दिवाली के 2 दिन बाद भाई दूज का त्यौहार मनाया जाता है, जो भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है। रक्षाबंधन की तरह यह पर्व भी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि में मनाया जाता है। इसे अक्षत का तिलक भी कहा जाता है। इस दिन बहन माथे पर तिलक लगाकर और हाथों में रौली बांधकर भाई से रक्षा का वचन लेती है। यहां हम आपको बताएंगे कि भाई दूज का त्यौहार क्यों मनाया जाता है माथे पर तिलक लगाने का शुभ मुहूर्त...
भाई दूज का शुभ मुहूर्त
भाई दूज तिथि – सोमवार, 16 नवंबर 2020
भाई दूज तिलक मुहूर्त - 13:10 से 15:17 बजे तक (16 नवंबर 2020)
द्वितीय तिथि प्रारंभ - 07:05 बजे से (16 नवंबर 2020)
द्वितीय तिथि समाप्त - 03:56 बजे तक (17 नवंबर 2020)
लंबी आयु के लिए लगाएं अक्षत का टीका
भैया दूज पर बहनें भाई के माथे पर अक्षत यानि चावल का टीका लगाती है। माना जाता है कि इससे भाई का भविष्य उज्जवल होता है। वहीं, वास्तु के अनुसार उत्तर दिशा में बैठकर तिलक लगाने से भाई-बहन के रिश्ते में मधुरता आती है और मन-मुटाव भी दूर होते हैं।
पूजा की थाली में शामिल करें ये चीजें
भाई दूज थाली में में 5 पान के पत्ते, सुपारी और चांदी का सिक्का जरुर रखें। तिलक करने से पहले सभी चीजों पर जल छिड़क कर भगवान विष्णु को अर्पित करें और भाई की लंबी उम्र की कामना करें। इसके अलावा थाली में सिंदूर, फूल, चावल के दाने, नारियल और मिठाई जरूर रखें।
क्यों मनाया जाता है भाई दूज?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमुना ने कार्तिक शुक्त द्वितीया को पूर्व काल में भोजन करवाया था। उससे नारकी जीवों को यातना व सभी पापों से छुटकारा मिला था और वो तृप्त होकर सभी सांसारिक बंधनों से छूट गए थे। इसके बाद यमलोक में उत्सव मनाया गया, जिसे यम द्वितीया कहा जाता है। इसी वजह से भाई-दूज पर अगर बहन के हाथ का भोजन करने से भाई को अन्न धन्न की प्राप्ति होता है। पद्म पुराण के अनुसार, इस दिन यमुना में स्नान करने से मनुष्य अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है और उसे मुक्ति मिल जाती है।
यमराज भी लगवाते हैं अपनी बहन से तिलक
कथाओं के मुताबिक, यमुना अपने भाई यमराज को हमेशा भोजन पर बुलवाया करती थी लेकिन वह टाल देते थे। ऐसे में जब कार्तिक माह में यमुना अपने भाई को द्वार पर खड़ा देखती हैं तो वह खुश हो जाती हैं और बेहद सत्कार से उन्हें भोजन करवाती हैं। बहन के समर्पण और स्नेह से प्रसन्न होकर यमदेव उन्हें इच्छा मांगने के लिए कहते हैं तब यमुना उन्हें हर साल भोजन पर आने का आग्रह करती हैं। साथ ही वह कहती हैं कि जो भी बहन इस दिन भाई का तिलक कर भोजन खिलाए उसे आपका भय न रहे। इसपर यमराज 'तथास्तु' कहकर यमलोक चले जाते हैं। मान्यता है कि आज के दिन पूरी श्रद्धा से तिलक और भोजन करने से दोनों को यमदेव का भय नहीं रहता।