कोविड-19 को मुख्य रूप से श्वसन संबंधी बीमारी के रूप में देखा और इलाज किया जा सकता है, लेकिन मानव शरीर पर प्रभाव के मामले में यह ज्यादा गंभीर है क्योंकि यह मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है जिससे अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी बीमारियां हो सकती हैं। दावा किया जा रहा है कि कोविड-19 का प्रभाव नाक, गले और फेफड़ों से कहीं आगे तक फैला हुआ है तथा शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंग मस्तिष्क को भी प्रभावित कर सकता है।
50 साल से कम उम्र के लोग हो रहे शिकार
वर्द्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज और सफदरजंग अस्पताल के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. अग्रवाल ने यह दावा किया है। मनोरमा इयरबुक 2023' के लिए एक विशेष लेख में उन्होंने कहा कि व्यापक क्लीनिकल अध्ययन से पता चलता है कि 36-84 प्रतिशत कोविड-19 रोगियों में न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर (Neurological Disorder) होती हैं। कई लोग जो इन लक्षणों का अनुभव करते हैं 50 साल से कम उम्र के होते हैं और संक्रमण से पहले वे स्वस्थ थे।
संक्रमण से प्रभावित लोगों को आ रही ये समस्या
लेख में यह भी कहा गया है कि संक्रमण से प्रभावित हो चुके कई लोगों में पैनिक अटैक, ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर और अवसाद की समस्या हो सकती है। ये समस्याएं अत्यधिक शराब का सेवन, मादक द्रव्यों का सेवन, आत्महत्या की प्रवृत्ति, भ्रम जैसी स्थिति को भी बढ़ा सकती है। डॉक्टर ने कहा है कि कोविड-19 से संक्रमित लोगों, उनके परिवार के सदस्यों और समुदाय में मध्यम से गंभीर स्तर की बेचैनी के लक्षण आम हैं।
ब्रेन हो रहा प्रभावित
इस बात के पुख्ता सबूत अब मौजूद हैं कि कई स्वरूप वाला कोरोना वायरस मस्तिष्क के कार्य, व्यवहार और बौद्धिक क्षमताओं को कई तरह से प्रभावित कर सकता है। यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन एंड पैरा मेडिकल हेल्थ साइंसेज, गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के डीन डॉक्टर अग्रवाल ने कहा- ‘‘इनमें से कुछ प्रभाव गंभीर होते हैं और थोड़े समय में दूर भी हो जाते हैं, लेकिन कुछ अन्य लंबे समय तक प्रभावित करते हैं।
क्या है न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर
एक अनुमान के अनुसार भारत में तकरीबन 30 मिलियन लोग किसी न किसी तरह के न्यूरोलॉजिकल रोग से पीड़ित हैं। फिर भी इन रोगों के बारे में जागरुकता की कमी है और इन मरीज़ों को समाज में भेदभाव और कलंक का सामना करना पड़ता है। न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर आमचतौर पर मस्तिष्क को प्रभावित करता है, और दिमाग पर जोर डालने वाले कामों में परेशानी पैदा करता है। ये स्पाइनल कोर्ड को भी खराब कर सकता है। किसी चीज़ पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कम हो जाना या एकाग्रता शक्ति का कम हो जाना, न्यूरोलॉजिकल विकारों के कई लक्षणों में से एक है।
न्यूरोलॉजिकल डिस्ऑर्डर के लक्षण
-सिर, गर्दन, पीठ, हाथ या पैर में दर्द के सामान्य लक्षण भी न्यूरोलॉजिकल डिस्ऑर्डर के संकेत हो सकते है।
-गर्दन की जकड़न के साथ गंभीर सिरदर्द मेनिनजाइटिस, ब्रेन हैमरेज, ब्रेन ट्यूमर या वेनस साइनस थ्रॉम्बोसिस भी है इस बीमारी के संकेत।
- लगातार कमजोरी, अंगों का टूटना और मरोड़ना एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस भी है इसका लक्षण।
-दौरे पड़ना, अंगों का मरोड़ना और बार-बार बेहोश होना भी न्यूरोलॉजिकल डिस्ऑर्डर का है लक्षण।
-मांसपेशियों में जकड़न और धीमापन जैसे लक्षण भी न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर की वजह से हो सकते हैं। इस तरह के लक्षण आमतौर 50 साल से अधिक उम्र के लोगों में देखने को मिलते हैं।
न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का इलाज
न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का कोई त्वरित समाधान नहीं है, लेकिन रोगी की अच्छी देखभाल उसे लंबे समय तक स्वस्थ रख सकती है ।न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर से निपटने के लिए, चिकित्सक द्वारा दी जाने वाली दवाओं और उपचार की आवश्यकता हो सकती है। हालाँकि कुछ चीजों का ध्यान रखकर भी इससे बचा जा सकता है। जैसे कई कामों को एक साथ न करना, एक काम पर ध्यान केंद्रित करना और एक समय पर एक विचार करना। अपने कामों को छोटे भागों में बांट लेना एक बेहतर विकल्प है, ये ध्यन केंद्रित करने में कारगर साबित हो सकता है।