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मुझे लगा मैं भी मारा जाऊंगा... इस परिवार ने बेहद करीब से देखी मौत, कान के पास ने निकली आतंकी की गोली

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 01 May, 2025 03:14 PM
मुझे लगा मैं भी मारा जाऊंगा... इस परिवार ने बेहद करीब से देखी मौत, कान के पास ने निकली आतंकी की गोली

नारी डेस्क: दुखद पहलगाम आतंकवादी हमले ने देश को ऐसा दर्द दे दिया जिसे चाहकर भी भुलाया नहीं जा सकता। इस हमले से जुड़ी कई कहानियां सामने आ चुकी है। जहां यूपी के शुभम द्विवेदी और लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की पत्नियों का इस बात का मलाल है कि वह अपने साथी को बचा नहीं पाई तो वहीं कुछ ऐसा भी हैं जिनको मौत बिल्कुल करीब से छूकर निकल गई। वह बार- बार भगवान का नई जिंदगी देने के लिए शुक्रिया अदा कर रहे हैं। 

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कर्नाटक का एक परिवार भी इस हमले से बाल-बाल बच गया, उनके बच्चे की भूख ने उन्हें बचा लिया। कर्नाटक के एक दंपति अपने बेटे के साथ उन कई पर्यटकों में शामिल थे जो बैसरन घास के मैदान से सुरक्षित बाहर निकलने में सफल रहे। प्रदीप हेगड़े, शुभा हेगड़े और उनका बेटा सिद्धांत 21 अप्रैल को छुट्टियां मनाने श्रीनगर पहुंचे। उनके कार्यक्रम के अनुसार, वे 22 अप्रैल को पहलगाम में बैसरन घास के मैदान पर ही थे। 

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इस भयावह घटना को याद करते हुए प्रदीप ने बताया कि उन्होंने घास के मैदान तक जाने के लिए तीन घोड़े किराए पर लिए थे।जब उनके बेटे ने भूख लगी ,तो वे उसे पास के एक फ़ूड स्टॉल पर ले गए। जब पिता-पुत्र मैगी का ऑर्डर दे रहे थे, शुभा वॉशरूम चली गई तभी गोलियों की आवाज आने लगे। हालांकि दुकान विक्रेता ने प्रदीप को शांत करने की कोशिश की, यह कहते हुए कि यह आवाज पटाखों की हो सकती है। 

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प्रदीप ने अभी एक कप चाय का ऑर्डर दिया था, तभी उसने दो हथियारबंद आतंकवादियों को देखा- एक नीचे की ओर बढ़ रहा था, दूसरा उनकी ओर बढ़ रहा था। शुभा वॉशरूम से लौटी थी, और तीनों तुरंत जमीन पर गिर गए। जब शुभा अपना पर्स लेने के लिए उठी, जिसमें उनके सभी आईडी कार्ड थे, तो एक गोली उसके दाहिने कान के पास से निकल गई, वह तुरंत फिर से झुक गई। बाद में उसने याद किया कि उसके बालों पर कुछ महसूस हुआ था, लेकिन वह बहुत डरी हुई थी।

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इसके तुरंत बाद, पर्यटकों को एक गेट की ओर भागने के लिए कहा गया। मीडिया से बात करते हुए प्रदीप ने कहा- "मैं मान बैठा था कि मैं उस दिन मर जाऊंगा। मेरे पास कोई उम्मीद नहीं बची थी।सौभाग्य से, शुभा ही शांत थी। उसके विचारों की स्पष्टता और अटूट विश्वास कि वे सुरक्षित घर लौट आएंगे"।  गेट पर पहुंचने के तुरंत बाद, सेना के जवानों ने उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचा और इस तरह उनकी जिंदगी बच गई।


 

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