कहते हैं कुछ पाने की ललक और कुछ कर दिखाने की जुनून हो तो कोशिशें और मेहनत एक दिन रंग ला ही जाती हैं। आज हम आपको ऐसी ही आदिवासी महिलाओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जो इस बात का सबूत है कि कुछ भी नामुमकिन नहीं होती। हम बात कर रहे हैं, मध्य प्रदेश, बालाघाट जिले की चिचगांव आदिवासी महिलाओं की, जिन्होंने मेहनत व लगन से उस राइस मिल (Rice Mill) को खरीद लिया, जिसमें कभी वो खुद मजदूरी करती थीं।
पीएम नरेंद्र मोदी ने भी की तारीफ
खुद पीएम मोदी ने रविवार को प्रसारित हुए "मन की बात" में इन आदिवासी महिलाओं की तारीफ करते हुए कहा कि कोरोना काल में आपदा को अवसर में कैसे बदला जाता है इसकी सीख हमें हमें चिचगांव की आदिवासी महिलाओं से लेनी चाहिए। वह जिस राइस मिल में काम करती थी वो कोरोना महामारी में बंद हो गई लेकिन बेरोजगार महिलाओं ने हार मानने की बजाए आगे कदम बढ़ाए और आज वह खुद उस मिल की मालकिन हैं।
कोरोना काल में आपदा को अवसर में बदला
समूह की महिलाएं गांव से 12 कि.मी. दूर बिरसा की राइस मिल में दिहाड़ी पर काम करने के लिए जाया करती थी लेकिन कोरोना के चलते मिल का काम बंद हो गया और महिलाओं की आमदन रूक गई। मगर, उन्होंने हार मानने की बजाए मुसीबतों का डटकर सामना किया। इस दल की मुखिया मीना रहांगडाले ने हिम्मत दिखाई और महिलाओं को एकजुट कर स्व-सहायता समूह बनाया। बता दें कि मीना रहांगडाले ने B.A. तक शिक्षा प्राप्त की है इसलिए उन्हें बिजनेस की काफी समझ है।
अपनी जमापूंजी से खरीदी राइस मिल
जब उन्हें पता चला कि फ्रैक्टरी के मालिक मशीनें तक बेच रहे हैं तो उन्होंने खुद ही उसे खरीद लिया। सभी महिलाओं ने मिलकर अपनी जमापूंजी मिल शुरू करने में लगाई। 14 महिलाओं ने 40-40 हजार रुपए देकर 5 लाख 60 हजार रुपए की राशि इकट्ठी कर ली। पैसे कम करने पर उन्होंने "आजीविका मिशन" के तहत बैंक से 2 लाख रुपए लोन लेकर मिल और मशीनें खरीद ली।
3 लाख का कमा रहीं मुनाफा
अब देखिए, वो महिलाएं खुद मिल चालकर सालभर में 3 लाख रुपए का मुनाफा कमा रही है, जिससे वो बैंक का लोन चुकाने के साथ व्यापार को आगे बढ़ाने की तैयारी में है।
वाकई, इन महिलाओं ने जो कर दिखाया है वो वाकई प्रेरणादायक है। इन्होंने कोरोना संकट में आत्मनिर्भरता का ऐसा उदाहरण पेश किया है, जो हर किसी के लिए एक प्रेरणा और सीख है।