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मां के दूध में यूरेनियम: नवजात का अमृत ही बना जहर, सेहत पर खतरा और कैंसर का डर

  • Edited By Monika,
  • Updated: 24 Nov, 2025 12:59 PM
मां के दूध में यूरेनियम: नवजात का अमृत ही बना जहर, सेहत पर खतरा और कैंसर का डर

नारी डेस्क : मां का दूध बच्चे के लिए अमृत के सामान है लेकिन लगातार बिगड़ता लाइफस्टाइल इस अमृत को भी जहर बना रहा है। मां के दूध से जुड़ी एक बेहद चिंताजनक खबर बिहार से सामने आई है।  शोध के अनुसार, राज्य के 6 जिलों की हर जांची गई महिला के स्तन दूध में यूरेनियम पाया गया है। यह सुनकर हर कोई चौंक गया क्योंकि मां का दूध नवजात शिशु के लिए सबसे सुरक्षित और पोषक तत्वों से भरपूर माना जाता है। यूरेनियम, जो पहले भूजल और मिट्टी में पाया जाता था, अब सीधे नवजात शिशुओं तक पहुंच रहा है। नवजात शिशु के अंग अभी विकसित हो रहे होते हैं, इसलिए उनका शरीर हानिकारक तत्वों को आसानी से अवशोषित कर लेता है। इससे गुर्दे, मस्तिष्क और विकास पर असर पड़ सकता है और भविष्य में गंभीर बीमारियों का जोखिम बढ़ सकता है।

मां के दूध में यूरेनियम, सामने आई ये रिपोर्ट

 एक ताज़ा अध्ययन के मुताबिक,  बिहार के कई ज़िलों की स्तनपान कराने वाली महिलाओं के दूध में यूरेनियम (U-238) की चिंताजनक मौजूदगी पाई गई है, जिससे बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर गंभीर सवाल उठे हैं। शोध में 40 नमूनों का विश्लेषण किया गया और सभी में यूरेनियम मौजूद पाया गया, जिनमें लकभग 70% बच्चों को गैर-कार्सिनोजेनिक (non-carcinogenic) स्वास्थ्य जोखिम होने की संभावना बताई गई है। सबसे अधिक औसत प्रदूषण खगड़िया में जबकि सबसे ऊँचा व्यक्तिगत स्तर कटिहार में दर्ज किया गया।

अध्ययन के अनुसार लंबे समय तक यूरेनियम का संपर्क बच्चों में गुर्दे के विकास, तंत्रिका तंत्र (Neurological development), मानसिक क्षमता और IQ पर असर डाल सकता है, क्योंकि छोटे बच्चों में इसे शरीर से बाहर निकालने की क्षमता बहुत कम होती है। हालांकि AIIMS दिल्ली के डॉ. अशोक शर्मा का कहना है कि दूध छुड़ाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि पाई गई मात्रा (0-5.25 ug/L) अनुमेय सीमा से कम है और अधिकांश यूरेनियम शरीर से पेशाब के माध्यम से बाहर निकल जाता है, न कि स्तन दूध में केंद्रित होता है।

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यूरेनियम शरीर में कैसे पहुंचता है?

डॉक्टर के अनुसार: यूरेनियम एक हैवी मेटल है जो मिट्टी और पानी में प्राकृतिक रूप से मौजूद होता है। यह भूजल या उस पानी से उगाई गई सब्ज़ियों के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर सकता है। शरीर में जमा होने पर यह बोन और किडनी में स्टोर होकर ब्लड के जरिए स्तनों तक पहुंचता है और वहां से दूध में स्थानांतरित हो सकता है। जब बच्चा यह दूध पीता है, तो यूरेनियम उसके शरीर में भी पहुंच जाता है।

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यूरेनियम से बच्चों पर क्या असर पड़ सकता है?

शारीरिक विकास पर असर: नवजात और छोटे बच्चों के अंग अभी विकसित हो रहे होते हैं, इसलिए यूरेनियम के प्रभाव अधिक होते हैं।
गुर्दे और न्यूरोलॉजिकल सिस्टम: गुर्दे को नुकसान और मस्तिष्क/नर्वस सिस्टम पर दुष्प्रभाव।
भविष्य में कैंसर का खतरा: लंबे समय तक शरीर में जमा होने पर कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।
विकास और वजन पर असर: बच्चे का वजन और हाइट बढ़ने की प्रक्रिया धीमी हो सकती है।

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क्या मां का दूध देना बंद कर देना चाहिए?

नहीं, विशेषज्ञों का कहना है कि मां का दूध बच्चे के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें ऐसे पोषक तत्व और एंटीबॉडीज मौजूद होते हैं जो बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और संक्रमण से बचाते हैं। हालांकि, यदि किसी मां में यूरेनियम का स्तर बहुत अधिक पाया जाए, तो डॉक्टर की सलाह के अनुसार फॉर्मूला फीड का विकल्प अपनाया जा सकता है। इससे बच्चे को पोषण मिलेगा और हानिकारक तत्वों के जोखिम को कम किया जा सकता है।

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सावधानियां जो मां अपना सकती हैं

पानी का ध्यान रखें: हमेशा फिल्टर्ड या आरओ पानी पिएं।
सुरक्षित भोजन: जिन सब्ज़ियों और फलों को आप खाते हैं, उनका स्रोत यूरेनियम मुक्त होना चाहिए।
नियमित जांच: जरूरत पड़ने पर यूरेनियम लेवल की जांच कराएं।
डॉक्टर से परामर्श: अगर लेवल अधिक पाया जाए, तो फॉर्मूला फीड का इस्तेमाल केवल विशेषज्ञ की सलाह से करें।

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यूरेनियम बच्चों के लिए खतरा हो सकता है, लेकिन यह मां के दूध को पूरी तरह बंद करने का संकेत नहीं है। सावधानी और सही उपायों के साथ मां का दूध सबसे सुरक्षित और लाभकारी पोषण है। समय पर जांच और सुरक्षित पानी व भोजन का ध्यान रखने से बच्चे और मां दोनों को यूरेनियम के हानिकारक प्रभाव से बचाया जा सकता है।

बता दें कि यूरेनियम प्राकृतिक रूप से चट्टानों में पाया जाता है और खनन, कोयला जलाने, परमाणु उद्योग और फॉस्फेट उर्वरकों के कारण भूजल में पहुंच सकता है। वैज्ञानिकों ने अन्य राज्यों में भी ऐसे अध्ययन कर सीसा, पारा, आर्सेनिक और कीटनाशकों जैसे प्रदूषकों की निगरानी की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। यह शोध बिहार में U-238 की नियमित मॉनिटरिंग और माताओं व बच्चों के लिए संभावित स्वास्थ्य जोखिम कम करने की तत्काल ज़रूरत को उजागर करता है।

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