आलिया भट्ट की मोस्ट अवेटेड फिल्म गंगूबाई काठियावाड़ी एक बार फिर चर्चा में आ गई है। दरअसल फिल्म मेकर्स ने इस फिल्म को रिलीज करने का मूड बना लिया है। कहा जा रहा है कि संजय लीला भंसाली की ये फिल्म अब 25 फरवरी 2022 को सिनेमाघरों में रिलीज होगी। इस फिल्म में संजय का बहुत पैसा लगा है लेकिन जैसे संजय की फिल्मों के साथ विवाद का पुराना इतिहास रहा है, वैसे ही उनकी ये फिल्म भी विवादों में आ ही गई है। इस फिल्म में गंगूबाई के परिवार के कुछ लोगों ने इस फिल्म पर आपत्ति जताई थी। गंगूबाई के बेटे बाबू जी रावजी शाह ने फिल्म की शूटिंग रोकने का मामला दर्ज कराया था।
बता दें कि 'गंगूबाई काठियावाड़ी' की कहानी मशहूर लेखक एस हुसैन जैदी की किताब 'माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई' के एक अध्याय पर आधारित है और संजय लीला भंसाली इसी किताब के ऊपर ही फिल्म बना रहे थे। उनके बेटे के मुताबिक, हुसैन जैदी ने अपनी किताब के पेज 50 से लेकर 69 के बीच जो लिखा है वो बिल्कुल गलत लिखा है। उन पेजों में उन्होंने प्राइवेट मामलों में दखलंदाजी की।
आलिया भट्ट इसमें माफिया क्वीन गंगूबाई का किरदार निभा रही है और अजय देवगन भी महत्वपूर्ण भूमिका में है। आलिया का बोल्ड अवतार काफी चर्चा में चल रहा है और उतनी दमदार हैं उनके डायलॉग्स- कमाठीपुरा में कभी अमावस की रात नहीं होती, क्योंकि वहां गंगू रहती है...' यह डॉयलॉग सोशल मीडिया पर काफी छाया हुआ है लेकिन आप जानते थे जिस किरदार को आलिया ऩिभा रही हैं वो महिला माफिया क्वीन कैसे बन गई तो चलिए आज आपको गंगूबाई की ही स्टोरी आपके साथ साझी करते हैं।
गंगूबाई कठियावाड़ी जो कि गुजरात के काठियावाड़ से आई थी और 60 के दशक में मुंबई के कमाठीपुरा में वेश्यालय चलाती थीं लेकिन उनकी गुजरात से मुंबई तक पहुंचने की कहानी काफी दर्दनाक है। गुजरात में साल 1939 में जन्मी गंगूबाई का असली नाम गंगा हरजीवनदास काठियावाड़ी था। काठियावाड़ के एक समृद्ध परिवार से ताल्लुक रखने वालीं गंगा को कठिन हालातों ने गंगूबाई बनाया जो आगे चलकर डॉन, एक वेश्या, बिजनेसवूमेन बन गई थी।
ऐसा कहा जाता है कि वह पहली महिला थी जो 60 के दशक में डॉन की तरह रहा करती थी कोई भी शख्स उससे पंगा लेने के लिए 100 बार सोचता था। वो एक ऐसा कोठा चलाती थी जिसकी पूरे देश में कई सारी ब्रांच भी थी और इन सब की शुरूआत हुई, जब गंगा सिर्फ 16 साल की थी और इस छोटी उम्र में वह प्यार में पड़ गई थी।
वह अपने पिता के अकाउंटेंट के ही प्यार में पड़ गई थी जिसका नाम रमणीक था। गुजरात से पहले वह मुंबई में ही रहा करता था। यह बात जब गंगूबाई को पता चली तो उसे लगा कि उसके मुंबई जाने का रास्ता मिल गया क्योंकि गंगूबाई हीरोइन बनने का सपना देखा करती थी लेकिन किस्मत ने उन्हें कुछ और ही दिया। परिवार उन्हें पढ़ा-लिखा कर कुछ बनाना चाहता था लेकिन रमणीक के प्यार में फंसी गंगा घर से भाग गई और मंदिर में जाकर गंगा और रमणीक ने शादी कर ली। कुछ समय के बाद ही रमणीक ने उन्हें 1 औरत के साथ भेज दिया, यह कह कर की वो उसकी मौसी है और वह अपने दोनों के घर ढूंढने वाला है तब तक मौसी के साथ रहे।
झूठ बोलकर उसने गंगा को कोठे वाली के हाथों महज 500 रु. में बेच दिया। गंगूबाई नहीं जानती थी रमणीक ने उसे जिसके हाथों सौंप रहा है वह मुंबई के मशहूर कमाठीपुरा रेड लाइट एरिया की एक कोठे वाली है।
कोठे पर उन्हें जबरन वेश्यावृति में धकेल दिया गया। इसी दौरान गंगूबाई की मुलाकात मुंबई के कई कुख्यात अपराधियों व माफिया से हुई, जो वहां ग्राहक बनकर आते थे लेकिन एक घटना ने सब बदल कर रख दिया। शौकत खान, नाम के एक गुंडे ने गंगूबाई के साथ जबरदस्ती की। गंगूबाई की हालत इतनी खराब हो गई कि उन्हें अस्पताल भर्ती करवाना पड़ा जब वह ठीक हुई तो उन्होंने उस शख्स की पूरी जानकारी निकाली और उन्हें पता चला कि वह मुंबई के कुख्यात डॉन करीम लाला के पास काम करता था। गंगूबाई, करीम लाला न्याय के लिए उनके पास पहुंची और शौकत खान की हरकत बताई, तब करीम लाला ने उन्हें न्याया देने का वादा किया। करीम ने शौकत को इतना मारा कि वो अधमरा हो गया साथ ही करीम लाला ने ऐलान किया कि 'गंगू मेरी मुँह बोली बहन है इसके साथ किसी ने भी आज के बाद जबरदस्ती की तो अपनी जान गंवा बैठोगे। उस घटना के बाद से गंगू ‘गंगूबाई’ बन गई।'
गंगूबाई ने गंगूबाई ने करीम लाला को राखी बांध कर अपना मुंह बोला भाई बना लिया। उसी दिन से गंगूबाई को कमाठीपुरा में डॉन के नाम से भी जाना जाने लगा। करीम लाला ने अपनी राखी बहन को कमाठीपुरा की कमान दे दी और उस इलाके में हर फैसला गंगूबाई की इजाजत से होने लगे। लोग गंगूबाई को नाराज करने से भी डरने लगे।
मुंबई के लोग जितना करीम लाला से डरते थे, उतना ही वे गंगूबाई से भी खौफ खाने लगे। धीरे-धीरे गंगूबाई प्रचलित होती गई और इस तरह वो बन गई कोठा चलाने वाली माफिया क्वीन भले ही गंगूबाई वेश्यावृत्ति में पूरी तरह से रंग चुकी थी लेकिन कहा जाता है कि गंगूबाई किसी भी लड़की को उसकी बिना मर्जी के कोठे में नहीं रखती थीं।
यूं तो गंगूबाई कमाठीपुरा के स्लम एरिया में ही रहती थीं लेकिन उनके पास दौलत की कमी नहीं थी। 60 के दशक में वह अकेली ऐसी कोठा चलाने वाली महिला थीं जो ब्लैक बेंटले कार में ट्रैवल करती थीं।
अपने दबंग अवतार के साथ उसने कोठे में काम करने वाली वेश्याओं के लिए बहुत सारे अच्छे काम किये। गुंडे उस कोठे में आने से डरने लगे थे। वेश्याओं के बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा लिया। मुंबई में वेश्या बाजार हटाने के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ तो इसका नेतृत्व खुद गंगूबाई ने किया। गंगूबाई का कहना था कि यदि मुंबई में रेड लाइट एरिया में काम करने वाली औरतें ना हो तो मुंबई की औरतों का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा।
वह भले ही 'माफिया क्वीन' कहलाती थीं लेकिन उन्होंने वेश्यावृत्ति के खिलाफ और यहां कि महिलाओं की हालत सुधारने के लिए जो कदम उठाए उसे आज भी याद किया जाता है। कमाठीपुरा में उनकी मूर्ति भी लगी है। कोठे पर रहने वाली लड़कियों के लिए गंगूबाई ‘गंगूमाँ’ थी, कहा जाता है कि उनके हक की बात करने के लिए उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से भी मिली थी।
कहा जाता है कि उनका भाषण सुनने के लिए पूरा मैदान भर गया था और 1960 के सभी अखबारों के फ्रंट पेज पर उनके भाषण का कवरेज था। ऐसा दमदार भाषण कि पूरा बॉम्बे थर्रा गया था। जब गंगूबाई की मौत हुई तो भारत के कोठों में मातम छा गया था। आज भी किसी भी कोठे में चले जाएंगे तो गंगूबाई की तस्वीर जरूर मिलेगी, क्योंकि वेश्यालय वाले इन्हें अपना भगवान मानते हैं।
गंगा जिसे परिस्थितियों ने गंगूबाई बना दिया। गंगूबाई के जीवन की ये कहानी, क्या आप जानते थे।