आमलकी एकादशी फाल्गुन महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी (ग्यारहवें) दिन पड़ने वाली एकादशी व्रतों में से एक है। पद्म पुराण के अनुसार, यह पवित्र फल भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला और शुभ माना गया है। इस फल को खाने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है। आंवला खाने से उम्र बढ़ती है। आंवले का रस पीने से धर्म का संचय होता है और इसके जल से स्नान करने से दरिद्रता दूर होती है और सभी प्रकार के ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। मगर, क्या आप जानते हैं कि इस पेड़ की उत्पत्ति कैसे हुई? चलिए आपको बताते हैं इससे जुड़ी दिलचस्प कहानी
ब्रह्मा जी के आंसू से उत्पन्न हुआ आंवला पेड़
विष्णुधर्मोत्तर पुराण के अनुसार, एक समय ऐसा था जब पूरी धरती पानी में डूबी हुई थी और कहीं भी कोई जीवन नहीं था। तब ब्रह्मा जी के मन में सृष्टि को दोबारा शुरू करने का विचार आया। वह कमल के फूल पर बैठकर भगवान विष्णु के ध्यान में लीन थे। जब भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए तो उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। जब ये आंसू जमीन पर गिरे तो आमलकी यानी आंवला का पेड़ अंकुरित हो गया, जिससे चमत्कारी औषधीय फल की प्राप्ति हुई। पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में भी इसका जिक्र मिलता है।
ये भी है कहानी
एक पौराणिक कहानी यह भी है कि समुद्र मंथन के दौरान जहां-जहां विष की हल्की बूंदें गिरी वहां भांग-धतूरा जैसी बूटियां उग आईं। उसी तरह अमृत की बूंदें छलकने से धरती पर आंवला सहित कई अन्य गुणकारी पेड़ों का जन्म हुआ।
आंवला के औषधिए गुण
इस पेड़ को वैज्ञानिक भाषा में एम्ब्लिका मायरोबलन कहा जाता है। यह एक छोटा, पत्तेदार पेड़ है जो पूरे भारत में उगता है कई औषधिए गुणों से भरपूर माना जाता है। एक पेड़ 65-70 साल तक फल दे सकता है। इस अकेले फल में तीन संतरे या 16 केले से भी अधिक विटामिन सी होता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे भूमि पर भी उगाया जा सकता है। आंवला इम्यूनिटी बढ़ाने के साथ पाचन क्रिया को दुरुस्त रखता है। साथ ही यह स्किन व बालों के लिए भी बेहद गुणकारी है।