वैसे ता हमारे देश में त्योहारों का अलग ही महत्व है, लेकिन तीज के त्योहार की बात ही निराली है। यह हर वर्ष सावन माह के शुक्ल पक्ष में आता है, जिसे हरितालिका तीज या कजली तीज भी कहते हैं। जहां इस दिन कुंवारी लड़कियां योग्य वर की प्राप्ति के लिये व्रत रखती हैं तो वहीं शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र और उनके जीवन के सभी कष्टों को दूर करने के लिये व्रत करती हैं। लेकिन यह बात शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि इस त्योहार की शुरूआत कैसे हुई और पहला व्रत किसने रखा था। चलिए इस आर्टिकल में आपको देते हैं पूरी जानकारी।
कहा जाता है कि सावन की हरियाली तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से वैवाहिक जीवन के सभी सुख व्यक्ति को प्राप्त होते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हरियाली तीज का पहले व्रत भी माता पार्वती ने शिव जी के लिए रखा था। यह व्रत माता ने शिव जी को पति रूप में पाने के लिए तब रखा था जब वह कुंवारी कन्या थीं। इसके फलस्वरुप ही उन्हें शंकर जी स्वामी के रुप में प्राप्त हुए, तब से कुंवारी लड़कियां इस व्रत को रखती हैं।
मान्यता है कि भगवान शिव ने माता पार्वती को इस व्रत से प्रसन्न होकर पत्नी रूप में स्वीकार करने का वरदान दिया था। कहा जाता है कि माता पार्वती ने शिव जी से विवाह के बाद भी इस व्रत को करना जारी रखा था। माता पार्वती ने मां गंगा को महिलाओं तक इस तीज का महत्व पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी थी। मां गंगा के माध्यम से ही हरियाली तीज के व्रत रखने और पूजा की रीत धरती पर शुरू हुई।
मान्यता है कि इस दिन जो भी कन्या पूरे श्रद्धा भाव से व्रत रखती है उसके विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं। साथ ही यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशी बरकरार रखने के उद्देश्य से भी मनाया जाता है। इस दिन हरे वस्त्र, हरी चुनरी, हरी चूड़ीयां, सोलह श्रृंगार , मेहंदी, झूला-झूलने की परंपरा भी है। इस दिन शादीशुदा महिलाओं के मायके से श्रृंगार का सामान और मिठाइयां आती हैं।
तीज त्यौहार तीन प्रकार का होता है, हरियाली तीज, कजरी तीज और हरितालिका तीज है। हरियाली तीज के दिन महिलाये चंद्रमा की पूजा करती है और कजरी तीज के दिन महिलाएं नीम पेड की पूजा करती है और हरितालिका तीज को ही तीज का त्यौहार कहते है । उस दिन महिलाएं अपने पति के लिये व्रत रखती है।