भारत में बहुत कम लोग ऐसे होंगे जिन्हें रूह अफजा के बारे में नहीं पता होगा। गर्मियों की शुरुआत होते ही रूह अफजा को घर लाने का सिलसिला भी शुरू हो जाता है। हम बचपन से इसका मजा ले रहे हैं, आज भी इसका टेस्ट वैसा ही है जैसा सालों पहले था। आज हम इसके टेस्ट नहीं इसके इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है।
भारत में हुआ था इसका अविष्कार
रूह अफ़ज़ा का प्रोडक्शन भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में होता है। वैसे तो इसका अविष्कार भारत में ही हुआ था, लेकिन 1947 में जब देश दो हिस्सों में विभाजित हुआ तो तब इसका भी बंटवारा हो गया। दरअसल 1907 में लोगों को गर्मी से बचाने के लिए हकीम अब्दुल मजीद ने दवा के रूप में एक नुस्खा ईजाद किया था जो था रूह अफजा। रूह अफ़ज़ा नाम भी अपने आप में ही एक अलग एहसास देता है। पंडित दया शंकर मिश्र की किताब, 'मसनवी गुलज़ार-ए-नसीम' (1254) में पहली बार ये नाम लिया गया।
पहले बर्तनों में मिलता था रूह अफ़ज़ा
लू और गर्मी से बचाने में हमदर्द का रूह अफजा कमाल का साबित हुआ, ऐसे में लोग उस समय इस शरबत को लेने के लिए घर से बर्तन लेकर आते थे।
मांग बढ़ने पर कांच की बोतलों में मिलने लगा। उस समय बोतलें भी कम मिलती थीं इसलिए ग्राहकों को बोतल के पैसे जमा करने होते थे और बोतल वापस करने पर पैसे वापस मिलते थे। एक कलाकार मिर्ज़ा नूर अहमद ने 1910 में इसका लोगो डिज़ाइन किया। कहा जाता है कि रूह अफ़ज़ा में गुलाब, केवड़ा, गाजर, पालक, शराब में डुबोए किशमिश का प्रयोग किया जाता है, इन चीज़ों को ध्यान में रखकर ही लोगो डिज़ाइन किया गया था।
1947 में देश के साथ रूह अफ़ज़ा का भी हो गया बंटवारा
रूह अफ़ज़ा का अविष्कार करने वाले हकीम हाफिज अब्दुल मजीद के दो बेटे थे,अब्दुल हमीद और मोहम्मद सईद। हाकिम के गुजरने के बाद और 1947 में देश का बंटवारा होने के बाद हमदर्द दो हिस्सों में बांट दी गई। हकीम अब्दुल भारत में रुक गए और हकीम मोहम्मद पाकिस्तान चले गए। 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश अलग होने के बाद रूह अफ़ज़ा की तीसरी यूनिट बन गई। जब बांग्लादेश बना तब वहां रूह अफ़ज़ा बनाने वालों ने हमदर्द बांग्लादेश की स्थापना की. भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में अब अलग-अलग रूह अफ़ज़ा बनाया जाता है।
बड़ी हस्तियों को गिफ्ट में दिया जाता था रूह अफ़ज़ा
अब्दुल हमीद 60 के दशक में दिवाली और होली में रूह आफजा के गिफ्ट पैक बनवाते थे और सभी बड़ी हस्तियों को देते थे। उन्हें 1965 में पद्मश्री और 1992 में पद़भूषण भी मिल चुका है। उनके निधन के बाद बेटे अब्दुल हमीद ने इस परंपरा को जारी रखा. 1940 में रूह अफजा के निर्माण के लिए पुरानी दिल्ली में प्लांट लगाया गया, फिर 1971 में गाजियाबाद में एक यूनिट स्थापित की गई और 2014 में हरियाणा के मानेसर में नया प्लांट शुरू हुआ। वित्तीय वर्ष 2021-22 तक रूह अफजा का टर्नओवर 700 करोड़ था।