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कंटीन की 25 पैसे वाली चाय छोड़ होटल की महंगी चाय पीते थे धीरूभाई अंबानी, इसके पीछे थी उनकी बड़ी सोच

  • Edited By Vandana,
  • Updated: 06 Jul, 2021 06:11 PM
कंटीन की 25 पैसे वाली चाय छोड़ होटल की महंगी चाय पीते थे धीरूभाई अंबानी, इसके पीछे थी उनकी बड़ी सोच

अंबानी फैमिली जो आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है। दुनिया के सबसे अमीर रईसों में इनका नाम भी शामिल है। मुकेश अंबानी-अनिल अंबानी और उनके बीवी-बच्चे सब के सब लाइमलाइट में रहते हैं लेकिन अंबानी परिवार को जिसने यहां तक पहुंचाया वो शख्स थे धीरजलाल हीरालाल अंबानी, जिन्हें लोग प्यार से धीरुभाई कहते थे। 6 जुलाई उनकी डेथ एनिर्वसरी होती हैं, छोटी बहू  टीना अंबानी ने इस दिन अपने ससुर धीरुभाई अंबानी को याद किया और पोस्ट में लिखा- पापा आपकी मौजदूगी हमेशा महसूस होती है। आपके मार्ग-दर्शन को मिस करते हैं। आपकी यादें हमारे लिए हमेशा खजाना थी और रहेगी।

धीरूभाई ही वो शख्स थे जिन्होंने इतना बड़ा अंबानी बिजनेस खुद ही अपनी मेहनत से खड़ा किया। उनका कहना था कि बड़े सपने देखिये क्योंकि बड़े सपने देखने वालों के सपने ही पूरे हुआ करते हैं लेकिन इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की। 300 रू. के वेतन पर काम किया। पकोड़े बेचे, पेट्रोल पंप पर काम भी किया और धीरे-धीरे बिजनेस की दुनिया में कदम रखा और अपना सितारा चमकाया। धीरूभाई अंबानी ने 1966 में रिलायंस टैक्सटाइल्स की स्थापना की और जब उन्होंने दुनिया से अलविदा कहा, उस समय उनकी संपत्ति 62 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा थी। धीरूभाई ने जिस मेहनत, ईमानदारी और लगन से तरक्की की है। सिर्फ भारत ही वह पूरी दुनिया के लिए प्रेरणादायी व्यक्तियों में से एक थे। 

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चलिए इस पैकेज में आपको उनकी जीवनी के बारे में ही बताते हैं...

गुजरात के जूनागढ़ जिले के छोटे से गांव चोरवाड़ में 28 दिसम्बर, 1932 को उनका जन्म, पिता हीरालाल अंबानी और माता जमनाबेन के घर हुआ। उनके पिता हीरालाल एक शिक्षक थे। धीरूभाई के चार भाई-बहन थे। उनका शुरूआती जीवन काफी कष्टमय था क्योंकि परिवार बड़ा था जिसके चलते उन्हें आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता था। इन्हीं परेशानियों के चलते धीरूभाई को अपनी शिक्षा बीच में ही छोड़नी पड़ी थी। उन्होंने पिता की मदद के लिए छोटे मोटे काम करने शुरु कर दिए थे। उन्होंने फिर गांव के आस-पास ही धार्मिक स्थलों पर पकौड़े बेचने का काम शुरू किया हालांकि यह काम भी पूरी तरह टूरिस्टों पर ही निर्भर करता था जो कुछ समय अच्छा चलता था जबकि कुछ समय बिलकुल ठप्प। इस काम को भी उन्होंने बंद कर दिया  जब उन्हें इन दोनों बिजनेस  में असफलता मिली तो पिता ने उन्हें नौकरी करने की सलाह दी। 

 

धीरू भाई अंबानी के बड़े रमणीक भाई यमन में नौकरी किया करते थे। उनकी मदद से धीरू भाई को भी यमन जाने का मौका किया। वहां पर उन्होंने 300 रु. प्रति माह वेतन पर, पेट्रोल पंप पर काम किया। वहां अपनी योग्यता के दम पर वह 2 साल के भीतर प्रंबधक के पद पर पहुंच गए। भले ही वो नौकरी कर रहे थे लेकिन उनका मन बिजनेस करने की ओर ज्यादा रहा। उनके जीवन की एक घटना उनके इसी जुनून को बयां करती है- धीरुभाई जहां जिस कंपनी में काम कर रहे थे वहां सभी कर्मियों को चाय 25 पैसे में मिलती थी लेकिन वो खुद एक बड़े होटल में चाय पीने जाते थे जहां चाय का दाम 1 रु. चुकाना पड़ता था। उनसे जब इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने बताया कि बड़े होटल में बड़े-बड़े व्यापारी आते हैं और बिजनेस के बारे में बातें करते हैं। उन्हें ही सुनने जाता हूं ताकि व्यापार की बारीकियों को समझ सकूं। इस बात से पता चलता है कि धीरूभाई अंबानी को बिजनेस का कितना जूनून था।

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कुछ समय बाद वह यमन से वापिस आ गए क्योंकि यमन में आजादी आंदोलन शुरू हो गया था इस कारण वहां रह रहे भारतीयों के लिए व्यवसाय के सारे दरवाज़े बंद कर दिए गये। सन 1950 के दशक वो यमन से वापिस आ गए और अपने कजिन भाई चम्पकलाल दमानी के साथ मिलकर पॉलिएस्टर धागे और मसालों के आयात-निर्यात का व्यापार शुरू किया। रिलायंस कमर्शियल कारपोरेशन की शुरुआत मस्जिद बन्दर के नरसिम्हा स्ट्रीट पर एक छोटे से कार्यालय के साथ हुई। यहीं से जन्म हुआ रिलायंस कंपनी का। उस समय धीरूभाई का लक्ष्य मुनाफा नहीं बल्कि ज्यादा से ज्यादा उत्पादों का निर्माण और उनकी गुणवत्ता पर था। उस समय उनका परिवार मुंबई के भुलेस्वर स्थित ‘जय हिन्द एस्टेट’ में एक छोटे से अपार्टमेंट में रहता था।

 

1965 में धीरूभाई की अपने कजिन चम्पकलाल दमानी से बिजनेस पार्टनरशिप खत्म हो गई क्योंकि दोनों का स्वभाव और तरीका अलग था इसलिए पार्टनरशिप ज्यादा नहीं चले क्योंकि जहां दमानी एक सतर्क व्यापारी थे, वहीं धीरुभाई को जोखिम उठाने वाला माना जाता था। इसके बाद सूत के व्यापार में धीरूभाई ने हाथ डाला जिसमें पहले के व्यापार की तुलना में ज्यादा हानि की आशंका थी। पर वे धुन के पक्के थे उन्होंने इस व्यापार को एक छोटे स्टोर पर शुरू किया और जल्द ही अपनी काबिलियत के बलबूते धीरुभाई बॉम्बे सूत व्यापारी संगठन के संचालक बन गए। जब उन्होंने कपड़े के बिजनेस की समझ हुई तो उन्होंने अहमदाबाद के नैरोड़ा में एक कपड़ा मिल स्थापित की। यहाँ वस्त्र निर्माण में पोलियस्टर के धागों का इस्तेमाल हुआ और धीरुभाई ने ‘विमल’ ब्रांड की शुरुआत की जो की उनके बड़े भाई रमणिकलाल अंबानी के बेटे, विमल अंबानी के नाम पर रखा गया था। उन्होंने “विमल” ब्रांड का प्रचार-प्रसार इतने बड़े पैमाने पर किया कि यह ब्रांड भारत के अंदरूनी इलाकों में भी एक घरेलू नाम बन गया।

 

1980 के दशक में धीरूभाई ने पॉलिएस्टर फिलामेंट यार्न निर्माण का सरकार से लाइसेंस लेने सफलता हासिल की। इसके बाद धीरूभाई सफलता का सीढ़ी चढ़ते गए। धीरुभाई को इक्विटी कल्ट को भारत में प्रारम्भ करने का श्रेय भी जाता है। जब 1977 में रिलायंस ने आईपीओ जारी किया तब 58,000 से ज्यादा निवेशकों ने उसमें निवेश किया। धीरुभाई, गुजरात और दूसरे राज्यों के ग्रामीण लोगों को आश्वस्त करने में सफल रहे कि जो उनके कंपनी के शेयर खरीदेगा उसे अपने निवेश पर केवल लाभ ही मिलेगा। अपने जीवनकाल में ही धीरुभाई ने रिलायंस के कारोबार का विस्तार विभिन्न क्षेत्रों में किया। इसमें मुख्य रूप से पेट्रोरसायन, दूरसंचार, सूचना प्रोद्योगिकी, ऊर्जा, बिजली, फुटकर, कपड़ा/टेक्सटाइल, मूलभूत सुविधाओं की सेवा, पूंजी बाज़ार और प्रचालन-तंत्र शामिल हैं। 

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उसके बाद धीरूभाई के दोनों बेटे ने निर्माण हुए नये मौकों का पूरा उपयोग करके ‘रिलायन्स’ को आगे ले जाते गए। धीरुभाई अंबानी ने जो कंपनी कुछ पैसे की लागत पर खड़ी की थी उस रिलायंस इंडस्ट्रीज में 2012 तक 85000 कर्मचारी हो गये थे और सेंट्रल गवर्नमेंट के पूरे टैक्स में से 5% रिलायंस देती थी। और 2012 में संपत्ति के हिसाब से विश्व की 500 सबसे अमीर और विशाल कंपनियों में रिलायंस को भी शामिल किया गया था। धीरुभाई अंबानी को सन्डे टाइम्स में एशिया के टॉप 50 व्यापारियों की सूची में भी शामिल किया गया था और यह थी उनके कारोबार के सफलता की कहानी। परिवार की बात करें तो धीरूभाई की शादी कोकिलाबेन के साथ हुई। उनको दो बेटे हैं मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी और दो बेटियाँ हैं नीना कोठारी और दीप्ति सल्गाओकर।

 

पति के हर फैसले में कोकिलाबेन के उन्हें पूरा सहयोग दिया। कहते हैं कि एक पुरुष की सफलता के पीछे महिला का हाथ होता है। यह उदाहरण यहां एक दम फिट बैठती है। कोकिलाबेन ने पूरे परिवार व बच्चों की जिम्मेदारी को अच्छे से संभाला अच्छे संस्कार दिए। उसकी जीती-जागती मिसाल है मुकेश अंबानी व उनका परिवार । सारा परिवार एक दूसरे की पूरी इज्जत करता है। धीरुभाई अंबनी को कई पुरस्कार और सम्मान से नवाजा जा चुका है। जो इस तरह है...

- वर्ष 1998 में पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय द्वारा ‘डीन मैडल’  पुरस्कार मिला।

- एशियावीक पत्रिका द्वारा वर्ष 1996, 1998 और 2000 में ‘पॉवर 50 – मोस्ट पावरफुल पीपल इन एशिया’ की सूची में शामिल किया गया।

- 1999 में बिजनेस इंडिया-बिजनेस मैन ऑफ द ईयर।

-भारत में केमिकल उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण योगदान के लिए ‘केमटेक फाउंडेशन एंड कैमिकल इंजीनियरिंग वर्ल्ड’ द्वारा ‘मैन ऑफ़ द सेंचुरी’ सम्मान, 2000।

- ‘इकनोमिक टाइम्स अवॉर्ड्स फॉर कॉर्पोरेट एक्सीलेंस’ के अंतर्गत ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड। ‘एबीएलएफ ग्लोबल एशियन अवार्ड’ , फेडरेशन ऑफ़ इंडियन चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) द्वारा ‘मैन ऑफ 20th सेंचुरी’  से सम्मानित किए जा चुके हैं।

24 जून, 2002 को दिल का दौरा पड़ने  के बाद उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में एडमिट कराया गया। 1986 में उन्हें पहले भी दिल का दौरा पड़ चुका था, जिससे उनके दायें हाथ में लकवा मार गया था। 6 जुलाई 2002 को धीरुभाई अंबानी ने अपनी अन्तिम सांसें लीं। धीरूभाई अंबानी वो सफल शख्स थे जिन्होंने सपने देखे भी और पूरे भी किए इसलिए तो वह युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणादायी हैं।

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