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अखंड सौभाग्य का व्रत है वट सावित्री, यहां पढ़िए पूरी व्रत कथा

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 09 Jun, 2021 10:55 AM
अखंड सौभाग्य का व्रत है वट सावित्री, यहां पढ़िए पूरी व्रत कथा

हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का बहुत महत्व है, जो हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन औरतें पति की लंबी उम्र व सुखी वैवाहिक जीवन के लिए वट वृक्ष की पूजा करती हैं। यह व्रत अखंड सौभाग्य प्राप्ति के लिए किया जाता है, जो इस साल 10 जून दिन गुरुवार को रखा जाएगा। चलिए जानते हैं व्रत का शुभ मूहूर्त , व पूजा विधि

वट सावित्रि व्रत का मुहूर्त

व्रत तिथि : 10 जून 2021 दिन गुरुवार

अमावस्या शुरू : 9 जून 2021 को दोपहर 01:57 बजे

अमावस्या समाप्त : 10 जून 2021 को शाम 04:20 बजे

व्रत पारण : 11 जून 2021 दिन शुक्रवार

सूर्य ग्रहण - 10 जून, दोपहर 01:42 बजे से शाम 06: 41 बजे

वट पूर्णिमा व्रत विधि

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और फिर मांग में पीला सिंदूर भरे। इसके बाद व्रत का संकल्प लें। अब बरगद के पेड़ सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्ति रखें। अब वहां जल, फूल, अक्षत, फल और मिठाई चढ़ाकर रक्षा सूत्र बांधें। वृक्ष की 7 बार परिक्रमा करके आशीर्वाद मांगें। इसके बाद हाथ में काले चना लेकर व्रत कथा सुनें और फिर पंडित जी को दान दें। अगले दिन बरगद के वृक्ष का कोपल खाकर व्रत खोलें। इस व्रत से पति को सुख-समृद्धि, अच्छा स्वास्थ्य और दीर्घायु का वरदान मिलता है।

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इस कारण होती है वट वृक्ष की पूजा

हिन्दू धर्म व शास्त्रों में माना जाता है कि बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) तीनों देवों का वास होता है। वहीं, इसे सावित्री से भी जोड़ा गया है इसलिए बरगद के पेड़ की आराधना से सौभाग्य  मिलता है।

वट सावित्री व्रत कथा

एक देश के राजा तत्त्‍‌वज्ञानी अश्वपति भद्र को संतान नहीं थी, जिसके लिए उन्होंने 18 साल का कठोर तप किया। इससे उन्हें सावित्री देवी पुत्री के रूप में मिली। कन्या बड़ी होकर बहुत ही रूपवान हुई लेकिन उन्हें योग्य वर नहीं मिल पा रहा था। इसके बाद राजा ने कन्या को खुद वर खोजने के लिए जंगल में भेजा जहां उनकी मुलाकात सत्यवान से हुई। सावित्री ने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पति के रूप में स्वीकार कर लिया।

मगर, फिर नारद जी ने सत्यवान की अल्पआयु के बारे में बताया लेकिन सावित्री अपने धर्म से नहीं डिगी और सत्यवान से विवाह कर लिया। सावित्री राजमहल छोड़ सत्यवान के साथ जंगल की कुटिया में आ गई  और अपने अंधे सास-ससुर की सेवा करने लगी। जब सत्यवान की मौत का दिन नजदीक आया तो सावित्री ने 3 दिन पहले ही उपवास शुरू कर दिया।

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सत्यवान लकड़ी काटने पेड़ पर चढ़े लेकिन सिर चकराने के कारण नीचे गिर गए। तभी यमराज सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे और सावित्री भी उनके पीछे-पीछे जाने लगीं। उनके बहुत मना करने के बाद भी सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं। उनकी निष्ठा और पतिपरायणता देखकर यम ने एक वरदान में सावित्री के अंधे सास-ससुर को आंखें, उनका खोया हुआ राज्य लौटा दिया और सावित्री को लौटने को कहा। मगर, फिर भी सावित्री नहीं मानी। तब यमराज ने उन्हें सत्यवान के प्राण छोड़कर एक वरदान मांगने के लिए कहा।

तब सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्यवती होने का वरदान मांगा। यम ने बिना सोचें प्रसन्न होकर तथास्तु बोलकर आगे बढ़ने लगे। तभी सावित्री ने कहा कि हे प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। उनकी बात सुनकर यमराज ने सत्यवान के प्राण छोड़ दिए। इस तरह सत्यवान जीवित हो गए और उनके माता-पिता की आंखें भी वापिस आ गई।

इसी तरह जो भी स्त्री पूरी निष्ठा व सच्चे मन से यह व्रत करती है, उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

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