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नवदुर्गा का प्रथम स्वरूपः  मां शैलपुत्री को करें प्रसन्न, प्रिय भोग और बीज मंत्र से होगी हर इच्छा पूरी

  • Edited By Vandana,
  • Updated: 02 Oct, 2024 06:28 PM
नवदुर्गा का प्रथम स्वरूपः  मां शैलपुत्री को करें प्रसन्न, प्रिय भोग और बीज मंत्र से होगी हर इच्छा पूरी

नारी डेस्कः नवदुर्गा के नौ रूपों (Navdurga) के नाम और उनके महत्व को हिंदू धर्म में विशेष स्थान दिया गया है। नवरात्रि (Navratri) के नौ दिनों में देवी दुर्गा (Devi Durga) के इन नौ रूपों की पूजा की जाती है। हर रूप का अपना विशेष महत्व होता है और भक्त इन रूपों की पूजा कर अपनी मनोकामनाओं पूरी करते हैं। नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। वह पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं इसलिए उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। उनका वाहन वृषभ (बैल) है और इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल होता है। चलिए आपको मां शैलपुत्री से जुड़ी कथा भी बताते हैं और मां के पहले स्वरूप को प्रसन्न करने के उपाय भी।

नवदुर्गा के नौ स्वरूप (Navdurga Ke 9 Swaroop)

शैलपुत्री (Shailaputri): शैलपुत्री, नवदुर्गा के पहले रूप में पूजी जाती हैं। यह पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। शैलपुत्री का वाहन वृषभ (बैल) है और इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल होता है।

ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini): ब्रह्मचारिणी, नवदुर्गा के दूसरे रूप में पूजी जाती हैं। यह तपस्या और संयम की प्रतीक हैं। ब्रह्मचारिणी के हाथों में माला और कमंडल रहता है।

चंद्रघंटा (Chandraghanta): चंद्रघंटा, नवदुर्गा के तीसरे रूप में पूजी जाती हैं। इनके मस्तक पर अर्धचंद्र होता है और यह देवी शक्ति का प्रतीक हैं। यह युद्ध के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं और इनके दस हाथ होते हैं, जिनमें शस्त्र होते हैं।

कूष्माण्डा (Kushmanda): कूष्माण्डा, नवदुर्गा के चौथे रूप में पूजी जाती हैं। इन्हें ब्रह्माण्ड की सृजनकर्ता माना जाता है। यह अपने भक्तों को सुख-समृद्धि और बल प्रदान करती हैं।

स्कंदमाता (Skandamata): स्कंदमाता, नवदुर्गा के पांचवें रूप में पूजी जाती हैं। यह भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता हैं। यह देवी शक्ति और मातृत्व की प्रतीक हैं।

कात्यायनी (Katyayani): कात्यायनी, नवदुर्गा के छठे रूप में पूजी जाती हैं। यह देवी शक्ति के उग्र रूप को दर्शाती हैं और महिषासुर मर्दिनी के रूप में पूजित हैं। यह भक्तों को भयमुक्त करती हैं।

कालरात्रि (Kalaratri): कालरात्रि, नवदुर्गा के सातवें रूप में पूजी जाती हैं। यह देवी विनाश और अंधकार को दूर करने वाली शक्ति की प्रतीक हैं। यह दुष्टों का संहार करती हैं और इनका रूप काला होता है।

महागौरी (Mahagauri): महागौरी, नवदुर्गा के आठवें रूप में पूजी जाती हैं। यह अत्यंत श्वेतवर्णी होती हैं और इनका रूप शांतिमय है। यह शुद्धता और पवित्रता की प्रतीक मानी जाती हैं।

सिद्धिदात्री (Siddhidatri): सिद्धिदात्री, नवदुर्गा के नौवें और अंतिम रूप में पूजी जाती हैं। यह सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती हैं और इनकी पूजा से भक्तों को समृद्धि और शक्ति प्राप्त होती है।

मां शैलपुत्री से जुड़ी कथा  (Maa Shailputri Ki Katha)

मां शैलपुत्री का जन्म पर्वतराज हिमालय के घर में हुआ था। पूर्व जन्म में वे सती के रूप में दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं और भगवान शिव की पत्नी थीं। एक बार राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। सती अपने पति के बिना ही यज्ञ में पहुंचीं, जहाँ उनके पिता दक्ष ने शिव का अपमान किया। यह अपमान सती से सहन नहीं हुआ और उन्होंने वहीं यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। सती ने अगले जन्म में शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया, जो पर्वतराज हिमालय की पुत्री थीं। उन्होंने तपस्या कर फिर से भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया। इस प्रकार माँ शैलपुत्री को शक्ति और भक्ति की देवी माना जाता है। माता शैलपुत्री की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है और घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती है। घर में सुख-समृद्धि
का ही वास होता है। शैल का अर्थ होता है पत्‍थर और पत्‍थर को सदैव अडिग माना जाता है।

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मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने के उपाय (Maa Shailputri Ko Prashan kaise karein)

माँ शैलपुत्री की पूजा का प्रथम दिन नवरात्रि का प्रारंभ होता है और इस दिन सफेद वस्त्र पहनकर, सफेद फूलों और दूध से बनी मिठाइयों का भोग अर्पित करने से मां प्रसन्न होती हैं। उनकी कथा और पूजन विधि का पालन करें, जो जीवन में शांति और समृद्धि लाती है। मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए आप उनके प्रिय रंग का वस्त्र, प्रिय वस्तु का भोग या उनके मंत्र का जाप कर सकते हैं। मां शैलपुत्री के मंत्र जाप करने से आपकी हर मनोकामना पूरी होगी। मां शैलपुत्री का प्रिय रंग सफेद है और साथ ही शुद्ध घी से बनी वस्तुएं उन्हें प्रिय हैं। दूध से बनी खीर, रसमलाई, बंगाली रसगुल्ला आदि का भोग अर्पित कर सकते हैं। पूजा में मां को गाय के घी का दीपक जलाएं। 

मां शैलपुत्री का बीज मंत्र, जाप से पूरी होगी हर इच्छा  (Maa Shailputri Beej Mantra)

मां शैलपुत्री का बीज मंत्र 'ह्रीं शिवायै नमः' है। मां शैलपुत्री की पूजा से जुड़े आप कुछ और मंत्र के जाप भी कर सकते हैं।
मां शैलपुत्री का पूजा मंत्र: 'ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः'।
मां शैलपुत्री का प्रार्थना मंत्र: 'वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥'
मां शैलपुत्री के बारे में एक और मंत्र: 'या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।'
मंत्रः विशेष फल की प्राप्ति के लिए "ॐ शैलपुत्र्यै नमः" का 108 बार जाप करें।

माँ शैलपुत्री का प्रिय वस्त्र का रंग और भोग (Maa Shailputri Ka Bhog)

गाय के घी का दीपक जलाएं: माँ शैलपुत्री की पूजा में गाय के घी से दीपक जलाने का विशेष महत्व है। इसे शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

प्रिय वस्त्र का रंग: माँ शैलपुत्री को सफेद रंग का वस्त्र अत्यधिक प्रिय है। सफेद रंग शुद्धता, शांति, और सादगी का प्रतीक होता है, जो उनकी स्वरूप को दर्शाता है।

प्रिय भोग: उनकी पूजा में सफ़ेद रंग की चीज़ों का भोग लगाना शुभ माना जाता है। मां शैलपुत्री को दूध और उससे बने पदार्थ, विशेषकर खीर का भोग अर्पित कर सकते हैं। साथ ही शुद्ध घी से बनी वस्तुएं भी उन्हें प्रिय हैं। पूजा के बाद इस भोग को सभी भक्तों में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। इसके अलावा आप सफ़ेद बर्फी, घर पर बनाई गई दूध की शुद्ध मिठाई हलवा, रबड़ी, मावे के लड्डू, गाय के दूध
का या घी का प्रसाद भी चढ़ा सकते हैं।

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यह भी पढ़ेंः नवदुर्गा का दूसरे रूप देवी ब्रह्मचारिणी की कथा और बीज मंत्र सुनने से पूरी होगी हर इच्छा

मंत्र जाप: मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए उनका मंत्र "ॐ शैलपुत्र्यै नमः" का जाप करना अत्यंत लाभकारी होता है। मंत्र का 108 बार जाप करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

मां की पूजा में बेलपत्र का प्रयोग: मां शैलपुत्री को बेलपत्र अर्पित करने से भी माँ प्रसन्न होती हैं।

सकारात्मक सोच और भक्ति: मां शैलपुत्री की पूजा में सच्ची श्रद्धा और समर्पण बहुत महत्वपूर्ण है। आप उनकी पूजा करते समय ध्यान रखें कि आपकी नीयत पवित्र हो और भक्ति भाव से की गई पूजा हमेशा फलदायक होती है।

 

 

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