नारी डेस्क: हाल ही में स्वास्थ्य मंत्रालय ने लोकसभा में ICMR–नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम के आंकड़े साझा किए। रिपोर्ट में बताया गया है कि 1982 से 2016 के बीच मेट्रो शहरों में फेफड़ों के कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, खासकर महिलाओं में। अब यह बीमारी केवल धूम्रपान करने वालों तक सीमित नहीं रही है, बल्कि नॉन-स्मोकिंग महिलाओं में भी तेजी से देखने को मिल रही है।
एडेनोकार्सिनोमा महिलाओं में तेजी से बढ़ा
रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं में सबसे ज्यादा देखा जाने वाला प्रकार एडेनोकार्सिनोमा है, जो अब महिलाओं के कुल फेफड़ों के कैंसर के मामलों का लगभग 53% बन गया है। यह प्रकार आम तौर पर नॉन-स्मोकर्स में पाया जाता है, जिससे बीमारी का पैटर्न बदल गया है।

डॉक्टरों का कहना
फेफड़ों के विशेषज्ञ के अनुसार, पहले 80–90% फेफड़ों के कैंसर के मरीज धूम्रपान करने वाले होते थे, लेकिन अब दुनिया में लगभग 15–20% मरीज नॉन-स्मोकर हैं और भारत में यह प्रतिशत और ज्यादा है। उनका कहना है कि डीजल और केरोसिन का धुआं, बायोमास ईंधन, सेकेंड हैंड स्मोक और बढ़ता वायु प्रदूषण मुख्य वजह हैं। शहरी महिलाएं रोजाना इन जहरीले प्रदूषकों का सामना करती हैं, जो फेफड़ों के लिए बेहद खतरनाक हैं।
कैंसर सर्जन बताते हैं कि अब फेफड़ों का कैंसर केवल तंबाकू से नहीं होता। पर्यावरण और जैविक कारण भी इसकी बड़ी वजह बन रहे हैं। लेकिन लोगों में यह धारणा अब भी बनी हुई है कि यह बीमारी सिर्फ धूम्रपान करने वालों को होती है। यही वजह है कि महिलाओं में शुरुआती लक्षण अक्सर अनदेखा हो जाते हैं, और बीमारी एडवांस स्टेज में पकड़ में आती है।
लक्षण और पहचान
फेफड़ों के कैंसर के लक्षण अक्सर टीबी से मिलते-जुलते होते हैं। जैसे
लगातार खांसी
वजन का अचानक घटना
सांस लेने में तकलीफ
इन लक्षणों को लोग पहले टीबी समझ लेते हैं, जिससे सही जांच में देरी हो जाती है। इसलिए नॉन-स्मोकर्स महिलाओं को भी समय रहते स्कैन और जांच कराना जरूरी है।
सरकार की पहल
टीबी फ्री इंडिया अभियान: संदिग्ध मामलों को बड़े मेडिकल सेंटर में रेफर किया जा रहा है।
कैंसर इलाज की सुविधा: देश में 39 स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट और टर्शियरी केयर सेंटर बनाए गए हैं।
नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम: 130 शहरों में हवा की गुणवत्ता सुधारने पर काम चल रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि समय पर जागरूकता, सही जांच और प्रदूषण नियंत्रण ही इस बढ़ते खतरे से निपटने का तरीका है। मेट्रो शहरों में महिलाओं में फेफड़ों के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, और अब नॉन-स्मोकिंग महिलाएं भी इस बीमारी की चपेट में आ रही हैं। वायु प्रदूषण, धुआं और घरेलू ईंधन इसके मुख्य कारण हैं।