कहते हैं अगर आप समाज में कुछ बदलने की चाह रखते हैं तो आपके द्वारा किया गया एक कदम ही समाज को काफी बदल सकता है। बस जरूरत होती है तो एक बार शुरूआत करने की। आज हम आपको जिस महिला की कहानी बताने जा रहे हैं वह भी किसी मिसाल से कम नहीं हैं। खुद तो उनकी शादी बेहद कम उम्र में हो गई लेकिन आज वह गांव की तस्वीर बदल रही हैं और खासकर महिलाओं के लिए और आदिवासयों के लिए काम कर रही हैं।
कहानी बसंती देवी की
हम जिस महिला की बात कर रहे हैं वह दक्षिणी राजस्थान की रहने वाली हैं। बसंती देवी 43 साल की हैं और आज वह समाज को बदलने का काबिलेतारीफ काम कर रही है। दरअसल बसंती देवी आदिवासी महिलाओं को और पूरे इलाके को पढ़ा रही हैं ताकि वह भी आगे बढ़े और वह धीरे-धीरे अपने इस कदम से गांव की तस्वीर बदल रही है।
बचपन में ही खोए माता-पिता
बसंती देवी की जिंदगी आसान नहीं थी। पहले तो गरीब परिवार में जन्म होना और फिर बचपन में ही माता-पिता को खो देना उनके लिए आसान नहीं था। कहते हैं कि माता-पिता के न रहने के बाद बच्चे की जिंदगी ही खत्म हो जाती है क्योंकि एक माता पिता अपने बच्चों को जो प्यार दे सकते हैं वह कोई और नहीं। हालांकि बसंती के माता पिता के निधन के बाद उनका पालन पोषण उनके घर के बुजुर्गों ने किया।
13 साल की उम्र में हुई शादी
बसंती देवी जब 5वीं कक्षा में थी तो उनकी शादी हो गई। तब वह महज 13 साल की थी। शादी के बाद जब वह ससुराल गई तो उन्हें लगता था कि वह सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी हैं। बसंती देवी को उनके पति का भी पूरा साथ मिला और वह भी यही चाहते थे कि उनकी पत्नी पढ़े और आगे बढ़े।
यूं हुई दूसरों को पढ़ाने की शुरूआत
दरअसल एक बार सरकार ने शिक्षा कर्मी योजना की शुरुआत की। इस योजना के तहत कहा गया कि जो लोग 5वीं तक पढ़े हैं वह भी आदिवासी क्षेत्रों में पढ़ा सकते हैं। बस इसी से बसंती देवी ने कदम आगे बढ़ाए और उन्हें लोगों को पढ़ाने का मौका मिला।
सास के हाथ दी अपनी पहली सैलरी
पढ़ाने के लिए बसंती को तकरीबन 600 रूपए महीना मिलता था। जब उन्हें अपनी कमाई हुई पहली सैलरी मिली तो उन्होंने सबसे पहले इसे सास के हाथ रखा क्योंकि आज से पहले उन्होंने कभी इतनी ज्यादा अमाउंट नहीं ली थी।
इस तरह बनीं ट्रेन्ड टीचर
दूसरों को पढ़ाने के साथ-साथ बसंती ने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। इसी तरह बसंती ने 12वीं भी पास कर ली। इसके बाद बी.एड के बराबर माने जाना वाला कोर्स किया STC, इसके बाद बसंती देवी पूरा तरह ट्रेन्ड हो गई।
महज 5 लड़कियों से की शुरूआत
शुरूआत में बसंती महज 5 लड़कियों को पढ़ाती थी लेकिन इसके बाद भी उन्होंने निराश होने की बजाए इस नेक शुरूआत को जारी रखा। देखते ही देखते 300 से ज्यादा महिलाएं आ गईं और इसी तरह गांव की भी तस्वीर बदलने लगी।
लड़कियों के साथ-साथ उनकी माताएं भी हासिल कर ही शिक्षा
आज से बहुत से साल पहले इस गांव की तस्वीर बेहद खराब थी। पहले के समय में जिस तरह पुरूष शादी के बाद आगे बढ़ जाते थे लेकिन महिलाएं वहीं की वहीं रह जाती थी। लेकिन बसंती के एक कदम और एक साहस ने आज वहां की काया ही बदल दी है। आज न सिर्फ महिलाएं उनके पास पढ़ने के लिए आती हैं बल्कि लड़कियों की माताएं भी उनसे शिक्षा ग्रहण करने के लिए आती हैं।
पति ने भी बसंती के हौसले से पास की पढ़ाई
बसंती के पति हक्मा राम ने भी अपनी पढ़ाई की और अब वह स्थानीय पंचायत में नौकरी करते हैं। हकमा की मानें तो, "बसंती की प्रेरणा के कारण मैंने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और फिर बीए की डिग्री हासिल की।"