भारत में बंधुआ मजदूरी की प्रथा सदियों से चली आ रही है, जिसके कारण प्रवासी मजदूरों कई सालों तक कहीं भी श्रम करने के लिए भेज दिया जाता है। इन्हीं में तमिलनाडु के ईंट-भट्टों में काम कर रहे मजदूर भी शामिल थे लेकिन इनकी जिंदगी में रोशनी बनकर आई 19 साल की मानसी बरिहा, जिन्होंने करीब 6000 प्रवासी मजदूरों को कैद से आजाद करवाया।
कोरोना की वजह से देशभर में लगे लॉकडाउन की वजह से तमिलनाडु के ईंट-भट्टों में काम करने वाले लोग अपने घर जाने की उम्मीद खो चुके थे। मगर, 19 साल की मानसी ने अपनी सूझ-बूझ से सभी आजाद करवाया। मानसी खुद भी अपने पिता व 10 वर्षिय बहन के साथ यहां फंसी थी। यहां मजदूरों को हर दिन 10 से 12 घंटे श्रम करने सिर्फ 250 रुपए की औसत से मजदूरी दी जाती थी।
लॉकडाउन के कारण तमिलनाडू में फंसे मजदूर
मार्च में जब लॉकडाउन लगा तो मजदूर वहीं फंस गए। लॉकडाउन खत्म होने के बाद वह घर वापिसी करना चाहती थी लेकिन उसके मालिक ने जाने नहीं दिया। महामारी फैल चुकी थी, मानसी के रिश्तेदार घर वापिसी के लिए दवाब बना रहे थे लेकिन वह सभी तमिलनाडु में फंसे हुए थे। उनके मालिक ने शर्त रखी कि वो काम खत्म होने के बाद घर लौट सकते है। ऐसे में मजदूरों ने अधिक मेहनत के साथ समय पर काम पूरा लेकिन काम पूरा होने के बाद भी भट्टा मालिक ने उन्हें जाने नहीं दिया। इतना ही नहीं, भट्टा मालिक ने गुंडो को भेजकर मजदूरों की पिटाई भी करवाई। घटना के दौरान कई मजदूर गंभीर रूप से घयाल भी हो गए।
मानसी की सूझ-बूझ ने बचाई मजदूरों की जान
इसे देख मानसी ने कुछ करने की ठानी और मौका देखते ही मानसी ने अपने रिश्तेदारों से मदद मांगी। उन्होंने व्हाट्सएप कॉन्टैक्ट्स के जरिए घायल लोगों की वीडियो व तस्वीरें शेयर की। कुछ समय बाद ही पुलिस उनकी मदद के लिए वहां पहुंच गई और भट्टे के खिलाफ प्राथमिकी दर्द की। घायल मजदूरों को हॉस्पिटल भेजा गया। पुलिस ने एक गुंडे को गिरफ्तार कर लिया लेकिन भट्ठा मालिक मुन्नुसामी और मार-पीट करने वाले बाकी गुंड़े फरार हो गए। इसके बाद पुलिस ने तिरुवल्लूर के 30 ईंट भट्ठों में कैद किए गए 6,750 मजदूरों को आजाद करवाया। आगे की जांच में सामने आया कि अन्य 30 ईंट भट्टे में अवैध रूप से बंधुआ मजदूरी करवाई जा रही थी, जिन्हें पुलिस ने उनके राज्यों में वापिस भेज दिया।
मां के लिए उधार लिए थे पैसे
मानसी ने अपनी दिवंगत मां के इलाज के लिए कुछ पैसे उधार लिए थे, जिसमें से 28,000 रुपए चुकाने बाकी थे। चूंकि उनका परिवार पुनर्भुगतान की व्यवस्था नहीं कर पाया तो एजेंट ने उन्हें 355 अन्य मजदूरों के साथ तिरुवल्लुर के पुधुकुप्पम में GDM ईंट-भट्टे में भेज दिया। वहां, मजदूर सुबह 4.30 बजे से दोपहर तक काम करते थे, जिसके बाद 2 घंटे का ब्रेक मिलता था। इसके बाद दोबारा काम शुरू होता था जो देर शाम तक जारी रहता था। इसके लिए मजदूरों को हर हफ्ते 250 रुपए से 300 रुपए का भुगतान किया जाता था, लेकिन खराब वित्तीय स्थितियों के कारण उन्हें पैसे कमाने के लिए 6 महीने तक काम करना पड़ा।
मानसी की हिम्मत और सूझ-बूझ से आज हजारों मजदूर अपने परिवार के पास सुकून की सांस ले रहे हैं।