दशहरे शुभ दिन पूरे देश में बहुत खुशी और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसके साथ ही शारदीय नवरात्रि और दुर्गा पूजा उत्सव का समापन भी होता है यानि नवरात्रि के 10वें दिन ही विजयदशमी का पर्व आता है। मगर, क्या आप जानते हैं कि नवरात्रि के बाद दशहरा क्यों मनाया जाता है चलिए जानते हैं इस पर्व से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें...
आयुध या शस्त्र पूजा के नाम से मशहूर
जैसा कि नाम से पता चलता है, विजया यानि जीत। चूंकि पुरूषोत्तम भगवान राम ने धरती पर अधर्म पर धर्म की विजय के लिए इसी दिन रावण का वध किया था इसलिए कुछ लोग इस पर्व को आयुध या शस्त्र पूजा के रूप में भी मनाते हैं।
नवरात्रि के 10वें दिन ही क्यों मनाते हैं विजयदशमी?
भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय पाने के लिए अश्विन माह में समुद्र किनारे मां नवदुर्गा की पूजा की थी, जोकि लगातार 9 दिनों तक चली। यहीं से शारदीय नवरात्र की शुरुआत भी हुई। मां भगवती से विजय का आशीर्वाद लेकर प्रभु श्रीराम ने 10वें दिन लंका पर आक्रमण किया और रावण का वध किया। तब से ही नवरात्रि पूजन के बाद 10वें दिन असत्य पर सत्य की जीत का पर्व विजयदशमी मनाया जाने लगा।
ब्रह्माजी ने बताए थे श्रीराम को पूजा के उपाय
लंका पर विजय के लिए श्रीराम जो पूजा कर रहे थे उसमें से सबसे खास चंडी पूजा थी। भगवान राम को चंडी पूजा की सलाह ब्राह्माजी ने दी थी और साथ ही उन्होंने 108 नीलकमल का करने के लिए भी कहा। जब रावण को पता चला कि श्रीराम भी चंडी यज्ञ कर रहे हैं तो उन्होंने पूजा के फूलों में से एक नीलकमल गायब करवा दिया।
जब श्रीराम से क्रोधित हो उठी मां दुर्गा
जब श्रीराम को नीलकमल नहीं मिला तो वह समझ गए कि यह मायावी रावण की चाल है। जब पूजा का मुहूर्त निकलने लगा तो वचन पूरा ना कर पाने पर माता क्रोधित होने लगीं। तभी श्रीराम को ज्ञान हुआ कि नीलकमल को "कमलनयन नवकंच लोचन" भी कहा जाता है। तब उन्होंने तलवार (तीर या चाकू) से अपने नयन निकालकर मां दुर्गे के चरणों में अर्पित कर दिए। प्रभु की भक्ति देख मां चंडी प्रकट हुई और उन्हें लंका पर विजय का आशीर्वाद दिया।
चंडी पूजा में रावण से हुए एक गलती
वहीं दूसरी तरफ अमरत्व प्राप्ति के लिए रावण ने भी चंडी पूजा, यज्ञ और पाठ का आयोजन किया। कहा जाता है कि चंडी पूजा के दौरान रावण ने सहस्र चंडी पाठ का उच्चारण किया लेकिन उन्होंने गलती से प्रथम मंत्र 'हरिणी' शब्द को 'कारिणी' पढ़ा, जिससे मंत्र का अर्थ बदल गया। यही वजह है कि रावण का चंडी यज्ञ सफल ना हो पाया और वह श्रीराम के हाथों मृत्यु को प्राप्त हुए।