लेखिका एवं इन्फोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष सुधा मूर्ति ने मॉडर्न पैरेंट्स को बड़ी सीख दी है। उनका कहना है कि बच्चों के लिए पैसा उपलब्ध कराना ही सबसे महत्वपूर्ण चीज नहीं है, बल्कि उनके साथ बिताने के लिए समय निकालना कहीं अधिक मूल्यवान है। करोड़ों की मालकिन के पेरेंटिंग एडवाइस लेकर आप अपने बच्चे को मॉडर्न के साथ-साथ ट्रेडिशनल सीख दे सकते हैं।
पैरेंट्स के पास बच्चों के साथ बैठने का समय नहीं
सुधा मूर्ति ने चार दिवसीय मातृभूमि इंटरनेशनल फेस्टिवल ऑफ लेटर्स (एमबीआईएफएल) में हिस्सा लिया, जहां उन्होंने कहा कि- पिता को आज के बच्चों के दबाव को समझने का प्रयास करना चाहिए और उन्हें परिवार के समर्थन का आश्वासन देना चाहिए। मूर्ति ने कहा, "आज आर्थिक स्थिति बदल गई है और परिवार का ढांचा इस तरह टूट गया है कि पुराने दिनों की तरह बच्चों को अपने दादा-दादी के साथ बिताने का समय मुश्किल से मिलता है। किसी के पास बच्चों के साथ बैठने और उनसे बात करने का समय नहीं है।
बच्चे की तुलना ना करें किसी और से:सुधा मूर्ति
इन्फोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष का कहना है कि-‘‘अपने बच्चे की तुलना किसी अन्य से न करें कि उसने परीक्षा में बेहतर ग्रेड प्राप्त किया है। प्रत्येक बच्चा अद्वितीय है और उनकी अपनी प्रतिभा होती है।'' मूर्ति की बेटी अक्षता ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की पत्नी हैं। सुधा जी खुद एक शिक्षक, लेखक और समाज सेविका भी हैं।
बच्चों को पार्टियों से दूर रखती थी सुधा जी
दरसअल हाई-प्रोफाइल परिवार से होने के बावजूद सुधा जी अपने बच्चों को पार्टियों से दूर रखती हैं और उन्हें पैसों का मूल्य भी सिखाया है। उन्होंने अपने बच्चों को यही सिखाया है कि अपने पैसों का इस्तेमाल उन लोगों की मदद करने में किया जाना चाहिए जो उनसे कम भाग्यशाली हैं। ऐसे में हर पैरेंट्स को चाहिए कि वह अपने बच्चों को सिखाए कि फिजूलखर्चों से दूर कैसे रहना चाहिए। बच्चों को पैसों का मोल बताने का यह सबसे आसान तरीका है।
गैजेट्स के इस्तेमाल को सही नहीं मानती सुधा मूर्ति
मूर्ति जी का यह भी मानना है कि बच्चों को इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह उनकी आंखों को प्रभावित करते हैं। उनके अनुसार कम से कम 10 से 14 साल की उम्र तक बच्चों को किताबें पढ़नी चाहिए। उनका मानना है कि 16 साल की उम्र के बाद फिर बच्चों पर ही छोड़ दें कि क्या वो अपनी पढ़ने की आदत को जारी रखना चाहते हैं।
बच्चों के रोल मॉडल पैरेंट्स ही होते हैं
इन्फोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष यह भी कहती हैं कि दस साल तक के बच्चों के रोल मॉडल उनके पैरेंट्स ही होते हैं, जैसा वह करेंगे बच्चे वही सीखेंगे। इसके लिए आपको घर से टीवी हटाना भी पड़े तो हटाइए। उनका कहना है कि " मैंने भी अपने बच्चों को 18 साल की उम्र तक टीवी नहीं देखने दिया। मैं उन्हें कहती थी कि तुम टीवी पर क्या देखोगे, मैं ही तुम्हें कहानियां सुना देती हूं। अगर टीवी है भी, तो उसे देखने के वक्त को सीमित कीजिए। सप्ताह में एक घंटा काफी होगा"।