नारी डेस्क: तिरुवनंतपुरम एस धनुजा कुमारी, जिन्होंने 9वीं कक्षा में पढ़ाई छोड़ दी थी, आज अपनी किताब "चेंगलचूला में मेरा जीवन" के लिए पहचानी जाती हैं। इस किताब को कन्नूर विश्वविद्यालय के बीए और कालीकट विश्वविद्यालय के एमए पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। धनुजा की कहानी एक प्रेरणादायक यात्रा का प्रतीक है, जो संघर्ष और धैर्य की मिसाल प्रस्तुत करती है। वह इमारत जिसके सामने से हर दिन काम पर जाते वक्त गुजरती थीं। उसी तिरुवनंतपुरम राजभवन की इमारत से एस धनुजा कुमारी को न्योता आना कोई साधारण बात नहीं थी। धनुजा कचरा इकट्ठा करने वाले एक सरकारी संगठन हरित कर्म सेना की सदस्य हैं। यहां अंबालामुक्कू के रवि नगर की संकरी गलियों में अभी भी वह कचरा इकट्ठा करते हुए देखी जा सकती हैं।
धनुजा की अद्वितीय यात्रा
धनुजा, जो तिरुवनंतपुरम के अंबालामुक्कू के रवि नगर की संकरी गलियों में कचरा इकट्ठा करने का काम करती हैं, को हाल ही में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें उनके योगदान और उनकी किताब के लिए मिला, जिसे विश्वविद्यालयों ने पाठ्यक्रम में शामिल किया है।
अच्छे-बुरे एहसास
धनुजा, जो तिरुवनंतपुरम की झुग्गी बस्ती चेंगलचूला (अब राजाजी नगर) में जन्मीं और पली-बढ़ीं, अब 48 साल की हो चुकी हैं। उनके माता-पिता के बीच अक्सर झगड़े होते रहते थे, जिसके कारण उन्हें एक ईसाई कॉन्वेंट में भेज दिया गया। केरल के कोल्लम स्थित सीएसआई आवासीय स्कूल में चौथी से छठी कक्षा के दौरान, ननों ने उन्हें हर दिन की अच्छी और बुरी घटनाओं को एक छोटी नोटबुक में लिखने को कहा। यही उनकी पहली रचनाएँ थीं।
पुलिस के लिए याचिका लिखने से लेखन की शुरुआत
धनुजा याद करती हैं कि उस समय उनकी कॉलोनी की छवि ठीक नहीं थी और उन्हें अक्सर पुलिस को याचिकाएं लिखनी पड़ती थीं। लोग उन्हें इस काम के लिए बुलाते थे, क्योंकि वे याचिकाओं को विस्तार से और प्रभावी तरीके से लिखती थीं। इससे उन्हें अपनी भाषा को सुधारने में मदद मिली। उनका कहना है कि वे एक कल्पनाशील लेखिका नहीं हैं; जो भी लिखा है, वह चेंगलचूला के जीवन के अनुभवों से प्रेरित है। प्रसिद्ध मलयाली लेखिका विजिला चिराप्पड़ ने उन्हें अपनी रचनाओं को एक किताब के रूप में प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया।
चेंगलचूला में जीवन की झलक
धनुजा का जन्म और पालन-पोषण तिरुवनंतपुरम की झुग्गी बस्ती चेंगलचूला (अब राजाजी नगर) में हुआ। बचपन में उन्होंने अपने माता-पिता के झगड़ों के कारण एक ईसाई कॉन्वेंट में शिक्षा प्राप्त की। यहाँ पर ननों ने उन्हें अपनी भावनाओं और अनुभवों को नोटबुक में लिखने के लिए प्रेरित किया, जो उनकी पहली रचनाएँ थीं।
जीवन की कठिनाइयों और लेखन की शुरुआत
धनुजा ने 14 साल की उम्र में शादी कर ली और अपनी पढ़ाई 9वीं कक्षा में ही छोड़ दी। बावजूद इसके, उन्होंने कागज की कतरनों और अखबार के टुकड़ों पर लिखना जारी रखा। उनकी किताब में उन्होंने जाति आधारित भेदभाव, गरीबी, और व्यक्तिगत संघर्षों को संजोया है। प्रसिद्ध मलयाली लेखिका विजिला चिराप्पड़ ने उनकी रचनाओं को एक किताब के रूप में प्रस्तुत करने के लिए प्रोत्साहित किया।
किताब की सफलता और विश्वविद्यालयों में शामिल होना
धनुजा की किताब "चेंगलचूला में मेरा जीवन" को अब कन्नूर विश्वविद्यालय और कालीकट विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में शामिल किया गया है। यह एक बड़ी उपलब्धि है और उनके जीवन के संघर्ष और सफलता की कहानी को उजागर करता है। धनुजा का कहना है कि यह किताब उनके अनुभवों और जीवन की सच्चाई को दर्शाती है, जो उन्हें और उनके समुदाय को प्रेरित करती है।
धनुजा की कहानी एक प्रेरणादायक उदाहरण है कि कैसे जीवन की कठिनाइयों के बावजूद दृढ़ता और मेहनत से सफलता प्राप्त की जा सकती है। उनकी किताब न केवल उनके जीवन की कहानी को साझा करती है बल्कि समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश भी भेजती है।