जिंदगी में उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते हैं लेकिन सफलता उसी को मिलता है जो मुश्किल में धैर्य के साथ आगे बढ़ता रहे। आज हम आपको एक ऐसी ही आईपीएस महिला की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने जिंदगी में लाख मुश्किलें आने के बाद भी हार नहीं मानी। हम बात कर रहे हैं नागपुर, केंद्रीय जांच ब्यूरो में पुलिस अधीक्षक IPS निर्मला देवी की, जिनका सफर काफी मुश्किलों भरा रहा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
मां 7वीं पास लेकिन बेटी को बनाया IPS अफसर
तमिलनाडु, कोयंबटूर के अलंदुराई गांव की रहने वाली निर्मला देवी की मां सिंगल मदर थी। निर्मला बताती हैं कि उनकी मां रूढ़िवादी माहौल में पली-बढ़ी थी, जहां उन्हें 7वीं कक्षा तक पढ़ने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा लेकिन उन्होंने उसी वक्त सोच लिया था कि वो अपने बच्चों की हर इच्छा पूरी करेंगी। 17 साल की उम्र में उनकी लक्ष्मी की शादी एक किसान परिवार में हुआ , जिसके 3 साल बाद ही निर्मला के पति का देहांत हो गया। उसके बाद निर्मला की मां लक्ष्मी ने ही उनका पालन-पोषण किया।
सिंगल मदर थी निर्मला की मां
वह सिर्फ 7वीं कक्षा तक पढ़ी थी लेकिन उन्होंने अपनी बेटी को खूब पढ़ाया-लिखाया क्योंकि वह अपनी बेटी को समाज में अलग जगह दिलाना चाहती थी। IPS निर्मला बताती हैं, "मेरी मां लक्ष्मी सुंदरम मुझे हमेशा लोगों की मदद और न्याय करने के लिए प्रेरित करती थीं। साल 2009 में जब मैं भारतीय पुलिस में शामिल हुई तब मुझे समझ आया कि इस चीज में कितनी खुशी मिलती है।"
BSC IT में ग्रेजुएट हैं निर्मला
निर्मला बताती हैं कि उनकी मां सुबह जल्दी उठकर उन्हें व उनके भाई को स्कूल छोड़ आती थी। इसके बाद दिनभर गन्ने के खेत में मजदूरी करती थी। फिर शाम को बच्चों का होमवर्क करवाकर वह देर रात तक फसलों की सिंचाई करती थी। वह बिना किसी शिकायत और माथे पर शिंकत लाए यह सब करती थी। आर्थिक परेशानियों के बावजूद लक्ष्मी ने अपने दोनों बच्चे का निजी स्कूल में एडमिशन करवाया और अपना रास्ता चुनने की भी आजादी दी। तब उनके भाई ने पारिवारिक व्यवसाय और निर्मला ने BSC IT में ग्रेजुएशन करने का रास्ता चुना।
मां से मिली मदद और न्याय की सीख
इन सब परेशानियों के बाद लक्ष्मी दूसरों की मदद करने से भी कभी पीछे नहीं हटी। उन्होंने महिलाओं को सरकारी योजनाओं का हक दिलाने के साथ बेटियों को शिक्षित करने के लिए भी लोगों को प्रेरित किया। साल 2004 में ग्रेजुएशन कंपलीट करने के बाद निर्मला ने एक निजी बैंक में नौकरी की, ताकि वह अपनी मां की मदद कर सके। तभी उनकी मां ने बताया कि वो उन्हें प्रशासनिक अधिकारी बनाना चाहती थी। उन्होंने निर्मला को गांव के एक शख्स की IPS अधिकारी बनने की कहानी भी बताई, जिससे वो काफी प्रभावित हुई लेकिन उन्होंने इसे असंभव कहकर बात टाल दी।
IPS बन पूरा किया मां का सपना
मगर, फिर उन्होंने UPSC के बारे में पढ़ना शुरू किया। बिना फोन, इंटरनेट या मार्गदर्शन के निर्मला ने इस मुश्किल काम को भी आसान कर दिखाया। शुरूआत में तो उन्होंने रसायन विज्ञान को समझने में महीनों खराब कर दिए लेकिन उन्हें पता चला कि ये जरूर नहीं है तब उन्हें नए सिरे से तैयारी शुरू की और इसी बीच उन्हें UPSC क्लासेस के बारे में पता चला। इसके बाद निर्मला ने जी-तोड़ परीक्षा की तैयारी की और उसे अच्छे नंबर से पास भी किया। इसके बाद निर्मला को तमिलनाडु स्टेट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट फॉर सिविल सर्विसेज में मुफ्त कोचिंग करने का मौका मिला, जहां खान-पान की व्यवस्था भी फ्री थी।
इससे निर्मला के परिवार की आर्थिक समस्याएं कम हुई। वह अपने बैचमेट,अर्जुन से मदद लेकर पढ़ने लगी, जो अब उनके पति हैं। साल 2008 में उन्होंने चौथे प्रयास में 272वें रैंक से UPSC की परीक्षा पास कर ली। आईपीएस बनने के बाद निर्मला की पहली पोस्टिंग नांदेड़ में एक प्रशिक्षु एसीपी के रूप की गई। मर्डर केस को सुलझाने से लेकर निर्मला कोरोना महामारी के दौरान फ्रंटलाइन पर मोर्चे तक में अपना योगदान दे चुकी हैं।