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प्यार का घर ना उजड़ जाए इसलिए आशा पारेख ने नहीं की शादी, जब मौका मिला तो किस्मत दे गई धोखा

  • Edited By Vandana,
  • Updated: 13 Jul, 2021 11:37 AM
प्यार का घर ना उजड़ जाए इसलिए आशा पारेख ने नहीं की शादी, जब मौका मिला तो किस्मत दे गई धोखा

बॉलीवुड की पुरानी हसीनाओं की खूबसूरती और दमदार अदाकारी के चर्चे आज भी वैसे ही होते हैं। भले ही अब वह मायानगरी से दूर हो लेकिन उनके चाहने वाले उन्हें वैसे ही याद करते हैं। आज वो कहां हैं, कैसे रह रही हैं, इस बारे में जानने की उत्सुकता भी फैंस में बनी रहती हैं। इन्हीं पुरानी हीरोइनों में एक नाम आशा पारेख जी का भी है जिनके बारे में लोग आज भी जानना चाहते हैं कि वह अब कहां-क्या कर रही हैं तो चलिए इस पैकेज में आपको उन्हीं के जीवन की कुछ अनसुनी बातें बताते हैं...

60 के दशक की मशहूर अभिनेत्रियों में शामिल आशा पारेख 1959 से लेकर 1973 तक, बॉलीवुड फिल्मों की टॉप अभिनेत्रियों में शामिल रही। वह बहुत छोटी थी जब उन्होंने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी। 17 साल की उम्र में फिल्म ‘दिल दे के देखो’ में वह लीड रोल में शम्मी कपूर के साथ नजर आई थी। यह फिल्म दर्शकों को खूब पसंद आई और यहीं से शुरू हो गया था आशा पारेख जी का सफल फिल्मी करियर लेकिन उससे पहले आशा जी को यह बात सुनने को मिली थी कि वो कभी एक्ट्रेस नहीं बन सकतीं। ऐसा क्यों कहा गया था इस बारे में भी आपको बताते हैं लेकिन पहले उनके शुरुआती जीवन के बारे में जानते हैं।

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2 अक्तूबर 1942 में मुंबई में जन्मी आशा पारेख अब मुंबई के आजाद रोड जुहू में रहती हैं।  एक साधारण सी मिडल क्लास गुजराती जैन परिवार में जन्मी आशा की मां सुधा पारेख मुस्लिम थी और पिता प्रनालाल पारेख हिंदू थे। दोनों ही अलग-अलग धर्मों से थे लेकिन फिर भी इनका परिवार साई बाबा का भक्त था और आशा पारेख खुद भी साई बाबा की भक्त हैं। आशा जी अपने माता पिता की एकलौती संतान है इसलिए वह अपने माता पिता की बहुत लाडली भी थी। मां की मौत के बाद वह बड़े बंगले से एक छोटे से आपार्टमेंट में रहने लगी।

 

आशा खुद बचपन में कभी डाक्टर तो कभी आई.एस. अधिकारी बनने के सपने देखती थी जबकि उनकी मां उन्हें डांस सिखाने के लिए विभिन्न डांस इंस्टिट्यूट में उनका दाखिला कराती रहती थी। वह चाहती थीं कि वह एक अच्छी डांसर बने। तभी तो उन्होंने बहुत से डांस शिक्षकों से डांस की तालीम ली, जिनमें से डांस के एक शिक्षक पंडित बंसीलाल भारती का भी नाम है जो बहुत ही उच्च कोटि के डांस शिक्षक थे। मां की इच्छा पूरी करते हुए वह एक मजी हुई शास्त्रीय नृत्यांगना बन गई और उन्होंने कई बड़े डांस शो भी किये है। वे विदेशों में भी अपना नृत्य शो करने जाती थी।

 

आशा जी बचपन से ही स्टेज शो किया करतीं थी और नृत्य स्टेज शो के ही कार्यकम में उनकों फ़िल्म के मशहूर निर्देशक विमल रॉय जी ने देखा, वो इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने आशा जी से पूछा कि क्या वह फिल्मों में काम करने के लिए तैयार है, आशा जी का जवाब हाँ था और इस तरह से उनका बॉलीवुड फिल्मों का सफ़र शुरू हुआ हालांकि विमल रॉय के निर्देशन में बनी फिल्म बाप बेटी ज्यादा नहीं चल पाई। उस वक्त आशा जी बहुत ही छोटी थी और 10 वी कक्षा में पढ़ती थी। फिल्म नहीं चली तो वह निराशा हाथ लगी। 17 साल की उम्र में उन्होंने फिल्मों में फिर से अपने अभिनय को तलाशने की शुरूआत की, लेकिन एक फ़िल्म ‘गूंज उठी शहनाई’ में उन्होंने दो दिन की शूटिंग की। जिसमे विजय भट्ट ने उन्हें निकाल दिया था।

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विजय भट्ट ने उन्हें लेने से मना कर दिया साथ ही उन्होंने आशा जी के बारे में ये भी कहा कि वो हीरोइन नहीं बन सकती, क्योंकि वो इस काम के लायक नहीं है जबकि बाल कलाकार के रूप में चैतन्य महाप्रभु में उन्होंने विजय जी के साथ काम किया था। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी कोशिश को जारी रखा, और उन्हें सफलता भी मिली। उन्हें 1959 में फ़िल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी द्वारा फ़िल्म ‘दिल दे के देखो’ का ऑफ़र मिला जिसका निर्देशन नासिर हुसैन जी कर रहे थे। यह फ़िल्म उस समय की हिट फ़िल्म रही और आशा जी फ़िल्म इंडस्ट्रीज में सफल अभिनेत्री बन गई फिर उनके सफलता का दौर निकल पड़ा।

 

आज भी वह काफी एक्टिव हैं और डांस एकेडमी चलाती हैं जिसका नाम कारा भवन है। वह भारतीय सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं, इसके साथ ही उन्होंने 1994 से लेकर 2000 तक भारतीय फ़िल्म सेंसर बोर्ड की महिला अध्यक्ष के पद भार को भी संभाला  जो कि इतिहास बन गया क्योंकि इससे पहले किसी भी महिला को यह पद प्राप्त नहीं हुआ था। वह पहली ऐसी महिला बनी जो भारतीय सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष बनी।

 

आशा जी ने शादी नहीं की उनका नाम फिल्म निर्देशक नसीर हुसैन के साथ जुड़ा रहा। हालांकि आशा जी ने भी इस बात को स्वीकारा था कि वह लंबे समय तक दोस्त थे और दोस्त से भी बढ़कर थे लेकिन आशा पारेख ने इसे शादी का नाम नहीं दिया क्योंकि वह पहले ही शादीशुदा थे और आशा पारेख किसी का घर तोड़ कर अपना घर नहीं बसाना चाहती थी लेकिन नसीर हुसैन की बीवी के मरने के बाद वह अकेलेपन में जिंदगी गुजार रहे थे तो आशा ने उनसे बात करने की चाह रखी लेकिन किस्मत को शायद कुछ और मंजूर था इससे पहले ही 2002 में नसीर भी चल बसे।

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आशा जी ने कुछ 90 फिल्मों में काम किया और कई पुरस्कार अपने नाम किए।  उन्होंने कई सीरियल्स भी बनाए। उन्हें पद्म श्री, लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड, सप्तरंग के सप्ताशी अवार्ड, अन्तराष्ट्रीय भारतीय फ़िल्म अकादमी, गुजराती एसोसिएशन ऑफ़ उत्तर अमेरिका के पहले अंतराष्ट्रीय सम्मलेन में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया  जा चुका है।

 

एक समय था जब उनसे पूछे गए सवालों में एक सवाल परिवार का भी था कि क्या आप परिवार को याद करती हैं तो उन्होंने कहा था कि हाँ, एक समय था जब मैं ये सब चाहती थी, लेकिन अब जब मै बहुत सारे दुसरे शादी शुदा लोगों को देखती हूँ कि वो जबरदस्ती के रिश्तों में बंध कर रिश्तों को ढ़ों रहे है तब मै अच्छा महसूस करती हूँ कि मै इस तरह के किसी भी रिश्तें में नहीं हूँ। और आज पति पत्नी के बीच हो रहे तनाव, बच्चों के लिए तनाव को देखकर मुझे ठेस पहुँचती है।

 

इस समय आशा जी अपने बेस्ट फ्रैंड सलमान की मां हैलेन और वहीना रहमान के साथ समय व्यतीत करती हैं मस्ती करती हैं और अपने पुराने दिनों को याद करती हैं।

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