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बदलती सोचः अमेरिका की पहली महिला पुरोहित बनीं सुषमा, दादा-दादी से लिया हिंदू धर्म का ज्ञान

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 09 Feb, 2022 02:16 PM
बदलती सोचः अमेरिका की पहली महिला पुरोहित बनीं सुषमा, दादा-दादी से लिया हिंदू धर्म का ज्ञान

सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी, शादी हो या कोई भी शुभ कार्य पुरुष पंडित या पुरोहित को ही बुलवाया जाता है। आपने कभी कोई महिला पंडित नहीं देखी होगी लेकिन अब ना सिर्फ लोगों की सोच बल्कि समय के साथ परंपराओं में भी बदलाव आ रहा है। कुछ समय पहले तक अमेरिका जैसे देश में भी पितृसत्तात्मक समाज का ही चलन था लेकिन भारतवंशी सुषमा द्विवेदी ने इस चलन को बदल दिया।

कौन हैं सुषमा द्विवेदी?

पहली बार, कनाडा में जन्मी भारतीय मूल की सुषमा द्विवेदी हिंदू धार्मिक संस्कार और विवाह समारोह करने वाली पहली अमेरिकी महिला पुजारी बन गई हैं। अब तक, अमेरिका में केवल पुरुष पुजारियों ने ही इस तरह की रस्में निभाई हैं। जब द्विवेदी ने फैसला किया कि वह शादी समारोह और अन्य रस्में करने को तैयार हैं तो उन्हें अपनी दादी से अनुमति लेनी पड़ी। सुषमा अबतक 33 से ज्यादा विवाह संपन्न करवा चुकी हैं। वह समलैंगिकों समेत सभी की शादी आदि करवाती हैं।

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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आर्गेनिक फ़ूड कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट हैं सुषमा

सुषमा एक आर्गेनिक फूड कंपनी 'डेली हार्वेस्ट' की वाइस प्रेसिडेंट हैं। वहीं, उनके पति 37 वर्षीय विवेक जिंदल वेल्थ मैनेजमेंट कंपनी 'कोर' में बतौर चीफ इन्वेस्टमेंट काम करते हैं। दोनों के 2 बेटे भी हैं। सुषमा को विवाह करवाने में सिर्फ 35 मिनट का समय लगता है जबकि पारंपरिक हिन्दू विवाह में वह 3 घंटे का समय लेती हैं।

कैसे आया पंडित बनने का आइडिया

सुषमा को पुरोहित बनने का विचार अपनी शादी के कुछ समय बाद आया जब उन्होंने देखा उनके पति का एक भाई ट्रांसजेंडर है। उन्होंने सोचा कि अगर उन्होंने कभी शादी करने के बारे में सोचा तो उनकी मैरिज कौन करवाएगा? इसके बाद उन्होंने इसके बारे में जानकारियां पढ़ी और साल 2016 में न्यूयॉर्क में 'पर्पल पंडित प्रोजेक्ट' की शुरुआत की, जो हर तरह की धार्मिक सेवाएं देती हैं। उन्होंने पर्पल शब्द इसलिए चुना क्योंकि यह रंग दक्षिण एशिया में गे समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है।

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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दादी से मिला हिंदू धर्म का ज्ञान

दादी ने स्वयं कभी कोई कर्मकांड या धार्मिक अनुष्ठान नहीं किया लेकिन उनके पास इतना ज्ञान था कि वह द्विवेदी को पुजारी बनने के लिए प्रेरित कर सके। वह खुश थी जब उसकी पोती ने उसके साथ उसकी इच्छा पर चर्चा की। कनाडा में पले-बढ़े द्विवेदी के दादा-दादी उनके धार्मिक ज्ञान के स्रोत थे। द्विवेदी का कहना है, "हम दोनों (द्विवेदी और उनकी दादी) एक साथ बैठकर सभी धार्मिक शास्त्रों का अध्ययन करते थे। अपने वैदिक ज्ञान को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए यह पौराणिक हिंदू प्रथा है। मैंने भी अपने दादा-दादी से इसके बारे में सीखा"।

इसके अलावा द्विवेदी की दादी ने कनाडा के मॉन्ट्रियल में एक हिंदू मंदिर के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी। यह मंदिर बचपन में द्विवेदी के धार्मिक झुकाव का एक महत्वपूर्ण केंद्र भी बना रहा। उसने एक पुजारी बनने का फैसला किया जो धार्मिक अनुष्ठानों को करने के लिए जाति, लिंग, जातीयता या यौन अभिविन्यास सहित भेदभाव से ऊपर उठेगा।

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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अपनी कड़ी मेहनत और दृढ़ मानसिकता के परिणामस्वरूप, वह समलैंगिकों सहित सभी के विवाह समारोहों को करने वाली अमेरिका की पहली महिला पुजारी भी बन गई हैं।

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