हिंदू धर्म में ऐसा कोई महीना नहीं होता है जिसमें कोई व्रत या फिर पर्व न हो। इसलिए भारत को पर्व, व्रत, त्योहार और रीति-रिवाजों का देश कहते हैं। वैसे तो सारा साल त्योहार आते हैं लेकिन कार्तिक महीने में महत्वपूर्ण व्रत त्योहार पड़ते हैं। वहीं इस महीने में लोक आस्था का पर्व छठ महापर्व भी मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रुप से बिहार, झारखंड और उत्तर-पूर्वी भारत में मनाया जाता है। बिहार के पटना घाट से लेकर दिल्ली के यमुना घाट समेत अलग-अलग स्थानों पर छोटे-बड़े घाटों में छठ पर्व का भव्य आयोजन होता है। आजकल कुछ लोग घर पर ही पानी का जमाव बनाकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। वैसे तो इस पर्व से कई सारी धार्मिक पौराणिक कथाएं जुड़ी हैं लेकिन राजा प्रियव्रत से जुड़ी छठ पर्व की कथा खूब प्रचलित है। तो चलिए जानते हैं इस कथा के बारे में....
महाभारत और रामायण काल से चल रही है छठ की परंपरा
छठ पर्व के इतिहास को लेकर ऐसा कहा जाता है कि यह छठ की परंपरा महाभारत और रामायण काल से चली आ रही है। हिंदू धर्म में लोगों ने आज भी इस परंपरा को कायम रखा है और हर साल इसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। छठ पर्व साल में दो बार चैत्र मास और कार्तिक मास में मनाया जाता है परंतु तुलनात्मक रुप से कार्तिक महीने में पड़ने वाला छठ पर्व अधिक प्रचलित है। दीवाली खत्म होने के 7 दिन बाद यह चार दिवसीय पर्व धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस साल छठ पर्व 17 नवंबर से शुरु हो चुका है जिसकी शुरुआत 20 नवंबर को होगी।
राजा प्रियव्रत से जुड़ी है पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, राज प्रियव्रत और उनकी पत्नी काफी अमीर थे लेकिन दोनों की कोई संतान नहीं थी। संतान न होने के कारण दोनों पति-पत्नी बहुत ही दुखी रहते थे। संतान प्राप्ति की इच्छा के लिए एक बार राजा और उसकी पत्नी महार्षि कश्यप के पास गए। महार्षि कश्यप ने यज्ञ करवाने के लिए कहा। यज्ञ करवाने के बाद राजा प्रियव्रत की पत्नी गर्भवती हो गई और नौ महीने के बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। इसके बाद राजा प्रियव्रत और रानी भी दुखी हो गए।
राजा ने लिया प्राण त्यागने का फैसला
संतान शोक के कारण राजा ने मृत पुत्र के साथ श्मशान पर स्वंय के प्राण त्यागने का फैसला लिया। जैसे ही राजा प्राण त्यागने के लिए जा रहे थे कि अचानक से एक देवी प्रकट हुई। यह देवी मानस पुत्री देवसेना था। देवी ने राजा प्रियव्रत से कहा कि - 'मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं मैं षष्ठी देवी हूं अगर तुम मेरी पूजा करोगे और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करुंगी।' राजा प्रियव्रत ने देवी षष्ठी की आज्ञा का पालन करते हुए ऐसा ही किया और कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को देवी षष्ठी का विधि-विधान से व्रत और पूजा की। व्रत पूजा के प्रभाव और देवी षष्ठी के आशीर्वाद से राजा प्रियव्रत को पुन पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ऐसा कहा जाता है कि प्रियव्रत ने कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह व्रत किया था इसलिए इसके बाद से ही छठ पूजा करने की प्रथा शुरु हुई।