बांसुरी भगवान श्रीकृष्ण को अति प्रिय है इसलिए धार्मिक नजरिए से इसे काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। भगवान शिव ने श्रीकृष्ण के जन्म के समय उन्हें बांसुरी उपहार में दी थी। तभी से कान्हा बांसुरी को अपने पास रखते थे लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी तोड़ दी।
बचपन में हो गया था प्यार का अभास
राधा-श्रीकृष्ण को 8 साल की उम्र में ही अपने प्रेम का आभास हो गया था। भले ही वह शादी के बंधन में ना बंधे हो लेकिन उनका प्यार आत्मिक था। कहा जाता है कि अपने जिंदगी के आखिरी क्षणों में राधा श्रीकृष्ण से मिलने पहुंची और बांसुरी की मधुर धुन सुनते सुनते उन्हीं में विलिन हो गई थी।
श्रीकृष्ण के लिए महत्वपूर्ण थी बांसुरी
भगवान श्रीकृष्ण के लिए राधा के बाद बांसुरी सबसे महत्वपूर्ण थीं। श्रीकृष्ण की मधुर बांसुरी की धुन सुन सिर्फ राधा ही नहीं बल्कि सभी गोपियां दौड़ी चली आती थी। यही वजह है कि बांसुरी को राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। मगर, एक समय ऐसा आया जब कंस का वध करने के लिए कृष्ण को मथुरा रवाना हो गया। कृष्ण के विदा होने पर सिर्फ राधा ही नहीं बल्कि पूरा गोकुल दुखी हो उठा लेकिन मथुरा जाने के बाद श्रीकृष्ण कभी नहीं लौटकर नहीं आ पाए।
फिर क्यों तोड़ दी श्रीकृष्ण ने बांसुरी
कंस वध के बाद श्रीकृष्ण द्वारका बस गए और रूकमनी से शादी कर ली। उन्होंने अपने पत्नी धर्म को बखूबी निभाया लेकिन उनके मन में हमेशा राधा का ही वास रहा। जिंदगी के आखिरी पलों में अपनी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर राधा और कृष्ण का दोबारा मिलन हुआ।
आखिरी मिलन पर श्रीकृष्ण ने राधा से कुछ मांगने के लिए कहा। तब राधा ने उनसे आखिरी बार बांसुरी बजाने की इच्छा जताई। श्रीकृष्ण की बांसुरी की सुरीली धुन सुनते-सुनते ही राधा ने अपना शरीर त्याग दिया। कान्हा राधा के आध्यात्मिक रूप और कृष्ण में विलिन होने तक बांसुरी बजाते रहें। भगवान राधा-श्रीकृष्ण का प्रेम अमर है लेकिन फिर भी श्रीकृष्ण राधा का वियोग सह ना पाए और उन्होंने प्रेम के प्रतीक बांसुरी को तोड़कर फेंक दिया। इसके बाद उन्होंने बांसुरी या कोई भी वादक यंत्र नहीं बजाया।