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'वो स्त्री है कुछ भी कर सकती है'...महिला दिवस पर इन नारी प्रधान फिल्मों को नहीं देखा तो क्या देखा

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 07 Mar, 2023 11:16 AM
'वो स्त्री है कुछ भी कर सकती है'...महिला दिवस पर इन नारी प्रधान फिल्मों को नहीं देखा तो क्या देखा

जैसे-जैसे समाज बदलता है, सिनेमा भी बदलता है। सिनेमा सिर्फ मनोरंजन का साधन ही नहीं है बल्कि इससे हमें बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है। हालांकि ये हम पर निर्भर है कि हमने अच्छी बात सिखनी है या बुरी। एक वक्त ऐसा था जब बॉलीवुड की फिल्मों में नायक के किरदार को ही अहम दिखाया जाता था।  लेकिन वक्त के साथ- साथ ऐसी फिल्मों का निर्माण हुआ , जिसमें महिलाएं सशक्त रूप में नजर आई। ये कहना गलत नहीं होगा कि इन फिल्मों ने महिलाओं के प्रति समाज की सोच को बदलने का काम किया है। महिला दिवस के खास माैके पर आज हम उन फिल्मों के बारे में बता रहे हैं जिसे हर महिला को एक बार जरुर देखनी चाहिए(। 

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मर्दानी

 सुपरहिट फिल्म मर्दानी में रानी मुखर्जी निडर, बेबाक और बहादुर पुलिस अधिक्षक शिवानी शिवाजी रॉय के किरदार में  नजर आई थी। इस फिल्म में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के प्रति गुस्सा जाहिर किया गया था। रानी मुखर्जी का कहना था कि- 'इस फिल्म के माध्यम से हम पूरे देश को यह संदेश देना चाहते थे कि औरतों को मजबूत रहने की जरूरत है'। 'दर्शकों ने हमेशा पर्दे पर एक साहसी पुरुष पुलिसवाले को देखा है, लेकिन मर्दानी अविश्वसनीय छवि वाले पुलिस के उस सांचे को तोड़ने में कामयाब रही।

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इंग्लिश-विंगलिश 

श्रीदेवी की फिल्म ‘इंग्लिश-विंगलिश’उस खास वर्ग के लिए थी जो दूसरों की कमियों को हर पल गिनाते हैं। इसमें दिखाया गया है कि कैसे एक आम औरत अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में चैलेंज फेस करती हैं। इस सब के बावजूद वह  कठिनाइयों को अंगूठा दिखाती हुई आगे बढ़ती है। यह बताती है कि कैसे भाषा के चैलेंज को उसने बिना किसी रुकावट के पार कर लिया और इसी तरह हर कोई कर सकता है। 

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 क्वीन

जो लोग सोचते हैं कि शादी के बीना लड़की की जिंदगी अधूरी है, उनकी इस सोच पर चोट करती कंगना रनौत की फिल्म क्वीन। जिस समाज में हर पल डेमोक्रेसी और बराबरी की बातें होती हैं, वहां इस फिल्म ने अगल ही संदेश देने का काम किया। इसमें दिखाया गया है कि शादी टूटने के बाद भी लड़की शर्मिंदा होने या हिम्मत हारने की बजाय दोगुने जोश से उठती है एक और अकेले ही हनीमून के लिए निेल जाती है। इसमें दिखाया गया है कि लड़कियों को किसी का सहारा नहीं ढूंढना चाहिए।

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मैरी काॅम


पांच बार फीमेल वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियन रह चुकीं मैरी काॅम की जिंदगी पर आधारित है यह फिल्म कामयाबी मिलने के बाद और कामयाबी मिलने से पहले के जीवन को दिखाती है।   इस फिल्म में खिलाड़ी महिला के जीवन की मुश्किलों को दर्शाया गया है। उनके सपनों और हक़ीकत की विपरीत परिस्थितियों को दिखाया गया है। इसमें बताया गया कि हालात कुछ भी हों  हार मानने के बजाय आगे बढ़ने के अलावा दूसरा कोई लक्ष्य नहीं होना चाहिए। 

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शकुंतला देवी 


विद्या बालन की फिल्म शकुंतला देवी दुनिया की मानव कंप्यूटर कही जाने वाली शकुंतला देवी की जिंदगी पर आधारित है देवी ने छात्रों के लिए संख्यात्मक गणना को सरल बनाने का प्रयास किया। इसमें दिखाया गया है कि एक महिला ने  दुनिया में नाम तो कमाया लेकिन परिवार का साथ उसे नहीं मिला। इसमं दिखाया गया है कि  हर वर्किंग मदर अपने बच्चों की देखभाल के लिए कितनी मेहनत करती है।

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पिंक

"तू खुद की खोज में निकल तू किस लिए हताश है, तू चल तेरे वजूद की समय को भी तलाश है"...ये पंक्तियां सुनने को मिली थी फिल्म पिंक में, जिसमें महिलाओं के प्रति समाज की गंदी सोच को दिखाया गया था। फिल्म में दिल्ली की रहने वाली तीन लड़कियां की कहानी दिखाई गई थी, इस फिल्म के जरिए यह बताया गया था कि इफ ए गर्ल से नो, इट मीन्स नो… फिर चाहें वो आपकी गर्लफ्रेंड हो, आपकी पत्नी हो या फिर अपने जिस्म को सौदा करने वाली वेश्या.” । ‘पिंक’, आपको बताने की कोशिश करती है कि औरत की अपनी एक सोच है और उसकी एक स्वतंत्रता है। 
 

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छपाक


दीपिका पादुकोण की फिल्म छपाक में जिस लड़की की कहानी पर्दे पर उतारी गई थी जो  जले चेहरे के साथ हर दिन इस समाज का सामना करती है। फिल्म छपाक में एसिड हमले के खिलाफ आवाज बनकर उभरी लक्ष्मी अग्रवाल की कहानी बताई गई थी। यह फिल्म हमें बताती है कि किस तरह एसिड अटैक सर्वाइवर महिला अपने चेहरे को लेकर समाज के सामने आती है और अपनी लड़ाई में  एसिड की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने में कामयाब होती है। 
 

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