लाल चींटियां यदि एक लाइन में दिखें तो सभी डरने लगते हैं क्योंकि सभी को पता होता है कि यदि ये चीटियां डंक मार लेंगी तो शरीर पर लाल निशान पड़ जाएंगे।लेकिन क्या होगा अगर कोई आपको इन्हीं चींटयों की चटनी बनाकर दें। यह बात आज हम इसलिए कह रहे हैं कि भारत में पूर्वी राज्यों जैसे ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ में ऐसे समुदायों के लोग हैं जो इन लाल चींटियों की मसालेदार रेसिपी बनाते हैं। इस चटनी को काई चटनी के रुप में जाना जाता है। यह अपने औषधीय और पौष्टिक गुणों के लिए इस क्षेत्र में काफी फेमस है। अब हाल ही में 2 जनवरी 2024 को इस विशिष्ट नमकीन चटनी को भौगोलिक संकेत यानी की (Geographical Indication GI) टैग से सम्मानित किया गया था।
मयूरभंज के जगलों में पाई जाती हैं ये चींटियां
लाल चीटिंया जिन्हें वैज्ञानिक रुप से ओकोफिला स्माराग्डिना के नाम से जाना जाता है यह अपने दर्दनाक डंक के लिए जानी जाती हैं जो त्वचा पर फफोले पैदा करने में माहिर होती हैं। ये चीटिंया मुख्यतौर पर मयूरभंज और सिमिलिपाल जंगल में पाई जाती हैं जो एशिया के दूसरे सबसे बड़े जीवमंडल का गठन करते हैं।
इन राज्यों में पाई जाती है लाल चींटियों की चटनी
जिले के सैंकड़ों आदिवासी परिवार इन कीड़ों और चटनी को इकट्ठा करके और बेचकर अपने जीवन का निर्वाह करते हैं। चींटियों और उनके अंडों को उनके घोंसले से इकट्ठा किया जाता है और उपयोग करने से पहले चींटियों को अच्छी तरह से साफ किया जाता है। चटनी, नमक, अदरक, लहसुन और मिर्च का मिश्रण पीसकर यह बनाई जाती है। इसी तरह की लाल चींटी की चटनी झारखंड और छतीसगढ़ जैसे अन्य पूर्वी राज्यों में भी पाई जा सकती है।
इन पोषक तत्वों का अच्छा स्त्रोत मानी जाती है चटनी
लाल चींटी से बनी यह चटनी अपने कई सारे स्वास्थ्य लाभों के लिए प्रसिद्ध है। इसे प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन, विटामिन-बी12, मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्वों का अच्छा स्त्रोत मानी जाती हैं। यह चटनी दिल को स्वस्थ रखने और नवर्स सिस्टम को स्वस्थ रखने में मदद करती है। इस चटनी का सेवन करने से डिप्रेशन, थकान जैसी समस्याओं से भी राहत मिलती है। अलग-अलग शोधों और अध्ययनों की मानें तो यह प्रोटीन स्त्रोत के रुप में शरीर के लिए बेहद लाभकारी होती है।
कैसी बनाई जाती है यह चटनी?
कृष्ण विजन सेंटर की मानें तो वैज्ञानिक जगन्नाथ यात्रा की मानें तो इस चटनी को बनाने के लिए सबसे पहले चींटियों और अंडों को सुखाया जाता है। लहसुन, अदरक, हरा धनिया, इलायची, इमली, नमक और थोड़ी सी चीनी डालकर इसे और भी टेस्टी बनाया जा सकता है। यह मुख्यतौर पर कांच के बर्तन में रखा जाता है। यह चटनी एक साल तक चल सकती है। जीआई टैग इसे मिलने से खान-पान की वैश्विक खाद्य की कैटेगरी में लाने में मदद करता है। ऐसे में लाल चींटी की चटनी को जीआई टैग मिलने से इसे अब खास डिश के तौर पर पहचान मिल सकती है।