इस महामारी के कहर ने हर किसी को डरा कर रखा है। वहीं मजबूरियों के कारण बेखौफ हो कर माइग्रेंट लेबर अपने घरों तक पहुंचने की आस में लगातार सड़कों पर चल रहे है। ऐसा नहीं है कि सरकार ने राशन नहीं दिया, रहने की जगह नहीं दी। ऐसे बहुत सारे मजदूर है जो सड़को पर लगातार चल रहे है। एक परिवार के घर में अपाहिज बेटी भी थी। उसके पिता ने उसे साइकल के बोरे में लटका दिया।
पिता खुद नंगे पांव चल रहा है। बेटी को बोरे में लटका उसने कुछ खाने का समान भी बांधा हुआ है। यह हालत हर उस मजदूर की हो गई है जिसने अपने परिवार से मिलने का फैसला लिया है। यह परिवार उत्तर प्रदेश के लिए जा रहा है। बच्ची लगातार एक कोने से दुनिया को भूखी-प्यासी बोरे से देख रही है। बहुत-से लोग तो बस में भी निकल गए है।
सरकार ने राशन भी दिया। मगर उन लोगों का सोचिए जिन्हें राशन तो मिल गया मगर उस राशन को पकाने के लिए चूल्हा नहीं। रहने की जगह तो मिल गई मगर किराया जुटाने के लिए कमाई का साधन न मिल पाया। ये माइग्रेंट लेबर दिहाड़ी पर काम करते है।
ये अपना घर-परिवार छोड़ कर मीलों दूर काम करने आते है। इनका दर्द हर कोई शायद समझ नहीं सकता है। मगर हम इनके लिए आवाज उठा सकते है। इनका दर्द समझ सकते है।
यही हमारा सबसे बड़ा योगदान होगा। जितना हो सके आप इन मजदूरों के लिए आगे आए, इनकी मदद करें और इंसानियत को नई उम्मीद दें।