ब्रिटेन में सबसे लंबे समय तक राज करने वाली महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के निधन के बाद से ही पूरा ब्रिटेन शोक में डूबा हुआ है। बकिंघम पैलेस और अन्य शाही आवासों के बाहर हजारों लोग कार्ड, फूल और खिलौने उनके सम्मान को छोड़ चुके हैं ताकि महारानी एलिजाबेथ द्वितीय को श्रद्धांजलि दी जा सके।
महारानी को दुनिया ने दी श्रद्धांजलि
इससे पहले महारानी को 96 तोपों की सलामी दी गयी, जिनमें से प्रत्येक राउंड महारानी के जीवन के एक-एक वर्ष को समर्पित था। चर्च ऑफ इंग्लैंड द्वारा पूरे देश के विभिन्न चर्च को प्रार्थना या विशेष सेवाओं के लिए खोलने को लेकर प्रोत्साहित किये जाने के बाद गिरजाघरों ने घंटियां बजाईं। तोपों की सलामी को लेकर अक्सर मन में ये सवाल उठते हैं कि आखिर ये क्यों दी जाती है। तो चलिए बताते हैं इसके पीछे की वजह ।
तोपों की सलामी का इतिहास
कहते हैं कि तोपों की सलामी देने का चलन 14वीं शताब्दी में शुरू हुआ था। उस समय जब कोई भी सेना समुद्र के रास्ते किसी देश में जाती थी, तो तट पर 7 तोपें फ़ायर करती थी। इस तरीके से सेना संदेश देती थी कि वो उनके देश पर हमला करने नहीं आए हैं। 17वीं शताब्दी में ब्रिटिश सेना ने शाही ख़ानदान के सम्मान में 21 तोपों की सलामी का चलन शुरू किया था।
पहले कुछ लोगों को ही मिलता था ये सम्मान
18वीं शताब्दी में अमेरिका ने भी इस चलन को अपना लिया। भारत में ये प्रथा ब्रिटिश सेना के साथ आई। पहले ये सम्मान सिर्फ़ चंद महत्वपूर्ण लोगों तक ही सीमित था, पर धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़ा दिया गया। अब राजनीति, साहित्य, क़ानून, विज्ञान और कला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले लोगों को ये राजकीय सम्मान दिया जाता है।
कैसे दी जाती है सलामी
जो सलामी दी जाती है उसमें 21 गोलों तो होतें हैं, लेकिन तोपें महज 8 होती हैं। इसमें से 7 तोपों का इस्तेमाल सलामी के लिए होता है, जिससे हर तोप 3 गोले फायर करती है। इसे सलामी को देश का सर्वश्रेष्ठ सम्मान माना जाता है। सलामी के लिए छोड़े जाने वाले गोले कि यह खास सेरोमोनियल कारतूस (Ceremonial Cartridge ) होता है और खाली होता है। इससे केवल धुआं और आवाज निकलती है, कोई हानि नहीं होती।