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इस बार वट सावित्री पर बनेंगे 3 खास संयोग, रखने वाले हैं व्रत तो यहां पढ़े पूजा की विधि

  • Edited By palak,
  • Updated: 15 May, 2023 06:23 PM
इस बार वट सावित्री पर बनेंगे 3 खास संयोग, रखने वाले हैं व्रत तो यहां पढ़े पूजा की विधि

हिंदू धर्म में हर किसी व्रत का बहुत ही खास महत्व बताया गया है। खासकर वट सावित्री व्रत का सनातन धर्म में पूजनीय माना जाता है। इस बार वट सावित्री व्रत 19 मई को रखा जाएगा उसी दिन दर्श अमावस्या भी मनाई जाएगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन मां सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से छिनकर लाई थी। इस व्रत वाले दिन बरगद के पेड़ की पूजा भी होती है। बरगद के पेड़ में त्रिदेवताओं का वास माना जाता है। माना जाता है पेड़ की इस पेड़ की जड़ में ब्रह्मा का वास, तने में श्रीविष्णु  और शाखाओं में शिवजी का वास है। 

 व्रत का शुभ योग 

वट सावित्री व्रत के दिन इस बार शुभ योग बनने जा रहा है। यह योग 18 मई शाम 07:37 से लेकर 19 मई शाम 06:17 तक रहेगा। वट सावित्री अमावस्या के दिन चंद्रमा गुरु के साथ मेष राशि में विराजमान रहने वाले हैं जिसके प्रभाव से गजकेसरी नाम के योग का निर्माण हो रहा है। इसी दिन शनि जंयती भी पड़ रही है जिसके चलते शनि अपनी कुंभ राशि में विराजमान होंगे। शनि के कुंभ राशि में विराजमान होने के कारण शशयोग का निर्माण होने वाला है। 

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क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त? 

हिंदू पंचागों की मानें तो वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ महीने की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस बार अमावस्या तिथि 18 मई रात 09:42 मिनट पर शुरु होगी और अगले दिन 19 मई को रात 09:22 मिनट पर खत्म होगी। वहीं उदयातिथि की मानें तो इस बार वट सावित्री का व्रत 19 मई को रखा जाएगा। 

कैसे करें पूजा? 

इस दिन वट वृक्ष के नीचे सावित्री और यमराज की तस्वीर रखें। इसके बाद इस पेड़ की जड़ में पानी डालें और फल-धूप और मिठाई के साथ पूजा करें। कच्चा सूत लें और वट वृक्ष की परिक्रमा करते हुए सूत तने में लपेटेते जाएं। उसके बाद 7 बार परिक्रमा करें और हाथ में भीगा चना लेकर सावित्री और सत्यवान की कथा सुनें। इसके बाद भीगा चना कुछ पैसे और कपड़े अपनी सास को देकर उनका आशीर्वाद लें। वट वृक्ष की कोंपल खार आप अपना व्रत खत्म करें। 

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बरगद के पेड़ की करें पूजा 

वटवृक्ष को देव वृक्ष माना जाता है। इस में ब्रह्मा, विष्णु, महेश और सावित्री भी रहते हैं। प्रलय के अंत में श्री कृष्ण भी इसी वृक्ष के पत्ते पर प्रकट हुए थे। तुलसीदास जी ने इस पेड़ को तीर्थराज का छत्र भी कहा है। यह पेड़ बहुत ही पवित्र भी है और काफी ज्यादा दीर्घायु वाला भी माना जाता है। लंबी आयु, धार्मिक महत्व को ध्यान में रखते हुए इस पेड़ की पूजा की जाती है। 

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