
नारी डेस्क: मथुरा, वृंदावन और बरसाना होली के रंग में रंगना शुरू हो गया है। यहां एक दो दिन नहीं बल्कि पूरे महीने होली मनाई जाती है। बरसाना और नंदगांव की लट्ठमार होली की तो बात ही निराली है, यह भारत के सबसे अनोखे और प्रसिद्ध होली उत्सवों में से एक है। कई विदेशी पर्यटक भी इस अद्वितीय अनुभव का हिस्सा बनने के लिए यहां आते हैं। इस खास परंपरा में महिलाएं पुरुषों को लाठियों (लट्ठ) से मारती हैं और पुरुष खुद को ढाल से बचाने की कोशिश करते हैं।

ब्रज में होली का उत्सव लगभग 40 दिनों तक चलता है। फाल्गुन महीने की नवमी तिथि की शुरुआत 7 मार्च को सुबह 9:18 से होगी, जिसका समापन 8 मार्च को सुबह 8:16 पर होगा। ऐसे में उदयातिथि को 8 मार्च को लट्ठमार होली मनाई जाएगी। यह परंपरा भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की प्रेम कथा से जुड़ी हुई है। मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण अपने सखाओं (गोपों) के साथ बरसाना (राधा का गांव) आए और राधा व उनकी सखियों को रंग लगाने लगे। राधा और उनकी सखियों को यह शरारत पसंद नहीं आई, इसलिए उन्होंने लाठियों से श्रीकृष्ण और उनके सखाओं को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। इसके बाद से हर साल यह अनोखी होली खेली जाने लगी, जिसमें बरसाना की महिलाएं लाठियों से नंदगांव के पुरुषों को मारती हैं, और पुरुष खुद को बचाने के लिए ढाल का इस्तेमाल करते हैं।

इस होली में महिलाएं जिन्हें हुरियारिन कहते हैं अपने लट्ठ से हुरियारों को पीटती हैं और वो अपने सिर पर ढाल रख कर हुरियारिनों के लट्ठ से खुद का बचाव करते हैं। पहले दिन नंदगांव के पुरुष बरसाना आते हैं और राधा रानी के मंदिर में होली खेलते हैं। इसके बाद बरसाना की महिलाएं (गोपिया) लाठियां लेकर उन्हें मारती हैं और पुरुष खुद को ढाल से बचाते हैं। अगले दिन बरसाना की महिलाएं नंदगांव जाती हैं और वहीं पर होली खेली जाती है।

लट्ठमार होली का महत्व
लट्ठमार होली सिर्फ एक त्योहार ही नहीं, बल्कि भक्तिभाव, प्रेम और परंपरा का रंगीन संगम है। यह उत्सव राधा-कृष्ण के प्रेम की याद दिलाता है, यह ब्रजभूमि की अनूठी परंपराओं को दर्शाता है। इस दौरान भजन-कीर्तन, गुलाल और भक्ति रस से पूरा वातावरण सराबोर हो जाता है। लट्ठमार होली के बाद
10 मार्च सोमवार को वृंदावन में रंगभरनी होली के साथ बांके बिहारी मंदिर में फूलों की होली खेली जाएगी, इस दिन मथुरा श्रीकृष्ण जन्म भूमि पर भी रंगोत्सव मनाया जाएगा।