मजदूरों के मसीहा बन चुके सोनू सूद की चर्चा आज देश का हर शख्स कर रहा हैं। आम आदमी से लेकर सरकार तक, हर कोई उन्हे सलाम कर रहा हैं। बता दें कि सोनू सूद ने हाल ही में केरल से एक फ्लाइट भी अरेंज करवाई जिसके जरिए करीब 150 मजदूर प्रेग्नेंट महिलाओं को उनके घर तक पहुंचाया गया। लोग ट्विटर के जरिए भी सोनू सूद से मदद मांग रहे हैं, साथ ही कुछ यूजर्स उनसे सोशल मीडिया पर मैसेज भेज कर रहे हैं, कोई उन्हें मदद के लिए पुकार रहा है तो कोई उनका धन्यवाद कर रहा है।
सब घर पहुंच जाएं, फिर आराम से सोएंगे: सोनू सूद
इसी बीच सोशल मीडिया पर उन्हें एक यूजर ने सवाल किया, आप 24 घंटे लोगों की मदद में लगे रहते हैं, आपको नींद नहीं आती क्या? जिसका जवाब देते हुए उन्होंने ट्वीट किया एक बार सब घर पहुंच जाएं। फिर आराम से सोएंगे। बता दें कि मजदूरों व जरूरतमंदों का दर्द वहीं इंसान समझ सकता है जो इस दर्द से गुजरा हो,सोनू सूद भी इस दर्द से गुजर चुके हैं। आज वो इंडस्ट्री में जिस मुकाम पर है, वहां तक पहुंचने के लिए उन्हें भी काफी संघर्ष करना पड़ा है। जिस सोनू ने मजदूरों को उनके घर भेजने के लिए हजारों बसों की लाइन लगा दी, उसी की जिंदगी में एक समय ऐसा भी था, जब वो काम की तलाश के लिए मुंबई आए थे और 420 रुपये महीने का पास निकालकर लोकल ट्रेन से सफर किया करते थे।
कभी जेब में 5500 रु. लेकर पहुंचे थे मुंबई
पंजाब के रहने वाले सोनू सूद ने नागपुर से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनिरिंग की पढ़ाई की, लेकिन हीरों बनने का ख्वाब इस कदर हावी हुआ कि वह उन्हें मुंबई तक आखिरकार खींच ही लाया। बात उस वक्त हैं जब फिल्मों में काम के लिए सोनू सूद पहली बार मुंबई पहुंचे थे, तब उनकी जेब में सिर्फ 5500 रुपए थे और उन्हें लगता था कि इतने पैसों में वो एक महीना तो सर्वाइव कर जाएंगे। एक कमरे का घर लेकर बस जैसे-तैसे गुजारा किया करते थे लेकिन वो पैसे उनके सिर्फ 5-6 दिन में ही खत्म हो गए, उन्हें लगने लगा कि अब घर से मदद लेनी पड़ेगी।
420 रु. का पास लेकर करते थे नौकरी की तलाश
उस दौरान सोनू काम की तलाश में लोकल ट्रेन पकड़कर रोज सफर किया करते जिसके फोटो सोनू सूद ने इंस्टाग्राम पर शेयर भी की है, यह साल 1998 का लोकल ट्रेन का पास है, जो कि बोरीवली से चर्चगेट तक का है। फर्स्ट क्लास में 420 रुपये महीने के इस पास के सहारे वह घर से निकला करते।
मजदूरों के मसीहा सोनू सूद का हीरो बनने का सफर
खैर, चमत्कार हुआ कि उन्हें पहला ब्रेक मिल गया, फिल्मों में नहीं लेकिन एक विज्ञापन के लिए कॉल आया। उन्हें इस एड के लिए 2000 रुपए प्रतिदिन मिल रहे थे। मगर सोनू का सपना फिल्म सिटी जाना था और उन्हें लगा था कि इस विज्ञापन के जरिए उनको नोटिस तो किया जाएगा लेकिन हुआ ऐसा जब वह पहुंचे तो उनके उनको 10-20 और बॉडी वाले लड़के को पीछे खड़े होकर ड्रम बजाना था जिस वजह किसी की नजर उनपर नहीं गई। मगर कहते है ना कि एक दरवाजा बंद होता है, तो बाकी दरवाजे खुल जाते है। सोनू की लाइफ में भी कुछ ऐसा ही हुआ।
काफी संघर्ष के बाद उन्हें साउथ इंडियन फिल्म में काम मिल गया और सोनू साल 1999 में तेलुगू फिल्म 'कल्लाज़गार' से अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की। हालांकि, इसके बाद भी लगातार 4-5 तेलुगू और तमिल फिल्मों में ही मौका मिला, लेकिन साल 2001 में आखिरकार बॉलीवुड का दरावाजा उनके लिए खुल ही गया। सोनू की पहली फिल्म 'शहीद-ए-आजम', जिसमें वह भगत सिंह की भूमिका में नजर आए, इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं, आज वो जिस मुकाम पर है आपके सामने है।