नारी डेस्क: हलषष्ठी व्रत हर साल की तरह इस वर्ष भी धूमधाम से मनाया जाएगा। यह व्रत खासतौर पर संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। इस वर्ष, हलषष्ठी व्रत 24 अगस्त को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार, षष्ठी तिथि 24 अगस्त को सुबह 7:51 बजे शुरू होगी और 25 अगस्त को सुबह 5:30 बजे समाप्त होगी। इस वर्ष षष्ठी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाएगी, इसलिए हलषष्ठी व्रत शनिवार को ही करना उचित रहेगा। शहर के प्रसिद्ध सिद्धपीठ, मां महामाया देवी मंदिर पुरानी बस्ती में हलषष्ठी व्रत का पूजन 24 अगस्त को दोपहर 1 बजे मंदिर के मुख्य पुजारी द्वारा किया जाएगा। इस अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी।
हलषष्ठी व्रत की पूजा विधि और नियम
हलषष्ठी व्रत के दौरान कुछ खास नियमों का पालन किया जाता है
अन्न का सेवन: इस दिन हल द्वारा बोया-जोता हुआ अन्न, फल, और गाय के दूध-दही का सेवन निषिद्ध होता है। केवल भैंस के दूध, दही या घी का उपयोग किया जा सकता है।
व्रत के अनुष्ठान: इस दिन व्रति विशेष पूजा और व्रत की विधियों का पालन करती हैं। पूजा के दौरान विशेष रूप से बलराम जी की पूजा की जाती है।
हर्षषष्ठी व्रत की कथा
एक समय की बात है, एक समृद्ध और धर्मी राजा और रानी अपने घर में खुशहाल जीवन बिता रहे थे। उनकी दांपत्य जीवन में सभी सुख थे, लेकिन एक कमी थी – वे संतान सुख से वंचित थे। उन्होंने कई वर्षों तक संतान प्राप्ति के लिए अनेक यज्ञ और व्रत किए, लेकिन कोई भी उपाय सफल नहीं हुआ।
एक दिन, राजा और रानी ने एक ब्राह्मण को उनके दरबार में बुलाया और अपनी समस्या बताई। ब्राह्मण ने उन्हें हर्षषष्ठी व्रत के महत्व के बारे में बताया और कहा कि इस व्रत को विधिपूर्वक करने से उन्हें संतान सुख की प्राप्ति हो सकती है।
ब्राह्मण के कहने पर, राजा और रानी ने हर्षषष्ठी व्रत करने का निर्णय लिया। उन्होंने इस व्रत को बड़े श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया। व्रत के दिन, रानी ने विशेष प्रकार के खाद्य पदार्थ तैयार किए और पूजा अर्चना की। उन्होंने विशेष रूप से हर्षषष्ठी माता की पूजा की, जो संतान सुख और परिवार के सुख-समृद्धि की देवी मानी जाती हैं।
व्रत के अंत में, राजा और रानी ने संतान सुख की प्राप्ति के लिए देवी से प्रार्थना की। उनकी भक्ति और श्रद्धा से प्रभावित होकर देवी ने उन्हें आशीर्वाद दिया। कुछ समय बाद, राजा और रानी को एक सुंदर पुत्र प्राप्त हुआ। उनके घर में खुशी की लहर दौड़ गई और वे अपने जीवन के सबसे बड़े सुख को महसूस करने लगे।
इस प्रकार, हर्षषष्ठी व्रत की कथा हमें यह सिखाती है कि भक्ति, श्रद्धा और सही विधि से किए गए व्रत से जीवन में कठिनाइयों को पार किया जा सकता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति हो सकती है।
हर्षषष्ठी व्रत का पालन करने से न केवल संतान सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि जीवन में सुख-समृद्धि और शांति भी आती है। यह व्रत विशेष रूप से उन परिवारों के लिए महत्वपूर्ण है, जो संतान सुख की प्राप्ति के लिए प्रयासरत हैं। व्रत की कथा से प्रेरित होकर सही विधि से व्रत का पालन करें और देवी माता की कृपा प्राप्त करें।
हलषष्ठी व्रत का महत्व
हलषष्ठी व्रत भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी की पूजा करना होता है। व्रति इस दिन अपने बच्चों के सुखमय जीवन और दीर्घकालिक स्वास्थ्य के लिए विशेष पूजा-अर्चना करती हैं।
इस व्रत के पुण्य प्रभाव से संतान को लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। माताएं इस व्रत को अपने बच्चों की भलाई और स्वास्थ्य के लिए करती हैं, जिससे उनके जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहे।