नारी डेस्क: हमारे भारतीय समाज में दादी-नानी की बातें हमेशा से हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा रही हैं। ये न सिर्फ हमारी परंपराओं और संस्कृति का प्रतीक हैं, बल्कि इनमें से कई बातें हमारी सेहत और भलाई से भी जुड़ी होती हैं। ऐसी ही एक बात माहवारी (पीरियड्स) के दौरान महिलाओं से जुड़ी है। दादी-नानी अकसर कहती हैं कि पीरियड्स के शुरुआती दिनों में बाल मत धोओ। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं?
पीरियड्स में बाल धोने की मनाही: परंपरा और विज्ञान का मेल
पीरियड्स के दौरान बाल धोने को लेकर दादी-नानी की सलाह केवल परंपरा से नहीं, बल्कि इसका संबंध हमारे शरीर और स्वास्थ्य से भी है। ज्योतिष और विज्ञान दोनों ही इस विषय पर अपनी राय रखते हैं।
धार्मिक और शास्त्रीय कारण
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास के अनुसार, हिंदू धर्म में माहवारी के दौरान महिलाओं को धार्मिक कार्य करने से मना किया जाता है। इस दौरान मंदिर जाना, पूजा-पाठ करना और देवी-देवताओं की मूर्तियों को छूना वर्जित होता है। इसके पीछे मान्यता यह है कि इस समय शरीर पूरी तरह से शुद्ध नहीं होता है। पीरियड्स खत्म होने के बाद महिलाओं को बाल धोकर स्नान करने की सलाह दी जाती है, ताकि उनका शरीर पूरी तरह शुद्ध हो सके। जो महिलाएं ऐसा नहीं करतीं, उन्हें धार्मिक दृष्टिकोण से अशुद्ध माना जाता है।
स्वास्थ्य और वैज्ञानिक दृष्टिकोण
पीरियड्स के शुरुआती दिनों में शरीर का तापमान थोड़ा गर्म रहता है। ऐसे में बाल धोने या सिर पर ठंडा पानी डालने से शरीर का तापमान अचानक से ठंडा हो सकता है, जो सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है। शरीर का तापमान संतुलित न होने से सिरदर्द, ठंड लगना या अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए इस समय सिर धोने की मनाही होती है।
दादी-नानी की सलाह का महत्व
दादी-नानी की सलाहें हमेशा हमारी भलाई के लिए होती हैं। जैसे पीपल और तुलसी हमारे जीवन में छाया और औषधि का काम करते हैं, वैसे ही उनकी बातें भी हमें सही दिशा दिखाने और समस्याओं से बचाने का काम करती हैं।
क्या करें?
1. पीरियड्स के शुरुआती 2-3 दिनों में सिर धोने से बचें, खासकर ठंडे पानी का इस्तेमाल न करें।
2. पीरियड खत्म होने के बाद बाल धोकर स्नान करें, ताकि आप खुद को तरोताजा और शुद्ध महसूस कर सकें।
3. अगर सिर धोना जरूरी हो, तो गर्म पानी का इस्तेमाल करें और तुरंत सिर को सुखा लें।
पीरियड्स के दौरान बाल न धोने की परंपरा के पीछे धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ वैज्ञानिक कारण भी हैं। यह एक व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है, लेकिन दादी-नानी की बातें सुनने में कभी कोई नुकसान नहीं होता। उनका अनुभव और हमारी भलाई से जुड़ी सलाहें आज भी हमारी सेहत और परंपराओं के साथ जुड़ी हुई हैं।