लिए समय पर टेस्टिंग जरूरी है। संशोधित गाइडलाइंस के अनुसार, मरीज के लक्षणों की जांच की जानी चाहिए, जैसे कि बीपी, शुगर लेवल, और अन्य बीमारियों का इतिहास। इसके साथ ही, परिवार में किसी अन्य व्यक्ति को फैटी लिवर या संबंधित बीमारियों का इतिहास है या नहीं, इसकी भी जानकारी ली जानी चाहिए। 

इसके अलावा, मरीज को वेट मैनेजमेंट और स्वस्थ जीवनशैली के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए ताकि वे बीमारी को और गंभीर होने से रोक सकें।

वेट मैनेजमेंट और सही जीवनशैली अपनाने का महत्व

फैटी लिवर का सबसे बड़ा कारण शरीर में वसा का अत्यधिक जमा होना है। इसलिए, मरीजों को अपने वजन पर नियंत्रण रखना बेहद जरूरी है। संशोधित गाइडलाइंस में यह भी बताया गया है कि सही आहार और नियमित एक्सरसाइज करने से न केवल फैटी लिवर को नियंत्रित किया जा सकता है, बल्कि इसके परिणामस्वरूप अन्य मेटाबोलिक विकारों से भी बचा जा सकता है।

जागरूकता और सामूहिक प्रयास की जरूरत

फैटी लिवर जैसी गंभीर बीमारी से निपटने के लिए सरकार द्वारा जारी गाइडलाइंस का पालन करना जरूरी है। सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की भूमिका और सही जानकारी का प्रसार ही फैटी लिवर की बढ़ती समस्या को काबू में ला सकता है। 

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इसलिए, समय रहते बीमारी की पहचान, स्वस्थ जीवनशैली, और सही उपचार फैटी लिवर को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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