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जल प्रलय के नौ दिन बाद खुले हिमाचल के 'केदारनाथ' के द्वार, बाढ़ में रहा था अडिग

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 18 Jul, 2023 02:39 PM
जल प्रलय के नौ दिन बाद खुले हिमाचल के 'केदारनाथ' के द्वार, बाढ़ में रहा था अडिग

पिछले दिनों देश के कुछ हिस्सों में बारिश ने जो तबाही मचाई है उसे शायद ही कोई भूल पाएगा। ब्यास नदी ने  जिस कदर रौद्र रूप धारण किया था वह काफी डरा देने वाला था। पानी का बहाब इतना तेज था कि रास्ते में आ रही हर चीज नदी के साथ ही बहती जा रही थी। उफनती व्यास नदी में कई कारें और ट्रक बह ,गए लेकिन पानी का सैलाब भोलेनाथ के मंदिर का कुछ भी बिगाड़ नहीं सका।

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सोशल मीडिया पर कुदरत के कहर की कई तस्वीरें देखने को मिली, इसी बीच मंडी का ऐतिहासिक पंचवक्त्र मंदिर उग्र और आक्रामक ब्यास नदी की लहरों का जमकर सामना करता दिखाई दिया। इस तस्वीर को देख कर दस साल पुरानी केदारनाथ त्रासदी याद आ गई। 2013 में आई आपदा ने पूरे उत्तराखंड को अपनी चपेट में ले लिया था, लेकिन  तब केदारनाथ मंदिर और नदी की धारा के बीच एक शिला आ गई थी और मंदिर सुरक्षित रहा था।

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अब स्थानीय लोगों का मानना है कि पांच सदी से भी ज्यादा पुराने इसी शिव मंदिर ने हिमाचल प्रदेश की रक्षा की है। लोगो के विश्वास का ही असर है कि जल प्रलय के नौ दिन बाद प्राचीन पंचवक्त्र महादेव मंदिर को पूजा- अर्चना के लिए फिर से खोल दिया गया। सावन के सोमवार की सुबह मंदिर में पंचमुखी मूर्ति को भस्म रमाकर और सभी विधि-विधानों को पूरा करने के साथ पूजा की गई। पहले जलसमाधि में रहे भगवान पंचवक्त्र को गंगाजल से स्नान करवाया, बाद में  वस्त्र पहनाकर शृंगार किया गया। इस दौरान भक्तों की आस्था में कोई कमी नजर नहीं आई।

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स्थानीय पुजारी का कहना है कि यूं तो मंदिर 16 वी सदी में राजा ने बनवाया था, लेकिन मान्यता है कि यह मंदिर खुद पांडवों द्वारा बनवाया गया था, खुद पांडवों ने पूजा-अर्चना थी.। मंदिर के पूरे प्रांगण में ब्यास नदी द्वारा लाया गया रेत और मलबा भरा गया था जिसे अब हटा दिया गया है। बाढ़ का पानी निकला तो मंदिर वैसे ही मिला जैसे पहले था। बाढ़ की विनाशलीला के बीच मंदिर की एक ईंट तक नहीं हिली।

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मंदिर का पूर्वी और उत्तरी द्वार सबसे ज्यादा लहरों की चपेट में था, लेकिन नदी इस मंदिर का कुछ नहीं बिगाड़ पाई। मंदिर के प्रवेश के हिस्से में बाबा भैरव नाथ का मंदिर है जो इस मंदिर के रक्षक माने जाते हैं। इस मंदिर में स्थापित पंचमुखी शिव जी की प्रतिमा के कारण इस मंदिर को पंचवक्त्र नाम दिया गया है। पंचवक्त्र मंदिर बिल्कुल उसी तरह टिका रहा जैसे उत्तराखंड में आई आपदा में केदारनाथ का मंदिर। दोनों मंदिरों की शैली भी बिल्कुल एक जैसी ही लगती है। 

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