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Salute! कभी माता-पिता ने घर से निकाल दिया था आज बनीं बांग्‍लादेश की पहली ट्रांसजेंडर न्‍यूज एंकर

  • Edited By Janvi Bithal,
  • Updated: 13 Mar, 2021 02:45 PM
Salute! कभी माता-पिता ने घर से निकाल दिया था आज बनीं बांग्‍लादेश की पहली ट्रांसजेंडर न्‍यूज एंकर

आज भले ही जमाना आगे निकल गया हो लेकिन फिर भी कहीं न कहीं लोग ट्रांसजेंडर और LGBTQ समुदाय के लोगों को ऐसी नजर से देखते हैं जैसे कि वह इस समाज के ही न हो। अगर वो दूसरों से अलग हैं तो इसमें उनकी कोई गलती नहीं है। हां चाहे यह बात कही जाए कि इस समाज में उनको सम्मान मिलता है लेकिन असल सच्चाई यह है कि आज भी उन्हें समाज में अपने सम्मान के लिए लड़ना पड़ता है। न सिर्फ लोगों से बल्कि कईं बार तो अपने ही माता पिता से भी। आज हम आपको जो कहानी बताने जा रहे हैं वो न सिर्फ हमें सीख देती है बल्कि हमें यह भी दिखाती है कि किस तरह इन्हें समाज में रहने के लिए जद्दोजहद करना पड़ता है।

कहानी बांग्‍लादेश की पहली ट्रांसजेंडर न्‍यूज एंकर की 

दरअसल हम जिस कहानी के बारे में बात कर रहे हैं उस कहानी की असल हिरोइन एक ऐसी महिला है जो समाज के बेड़ियों में बंधी नहीं बल्कि लड़ी और आज नतीजा आपके सामने है। आज कल आपने सोशल मीडिया पर एक महिला की तस्वीर देखी होगी जो न्यूज बुलेटिन पेश कर रही है। इस हंसते और इस कॉन्फिडेंस के पीछ भी एक ऐसी कहानी है जिसने आज इस महिला को यहां तक पहुंचाया है तो चलिए आपको इनके बारे में बताते हैं। 

तश्‍नुवा अनान शिशिर बांग्‍लादेश की पहली ट्रांसजेंडर न्‍यूज एंकर

बांग्‍लादेश की पहली ट्रांसजेंडर न्‍यूज एंकर और जिस महिला की हम बात कर रहे हैं उसका नाम तश्‍नुवा अनान शिशिर है। जिसने हाल ही में  बांग्‍लादेश की आजादी के 50वें वर्ष में जब पहली बार न्‍यूज पढ़ी और न्यूज पढ़ने के बाद बेशक दिल में एक सुकून था लेकिन आंखों में थे वो आंसू...वो दर्द...दर्द पुराने दिनों को याद करने का नहीं बल्कि दर्द था उन दिनों से लड़ने का और यहां तक पहुंचने का।  

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कईं सालों तक हुआ यौन शोषण 

खबरों की मानें तो तश्‍नुवा को इस मुक्काम तक पहुंचने के लिए काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। जब वह छोटी थी तो उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि वह दूसरे से अलग है और उनके अंदर कुछ अजीब है लेकिन वो कईं सालों तक यौन हिंसा का हुई सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्हें चुप रहने को कहा जाता था और धमकाया जाता था। 

कईं बार आए आत्महत्या के आए ख्याल 

कहते हैं जिंदगी में जब जीना मुश्किल हो जाता है तो लोगों के पास एक ही रास्त बचता है और वो है खुद को मारने यानि आत्महत्या का लेकिन चाहे आप जिंदगी में कितने भी दुखी क्यों न हो लेकिन आपको इस रास्ते को नहीं चुनना चाहिए और यही किया तश्‍नुवा ने, हां उन्हें आत्महत्या के ख्याल आते थे लेकिन उन्होंने ऐसा कदम नहीं उठाया। 

माता-पिता ने घर से निकाला 

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तश्‍नुवा की जिंदगी में भी दुख बढ़ते जा रहे थे एक तरफ उनके पिता ने उनसे बात करना बंद कर दिया था तो वहीं उनके माता-पिता ने तो उन्हें घर से निकल जाने के लिए भी कह दिया था। तश्‍नुवा के लिए यह वो समय था जब वो खुद से ही खुद का सामना नहीं कर पा रही थीं। लेकिन उस समय आखिर वो करती भी क्या? तश्‍नुवा उसी हाल में वहां से निकल गई। उनकी मानें तो वो दिन ऐसे थे जब वो अपने पड़ोस में भी खड़े नहीं हो सकती थी क्योंकि पड़ोसी भी उन पर कईं तरह की बातें करते थे। 

बनीं मास्टर डिग्री हासिल करने वाली पहली ट्रांसजेंडर

घर छोड़ने के बाद तश्‍नुवा ढाका आईं यहां वह अकेले ही रही और फिर इसके बाद वो नारायणगंज चली गईं। यहां उन्‍होंने हारमोन थैरेपी ली और थियेटर में काम करना शुरू कर दिया। वह इसके साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी किया करती थी। खबरों की मानें तो जनवरी में वो पब्लिक हेल्‍थ में मास्‍टर डिग्री हासिल करने वाली पहली ट्रांसजेंडर बनीं। 

कैसे हुई न्यूज एंकर के सफर की शुरूआत? 

इसके बाद उन्हें पहले ऑडिशन के लिए बुलाया गया और यहीं से उनके असल सफर की शुरूआत हुई। शायद भगवान की भी यही इच्छा थी कि वह इसी लाइन में आए क्योंकि इस क्षेत्र के बारे में तो न ही तश्‍नुवा को कोई तजुर्बा था और न ही उन्होंने इस संबंध में कोई पढ़ाई की थी। उन्होंने इसके अलावा और भी बहुत सारे चैन्लस में बात की थी लेकिन उन्हें काफी हद तक लोगों ने नजरअंदाज किया लेकिन कुछ ने उन्हें बुलाया। हालांकि जिन लोगों ने उन्हें बुलाया वह इस फैसले की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे के उन्हें इस काम के लिए लिया जाए।     

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जब बुलेटिन खत्म होने के बाद बजी तालियां 

तश्‍नुवा की मानें तो जब उन्होंने बुलेटिन खत्म किया तो उनके आस-पास मौजूद लोगों ने तालियां बजाई। इसके बाद उनकी आंखें भी भर आईं। तश्‍नुवा के अनुसार वो नहीं चाहती हैं कि समाज में किसी भी  ट्रांसजेंडर को इस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा। समाज में उन्हें उनकी काबलियत के हिसाब से काम मिले। 

सच में हम तो तश्‍नुवा के इस हौसले को सलाम करते ही हैं लेकिन साथ ही आज उनके जैसे कईं ऐसे लोग हैं जो समाज में अपने हित के लिए और अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं उन्हें आज भी अपना नाम बनाने के लिए लगातार स्ट्रगल करना पड़ रहा है। 

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