मान्यता है कि तुलसी विवाह के दिन सभी सुहागिन महिलाएं तुलसी माता की पूजा कर अपने सुखी वैवाहिक जीवन के लिए आशीष मांगती हैं। इस दिन पूरे विधि-विधान से माता तुलसी और भगवान शालीग्राम का विवाह किया जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि शालीग्राम भगवान विष्णु का ही एक रूप हैं। भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे देवउठनी एकादशी कहते है चार महीने तक सोने के बाद इस दिन जागते हैं। भगवान विष्णु के जागने के साथ ही इस दिन माता तुलसी का विवाह होता है, जिसे देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह उत्सव भी कहा जाता है। यह एकादशी दिवाली के 11 दिन बाद आती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी या देव उठनी एकादशी को तुलसी विवाह क्यों होता है? इस बारे में जानने के लिए पढ़ते हैं इससे जुड़ी पौराणिक कथाएं।
पौराणिक कथा. 1
पौराणक कथाओं के अनुसार, एक बार माता तुलसी ने भगवान विष्णु से नाराज होकर उन्हें श्राप दे दिया था कि आप पत्थर के बन जाओ। तत्पश्चात, इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए विष्णु भगवान ने शालीग्राम पत्थर का रूप धारण किया और तुलसी माता से विवाह किया। तब से ही तुलसी विवाह को त्यौहार के रीप में मनाया जाता है। तुलसी माता को मां लक्ष्मी का ही अवतार माना जाता है।
पौराणिक कथा. 2
अन्य कथा के अनुसार, एक परिवार में ननद-भाभी रहती थीं। ननद कुंवारी थी और वह तुलसी की बड़ी सेवा करती थी। पर उसकी भाभी को यब बात कभी पसंद नहीं आती थी। कभी -कभी तो वह गुस्से में कह दिया करती थी- तेरा विवाह होगा तो तुलसी ही खाने को दूंगी और तुलसी ही दहेज में दे दूंगी। जब ननद की शादी हुई तो उसकी भाभी ने बारात के सामने तुलसी का गमला फोड़ दिया। लेकिन भगवान की कृपादृष्टि से गमला स्वादिष्ट व्यंजनों में बदल गया। जब गहनें पहनने का समय आया तो गहनों के बदले भी भाभी ने ननद को तुलसी की मंजरी पहना दी तो तब वह सोने के आभूषणों में तबदील हो गई। साथ ही वस्त्रों के स्थान पर तुलसी का जनेऊ रख दिया जो कि रेश्मी वस्त्रों में बदल गया। ये सब देख कर भाभी को बड़ा ही आश्चर्य हुआ और तुलसी जी की पूजा का महत्व उसकी समझ में आ गया।
पौराणिक कथा. 3
नारद पुराण के अनुसार, एक बार दैत्यराज जलंधर के अत्याचारों से ऋषि-मुनि, सभी देवतागण और मनुष्य भी बहुत परेशान हो गए थे। वह बड़ा ही पराक्रमी और वीर था। इसके पीछे उसकी पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली पत्नी वृंदा के पुण्यों का फल था, जिससे वह कभी पराजित नहीं होता था। उससे परेशान होकर सभी देवतागण भगवान विष्णु के पास गए और उसे हराने का उपाय पूछने लगे। तब भगवान श्रीहरि ने वृंदा का पतिव्रता धर्म तोड़ने का उपाय सोचा। भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण किया और उसके बाद वृंदा को स्पर्श कर लिया। जिसके कारण वृंदा का पतिव्रत धर्म भंग हो गया और जलंधर युद्ध में मारा गया।
भगवान विष्णु से छले जाने तथा पति के वियोग से दुखी वृंदा ने श्रीहरि को श्राप दिया कि आपकी पत्नी का भी छल से हरण होगा तथा आपको पत्नी वियोग सहना पड़ेगा। यह श्राप देने के बाद वृंदा अपने पति जलन्धर के साथ सती हो गई, जिसकी राख से तुलसी का पौधा निकला। वृंदा का पतिव्रता धर्म तोड़ने से भगवान विष्णु को बहुत ग्लानि हुई। तब उन्होंने वृंदा को आशीष दिया कि वह तुलसी स्वरुप में सदैव उनके साथ रहेंगी। उन्होंने कहा कि कार्तिक शुक्ल एकादशी को जो भी शालिग्राम स्वरुप में उनका विवाह तुलसी से कराएगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। उसके बाद से ही तुलसी विवाह होने लगा।