Ratan Tata Cremation: भारत के प्रसिद्ध बिजनेसमेन रतन टाटा जी ने कल मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली। 86 साल की उम्र में रतन टाटा जी दुनिया को अलविदा कह गए। इस अनमोल रतन के जाने पर पूरे देश में शौक की लहर है। पूरे राजकीय सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी जा रही हैं।
पारसी समुदाय से ताल्लुक रखते थे रतन टाटा
रतन टाटा जी मूल रूप से पारसी थे। पारसी समुदाय से ताल्लुक रखने के बावजूद, उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों से हो रहा है। रतन टाटा के पार्थिव शरीर को 4 बजे मुंबई के वर्ली स्थित इलेक्ट्रिक शवदाह में रखा गया। यहां करीब 45 मिनट तक प्रेयर होगी, इसके बाद अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। पारसी श्मशान घर में उन्हें अंतिम विदाई दी जाएगी। पारसियों के अंतिम संस्कार की परंपरा हिंदू, मुस्लिम और ईसाइयों से काफी अलग है। पारसी परंपरा 3 हजार साल पुरानी है। पारसियों के कब्रिस्तान को दखमा या टावर ऑफ साइलेंस कहते हैं। टावर ऑफ साइलेंस गोलाकार खोखली इमारत के रूप में होता है। किसी व्यक्ति की मौत के बाद उन्हें शुद्ध करने की प्रक्रिया के बाद शव को ‘टावर ऑफ साइलेंस’ में खुले में छोड़ दिया जाता है। टावर ऑफ साइलेंस में शव को खुले में सूरज और मांसाहारी पक्षियों के लिए छोड़ दिया जाता है। इसी तरह का अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म के लोग भी करते हैं। वो भी शव को गिद्ध के हवाले कर देते हैं।
पारसी होने के बावजूद हिंदू रीति-रिवाज से होगा रतन टाटा का अंतिम संस्कार
लेकिन पारसी समुदाय के होने के बावजूद रतन टाटा का अंतिम संस्कार हिंदू रीति -रिवाजों से क्यों हो रहा है? बता दें कि पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार के कठोर व अलग नियम हैं जो करीब 3000 साल पुराने बताए जाते हैं। पारसी समुदाय में न तो शव को जलाया जाता है और न ही दफनाया जाता है बल्कि शव को गिद्धों व चीलों के हवाले कर दिया जाता है। पारसी धर्म में मौत के बाद शव को पारंपरिक कब्रिस्तान जिसे टावर ऑफ साइलेंस या दखमा कहते हैं, वहां खुले में गिद्धों को खाने के लिए छोड़ दिया जाता है। गिद्धों का शवों को खाना, पारसी समुदाय के रिवाज का ही एक हिस्सा है।
अंतिम संस्कार से पहले पढ़ा जाएगा अहनावेति का अध्याय
संस्कार से पहले अहनावेति पढ़ाया जाएगा। उसके बाद संस्कार की प्रकिया शुरू होगी। इससे पहले प्रार्थना हॉल में पारसी रीति से ‘गेह-सारनू’ पढ़ा जाएगा। रतन टाटा के पार्थिव शरीर व मुंह पर एक कपड़े का टुकड़ा रख कर ‘अहनावेति’ का अध्याय पढ़ा जाएगा। ये शांति प्रार्थना की एक प्रक्रिया है। इस दौरान आत्मा की शांति के लिए भगवान से प्रार्थना की जाती है, उसके बाद शव को गिद्ध व चीलों के हवाले कर दिया जाता है लेकिन रतन टाटा का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से होगा हालांकि कोरोना महामारी के दौरान साल 2020 से अंतिम संस्कार के तरीकों में बदलाव हआ था। खुले में शव रखने पर पाबंदी लग गई। कोरोना के समय पारसी अंतिम संस्कार रीति रिवाजों पर रोक लगा दी गई थी। इसी के साथ टावर ऑफ साइलेंस के लिए उचित जगह ना मिलने और चील व गिद्ध जैसे पक्षियों की कमी के चलते भी पिछले कुछ सालों में पारसी लोगों के अंतिम संस्कार के तरीके में बदलाव आया है। इन्हीं बदलावों के कारण ही रतन टाटा का अंतिम संस्कार, हिंदू रीति रिवाजों से हो रहा है। इससे पहले टाटा सन्स के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री का अंतिम संस्कार भी हिंदुओं की तरह हुआ था। वह भी पारसी थे। एक सफल बिजनेसमैन, शानदार लीडर, दरियादिल-दानवीर इंसान और करोड़ों लोगों के Idol को भावपूर्ण श्रद्धांजलि ।