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खो गया भारत का रतन, नही रहे Ratan Tata जी, खास मक़सद में बिताए ज़िंदगी के आख़िरी साल, Cancer हॉस्पिटल के पीछे की कहानी

  • Edited By Vandana,
  • Updated: 10 Oct, 2024 02:32 PM
खो गया भारत का रतन, नही रहे Ratan Tata जी, खास मक़सद में बिताए ज़िंदगी के आख़िरी साल, Cancer हॉस्पिटल के पीछे की कहानी

नारी डेस्क: देश के जाने-माने उद्योगपति, समाजसेवी और टाटा ग्रुप के मुखिया पद्म विभूषण रतन नवल टाटा जी दुनिया को अलविदा कह गये। कल देर रात ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल में उन्होंने आख़िरी सांस ली। 86 की उम्र में लेजेंड बिजनेसमेन के निधन की खबर सुन सब गहरे दुःख में हैं। अपने सामाजिक कार्यों और चैरिटी के लिए मशहूर रतन नवल टाटा जी के निधन पर पूरे देश ने दुःख जताया है। रतन टाटा ने अपनी जिंदगी में बहुत सारी बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं जिन्हें शब्दों में बयान करना आसान नही है। सफल कारोबारी के साथ वो एक शानदार लीडर, दानवीर और लाखों लोगों के आइडल थे। 

रतन टाटा की दरियादिली, स्वास्थ्य सेवाओं को समर्पित जीवन के आखिरी साल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर एकनाथ शिंदे तक सबने रतन टाटा के निधन पर दुख जताया है। रतन जी अपने पीछे बहुत सी प्यारी यादें छोड़ गये हैं। रतन टाटा जी दरियादिल इंसान थे और उनकी दरियादिली के बहुत से क़िस्से मशहूर रहे हैं। वह अपने कमाए गये पैसे का एक बड़ा हिस्सा दान करते थे और उन्होंने अपनी ज़िंदगी के आख़िरी साल, लोगों के स्वास्थ को समर्पित कर दिए। टाटा जी के द्वारा ऐसे बहुत से काम किए गये जिन्होंने बहुत से लोगों की जिंदगियां संवार दी। अपनी ज़िंदगी के आख़िरी साल उन्होंने हेल्थ केयर कार्यों को समर्पित कर दिए। इसी को देखते हुए टाटा जी असम में अत्‍याधुनिक सुविधाओं वाले कैंसर के 7 अस्‍पतालों का उद्घाटन किया था । 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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सर दोराबजी टाटा का अधूरा सपना जो बना रियलिटी

कैंसर हॉस्पिटल से उनका व टाटा ग्रुप का लगाव शुरू से रहा था। आजादी से पहले ही सर दो दोराबजी टाटा ट्रस्‍ट ने मुंबई में टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल (TMH) की शुरुआत की थी जो दुनिया के सबसे बेहतरीन कैंसर अस्‍पतालों में से एक है। सर दोराबजी टाटा, टाटा ग्रुप के संस्‍थापक जमशेतजी टाटा के बड़े बेटे थे। सर दोराबजी टाटा ट्रस्‍ट को सर दोराब टाटा जी ने बनाया था। दरअसल, टाटा मेमोरियल सेंटर बनने के पीछे की वजह बहुत खास रही। दरअसल साल 1932 में लेडी मेहरबाई टाटा की ल्यूकेमिया से मौत हो गई थी। लंबे समय तक उनका इलाज विदेश में चला था। इसके बाद सर दोराबजी टाटा जी को इस बात की धुन सवार हो गई कि वह भारत में कैंसर के इलाज के लिए विदेश जैसी सुविधाओं वाला रेडियम संस्थान शुरू करेंगे, जिसकी योजना भी बनाई गई लेकिन दुर्भाग्य से सर दोराबजी की 1932 में मौत हो गई लेकिन यह सपना अधूरा नही रहा। सर दोराबजी टाटा का यह सपना ट्रस्ट के ट्रस्टियों ने पूरा किया। इसकी शुरुआत 80 बेड के साथ हुई थी।

रतन टाटा जी ने भी हेल्थ केयर को लेकर अपने सपने पूरे किए हालाँकि जीवनसाथी पाने का उनका सफ़र अधूरा ही रह गया या यूं कहे कि ये सपना उनहोने देखना ही छोड़ दिया था।  उम्र के एक पड़ाव में जहां व्यक्ति को एक हमसफर, एक साथी की जरूरत होती है, वहीं रतन टाटा जी उम्रभर अकेले ही रहे। उन्होंने शादी नहीं की। बेशुमार संपत्ति के मालिक जिन्होंने पूरी जिंदगी कुंवारे ही गुजार दी । 

बहुत से लोगों के मन में भी यहीं सवाल चलता रहा है कि आखिर उन्होंने शादी क्यों नहीं की? उन्हें हमसफर क्यों नहीं मिला? ऐसा नहीं की उन्हें प्यार हुआ नहीं बल्कि उन्हें जिससे प्यार हुआ वह इतना गहरा था कि जब वह पूरा नहीं हुआ तो उन्होंने शादी जैसा शब्द ही अपनी जिंदगी से बाहर निकाल फेंक दिया था। दरअसल, खबरें कहती है कि रतन टाटा जी सच्चा प्यार अधूरा रह गया था।

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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रतन टाटा का अधूरा प्यार: भारत-चीन युद्ध ने खत्म किया रिश्ते का सपना

इस बारे में भी उन्होंने ही एक इंटरव्यू में बताया था कि जब वो लॉस एंजलिस में थे और आर्किटेक्चर फर्म में काम करते थे।  उस दौरान उनकी मुलाकात एक लड़की से हुई थी और उसी लड़की के लिए रतन टाटा जी कि दिल धड़का था। वह भी उन्हें पसंद करती थी दोनों शादी करना चाहते थे लेकिन रतन टाटा जी को  इंडिया वापिस आना पड़ा। वह अपनी बीमार दादी की देखभाल के लिए वापिस भारत आए थे। इसके बाद वह फिर अमेरिका गए और अपनी प्रेमिका को इंडिया लाने का मन बनाया लेकिन साल 1962 के भारत-चीन युद्ध ने ऐसा नहीं होने दिया क्योंकि लड़की के पेरेंट्स ने भारत चीन युद्ध के कारण उसे भेजने से इंकार कर दिया जिसके बाद उनका रिश्ता टूट गया।

इसके बाद रतन टाटा ने किसी और प्यार की तलाश नहीं की,  यहां तक कि उन्होंने शादी करने का सपना ही छोड़ दिया। उन्होंने खुद को पूरी तरह पैतृक  बिजनेस 'द टाटा ग्रुप' के लिए समर्पित कर दिया और टाटा ग्रुप बिज़नेस को बुलंदियों तक ले गए। रतन टाटा जी ने खोए प्यार को अपनी ताकत बना लिया और पूरी तरह काम में फोकस किया और आगे बढ़ते गए। आज उनकी सक्सेस की कहानी लोगों की जुबानी है। रतन टाटा जी का जाना एक युग का अंत हैं लेकिन अपनी दरियादिली, अपनी डेडिकेशन और सामाजिक कार्यों के लिए वह हमेशा लोगों के दिलों में बसे रहेंगे।

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